टेको लेवो पडतो नथी.–आवा आत्मस्वभावने जाणे तो सम्यग्दर्शनादि निर्मळ कार्य प्रगटे.
काळमां नथी; अने पुण्य–पापरूप विकारभावोने पोताना कर्मपणे प्राप्त करे एवो पण आत्मानो त्रिकाळ स्वभाव
नथी; निर्मळ स्वभाव–भावने प्राप्त करे एवो ज आत्मानो स्वभाव छे. अज्ञानी एक समयना विकारने पोताना
कर्मपणे प्राप्त करे छे, ते तेनी पर्यायनी योग्यता छे, पण त्रिकाळी द्रव्यस्वभावमां तो विकारने प्राप्त करवानी योग्यता
नथी, जो द्रव्य स्वभावमां ज विकारने प्राप्त करवानी योग्यता होय तो ते कदी टळी शके नहि. आत्मानो शुद्ध स्वभाव
तो निर्मळ भावने ज कर्मपणे प्राप्त करवानो छे, एटले ते स्वभावना आश्रये निर्मळभाव प्राप्त करीने अनंत जीवो
विकार रहित सिद्ध परमात्मा थई गया छे, ने ए प्रमाणे सदाय बीजा जीवो पण सिद्ध थया ज करशे.–आ ज सिद्धिनो
पंथ छे.
उत्तरः– पहेला समये न होय ने बीजा समये निर्मळ कार्यरूपे आत्मा स्वयं परिणमी जाय,–पोते
वर्ते छे ते ते समयनो सिद्ध थयेलो भाव छे; पहेलां–पछीना भावनी के परनी तेने अपेक्षा नथी.
क्षणिक लागणी छे, तेनो तो नाश थई जाय छे. परंतु तेनो नाश थवाथी कांई आत्मानो नाश नहि थई जाय.
पुण्यनी लागणीमांथी आत्मानी शुद्धता प्राप्त न थई शके, पण शुद्ध जीवतत्त्व कायम टकनारुं छे तेना ज आधारे
आत्मानी शुद्धता प्राप्त थाय छे, अने ते ज आत्मानुं कर्म छे. एवा निर्मळ कर्मने प्रगट करीने तेनी साथे एकता
करे एवो आत्मानो स्वभाव छे, पण शुभाशुभ विकारी लागणीओ साथे एकता करीने तेने पोताना कर्मरूप
बनावे–एवो आत्मानो स्वभाव नथी. आ रीते, निर्मळ भावने प्राप्त करवानी द्रव्यनी शक्ति कीधी; अने ते
प्रमाणे द्रव्यना बधा गुणोमां पण एवो ज स्वभाव छे के पोतपोतानी निर्मळ पर्यायने कर्मरूपे प्राप्त करे ने
विकारने प्राप्त न करे.
नथी.
स्वभाव नथी.
–आत्माना आवा स्वभावने लक्षमां लईने ज्यां एकाग्र थयो त्यां ते स्वभावना आश्रये श्रद्धा–ज्ञान–
पण आकुळताबुद्धि (–भेदबुद्धि) त्यां रहेती नथी केमके पोतानी कर्मशक्तिथी पोते स्वयमेव निर्मळ कार्यरूपे थई
ज गयो छे.