Atmadharma magazine - Ank 173
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः ८ः आत्मधर्मः १७३
टेको लेवो पडतो नथी.–आवा आत्मस्वभावने जाणे तो सम्यग्दर्शनादि निर्मळ कार्य प्रगटे.
आत्मानो स्वभाव निर्मळ छे ने ते स्वभावना आश्रये निर्मळभावने पोताना कर्मपणे प्राप्त करे एवी
आत्मानी त्रिकाळ शक्ति छे. शरीर–मन–वाणी वगेरे परने पोताना कर्मपणे प्राप्त करे एवी शक्ति आत्मामां त्रण
काळमां नथी; अने पुण्य–पापरूप विकारभावोने पोताना कर्मपणे प्राप्त करे एवो पण आत्मानो त्रिकाळ स्वभाव
नथी; निर्मळ स्वभाव–भावने प्राप्त करे एवो ज आत्मानो स्वभाव छे. अज्ञानी एक समयना विकारने पोताना
कर्मपणे प्राप्त करे छे, ते तेनी पर्यायनी योग्यता छे, पण त्रिकाळी द्रव्यस्वभावमां तो विकारने प्राप्त करवानी योग्यता
नथी, जो द्रव्य स्वभावमां ज विकारने प्राप्त करवानी योग्यता होय तो ते कदी टळी शके नहि. आत्मानो शुद्ध स्वभाव
तो निर्मळ भावने ज कर्मपणे प्राप्त करवानो छे, एटले ते स्वभावना आश्रये निर्मळभाव प्राप्त करीने अनंत जीवो
विकार रहित सिद्ध परमात्मा थई गया छे, ने ए प्रमाणे सदाय बीजा जीवो पण सिद्ध थया ज करशे.–आ ज सिद्धिनो
पंथ छे.
पोताना शुद्ध स्वभावने भूलीने, पराश्रयबुद्धिथी मिथ्यात्व–रागादिने पोताना कर्मपणे अज्ञानी प्राप्त करे छे ते
संसार छे. ने शक्तिना अवलंबने सम्यग्दर्शनादिने पोताना कर्मपणे ज्ञानी प्राप्त करे छे, ते सिद्धिनो मार्ग छे.
प्रश्नः– पहेला समये सम्यग्दर्शनादि निर्मळ कार्य नथी तो बीजा समये ते क्यांथी प्राप्त थशे?
उत्तरः– पहेला समये न होय ने बीजा समये निर्मळ कार्यरूपे आत्मा स्वयं परिणमी जाय,–पोते
पोतामांथी ज निर्मळ कार्यने प्राप्त करे एवी तेनी कर्मशक्ति छे. स्वभावनो आश्रय करतां वर्तमान जे निर्मळभाव
वर्ते छे ते ते समयनो सिद्ध थयेलो भाव छे; पहेलां–पछीना भावनी के परनी तेने अपेक्षा नथी.
जेमांथी निर्मळतानी प्राप्ति थाय एवो आत्मानो स्वभाव छे, पण विकारनी प्राप्ति थाय एवो आत्मानो
स्वभाव नथी. विकार कांई आत्माना स्वभावमांथी प्राप्त नथी थतो, ते तो अद्धरथी (–पराश्रये) ऊभी थयेली
क्षणिक लागणी छे, तेनो तो नाश थई जाय छे. परंतु तेनो नाश थवाथी कांई आत्मानो नाश नहि थई जाय.
पुण्यनी लागणीमांथी आत्मानी शुद्धता प्राप्त न थई शके, पण शुद्ध जीवतत्त्व कायम टकनारुं छे तेना ज आधारे
आत्मानी शुद्धता प्राप्त थाय छे, अने ते ज आत्मानुं कर्म छे. एवा निर्मळ कर्मने प्रगट करीने तेनी साथे एकता
करे एवो आत्मानो स्वभाव छे, पण शुभाशुभ विकारी लागणीओ साथे एकता करीने तेने पोताना कर्मरूप
बनावे–एवो आत्मानो स्वभाव नथी. आ रीते, निर्मळ भावने प्राप्त करवानी द्रव्यनी शक्ति कीधी; अने ते
प्रमाणे द्रव्यना बधा गुणोमां पण एवो ज स्वभाव छे के पोतपोतानी निर्मळ पर्यायने कर्मरूपे प्राप्त करे ने
विकारने प्राप्त न करे.
जेम के ज्ञानगुणनो एवो स्वभाव छे के पोताना सम्यग्ज्ञानरूप कार्यने कर्मपणे प्राप्त करे; पण अज्ञानने,
विकारने के जडने पोताना कर्मपणे प्राप्त करे एवो ज्ञानशक्तिनो स्वभाव नथी.
ए ज प्रमाणे श्रद्धागुणमां एवो स्वभाव छे के पोताना स्वभावनी प्रतीतिरूप कार्यने (–सम्यग्दर्शनने)
पोताना कर्मपणे प्राप्त करे; पण मिथ्यात्वने, विकारने के जडने पोताना कर्मपणे प्राप्त करे एवो श्रद्धाशक्तिनो स्वभाव
नथी.
ए ज प्रमाणे आनंदगुणमां एवो स्वभाव छे के पोताना अतीन्द्रिय–अनाकुळ–आह्लादना वेदनने पोताना
कार्यपणे प्राप्त करे, पण आकुळता, दुःख के इन्द्रियविषयोने पोताना कर्मपणे प्राप्त करे एवो आत्मानी आनंदशक्तिनो
स्वभाव नथी.
ए प्रमाणे आत्माना बधा गुणोमां समजी लेवुं.
–आत्माना आवा स्वभावने लक्षमां लईने ज्यां एकाग्र थयो त्यां ते स्वभावना आश्रये श्रद्धा–ज्ञान–
आनंद वगेरेनुं निर्मळ कार्य वर्ते ज छे–एटले ते कार्य सिद्ध थयेलुं ज छे, तेथी ‘हुं निर्मळ कार्य प्राप्त करुं’ एवी
पण आकुळताबुद्धि (–भेदबुद्धि) त्यां रहेती नथी केमके पोतानी कर्मशक्तिथी पोते स्वयमेव निर्मळ कार्यरूपे थई
ज गयो छे.
स्वयं कार्यरूप थवाना आत्माना आवा स्वभावने जे ओळखे ते कोई ईश्वरने के बीजाने पोताना कार्यनो कर्ता
न माने; आ आत्मा कोईनुं कार्य छे–एम ते