ज्ञान थतुं नथी. आ रीते शुद्ध स्वभावरूप निश्चयना ज्ञान वगर रागादि व्यवहारनुं ज्ञान सम्यक् थतुं नथी; निश्चयना
ज्ञानपूर्वक ज व्यवहारनुं ज्ञान सम्यक् थाय छे.
एक एवी कर्मशक्ति छे के पोताना स्वभावमांथी प्रगट थता निर्मळभावमय थईने, आत्मा पोते पोतानुं कर्म थाय छे.
आवी शक्तिवाळा आत्माने जाणवो ते धर्मनुं मूळ छे.
उत्तरः– हुं मारी ज्ञानादि अनंतशक्तिओथी भरेलो छुं ने परनो एक अंश पण मारामां नथी–एम भेदज्ञान
परभावोनी पक्कड छूटी जाय छे, एटले श्रद्धा–ज्ञान अपेक्षाए त्यां सर्व परिग्रहने त्याग थई जाय छे.–आवो त्याग
थतां अनंत संसार छूटी जाय छे. मिथ्यात्वने लीधे रागादि एकत्वबुद्धिरूप जे पक्कड छे ते ज अनंतसंसारना कारणरूप
मोटो परिग्रह छे, ते परिग्रहनो त्याग केम थाय तेनी आ वात छे. मिथ्यात्वनो त्याग थया पछी ज अविरति वगेरेनो
त्याग थाय छे. अंतरमां अनंतगुणना पिंडनी जेने पक्कड नथी अने बाह्यमां त्यागी थईने एम माने छे के में परिग्रह
छोडयो,–पण अंतरमां रागनी रुचिने लीधे बधाय परिग्रहनी पक्कड तेने पडी छे, तेथी तेणे जरा पण परिग्रह छोडयो
एम जिनेन्द्र भगवानना मार्गमां स्वीकारवामां आवतुं नथी. अहीं तो कहे छे के आत्मा पोताना स्वभावथी निर्मळ
कार्यरूपे परिणमे छे, ते निर्मळ कार्यमां विकारी कार्यनो अभाव छे, एटले विकारना निमित्तरूप परिग्रहनी पक्कड पण
त्यां छूटी ज गई छे. ए रीते निर्मळ कार्यमां परिग्रह–त्याग पण आवी ज जाय छे.
आत्मा साथे तन्मय थईने आत्माने जाणे छे; अने रागने जाणनारुं ज्ञान रागमां तन्मय थया वगर ज तेने
जाणे छे. ज्ञान जो स्वसन्मुख थईने आत्मामां तन्मय न थाय तो ते आत्माने यथार्थपणे जाणी शकतुं नथी.
अने ज्ञान जो रागमां तन्मय थई जाय तो ते रागने जाणी शकतुं नथी; रागथी जुदुं रहे तो ज ते रागने जाणी
शके छे. ज्ञान स्वने तो तन्मय थईने जाणे छे ने परने–रागादिने तन्मय थया विना ज जाणे छे,–आवो ज
ज्ञाननो स्वभाव छे. आवा निर्मळ ज्ञानरूप कार्यने प्राप्त करीने, तेमां तन्मय थईने, आत्मा पोते पोताना
कर्मरूप थाय छे–एवी तेनी कर्मशक्ति छे.
स्वभाव कई रीते पकडाय? रागादि औदयिक भाववडे ते
स्वभाव पकडातो नथी; औदयिक भावो तो बहिर्मुख छे ने
पारिणामिक स्वभाव तो अंतर्मुख छे, ते बहिर्मुख भाववडे
अंतर्मुख भाव पकडाय नहि. हवे जे अंतर्मुखी उपशम–
क्षयोपशम के क्षायकभाव छे तेना वडे ते पारिणामिक
स्वभाव जो के पकडाय छे, परंतु ते उपशमादि भावोना
विकल्पवडे ते नथी पकडातो. अंतर्मुख थईने ए परम
स्वभावने पकडतां उपशमादि निर्मळ भावो प्रगटे छे. ते
भावो पोते कार्यरूप छे, ने परम पारिणामिक स्वभाव
कारणरूप परमात्मा छे.