Atmadharma magazine - Ank 173
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 15 of 25

background image
ः १४ः आत्मधर्मः १७३
मुश्केल थई पडयुं होय–एवा दाखला शुं जगतमां नथी देखाता? माटे तेनुं अभिमान छोड. कदाचित् पुण्योदय
अनुसार लक्ष्मीनो संयोग रहे तोय तेमां कांई सुख नथी, ते तो अध्रुव ने अशरण ज छे. (अहीं लक्ष्मीनी
मुख्यताथी वात करी छे, लक्ष्मीनी माफक शरीर, पुत्र, स्त्री, मित्र, मकान वगेरेमां पण योग्य समजी लेवुं.)
(२) वळी कोई एम माने के हुं तो धैर्यवाळो छुं, तो मारी लक्ष्मी हुं केम गुमावीश? पण अरे भाई!
तारुं धैर्य तारी पर्यायमां रहेशे, लक्ष्मी जवा टाणे तारुं धैर्य तेने नहि रोकी शके. तुं धैर्य राख माटे लक्ष्मीनो
वियोग न थाय–एम नथी. माटे एने अध्रुव जाणीने तेमांथी सुखबुद्धि छोड ने ध्रुवचैतन्यनी भावना कर.
(३) वळी कोई एम माने के हुं पंडित अने डाह्यो छुं तेथी मारी बुद्धिथी हुं लक्ष्मीने टकावी राखीश, तेने जवा
नहि दउं.–तो तेने कहे छे के अरे भाई! ए पण तारी भ्रमणा छे. शुं तारी विद्याने कारणे लक्ष्मी जती अटकी जशे?–
ना. एना संयोगनो काळ पूरो थतां तत्क्षण ते चाली जशे, तारी लाख बुद्धि के डहापण पण त्यां काम नहि आवे. मोटा
मोटा भणेला–बुद्धिवाळा पण आजीविका माटे रखडता जोवामां आवे छे छतां तेमने लक्ष्मी नथी मळती, अने बुद्धिना
बारदान अभण माणसोने पण लाखो रूपियानी पेदाश थती जोवामां आवे छे–माटे बुद्धि वडे लक्ष्मीनी रक्षा थई शकशे
ए पण भ्रमणा छे. भाई रे, लक्ष्मी तो पुण्य हशे त्यां सुधी रहेशे, तेमां तारी बुद्धि जोडवा करतां आत्मा हितमां तारी
बुद्धि जोडने!
(४) वळी, कोई एम अभिमान करे के हुं तो मोटो बळवान सुभट छुं, कोनी ताकात छे के मारी लक्ष्मी लई
शके! तो तेने कहे छे के–अरे मूढ! पुण्य खूटतां लक्ष्मी चाली जशे त्यां तारुं बळ काम नहि आवे. जती लक्ष्मीने तारुं
बळ नहि रोकी शके. मोटा मोटा राजना धणी महाबळवान राजाओ पण क्षणमां पायमाल थई गया, माटे ए बळनुं
अभिमान छोड ने चैतन्यने साधवामां तारुं बळ–पुरुषार्थ जोड. लक्ष्मी चाली जती हशे त्यां तारुं शरीरनुं बळ काम नहि
आवे; हा, जो ज्ञानबळ हशे तो ते आत्मानी शांति माटे काम आवशे. लक्ष्मी रहो के जाओ तेमां मारुं बळ नथी,–ते तो
अनित्य स्वभाववाळी ज छे एटले तेनो काळ पूरो थतां ते चाली जशे. आम जाणीने हे जीव! तुं तारा ज्ञानस्वरूपनी
भावना भाव. ए भावना आनंदनी जननी छे.
(प) वळी कोई एम माने के, हुं तो पूज्य छुं, लोको मने बहुमान आपे छे, माटे मारी लक्ष्मीने कोण ल्ये?
आम लक्ष्मीने ध्रुव मानी रह्या छे–ते पण अज्ञानी छे. लक्ष्मी तो अध्रुव छे, हरकोई प्रकारे तेनो संयोग छूटी जशे. अरे,
पोताना सगा हाथे जमीनमां लक्ष्मी दाटी होय, अने ज्यां काढवा जाय त्यां कोयला नीकळे! कोई लई गयुं न होय पण
लक्ष्मी पोते ज कोलसारूपे परिणमी जाय. आवुं पण बने छे.
(६) वळी कोई एम माने के हुं धर्मी छुं, हुं व्रतादि पुण्य करुं छुं, तो मारी लक्ष्मी क्यां जशे? पुण्यथी
तो लक्ष्मी मळे. तो तेने कहे छे के–अरे भाई! ज्ञानस्वभावनी भावना भाव, ने लक्ष्मीनी के पुण्यनी भावना
छोड. लक्ष्मी पुण्यथी मळे छे–ए वात खरी, परंतु पुण्य पोते पण अध्रुव छे ने तेनुं फळ पण अध्रुव छे. वळी
पुण्य करीने लक्ष्मी मेळववानी जे भावना छे ते तो पाप छे. जो पूर्वना पुण्य खूटयां तो, वर्तमान शुभ
परिणाम होवा छतां लक्ष्मी चाली जाय छे, माटे हे भाई, तुं समज के ए वस्तु ज आत्माने आधीन नथी,
आत्माने आधीन तो पोतानो ज्ञानानंदस्वभाव छे, माटे ते स्वभावनी ज भावना करवा जेवी छे. जड लक्ष्मी
कांई आत्माने सुखनी दातार नथी, आत्मानो ज्ञानस्वभाव ज आत्माने सुखनो दातार छे.–जे खरेखर धर्मी
छे ते तो आम जाणीने स्वभावनी ज भावना भावे छे. पण जे धर्मी न होवा छतां, कंईक दानादिना
शुभपरिणामथी पोताने धर्मी माने छे ने लक्ष्मीने ध्रुव मानीने तेनी भावना करे छे–एवा अज्ञानीने अहीं
समजाव्युं छे.
(७) वळी कोई एम अभिमान करे के हुं रूपवान छुं माटे मारी लक्ष्मी नहि जाय, तो ते पण व्यर्थ छे. भाई!
लक्ष्मी क्यां रूप–कुरूप जुए छे? कुरूपवाळाने त्यां पण लक्ष्मीना ढगला थाय छे, ने रूपवान पण दरिद्री देखाय छे.
शरीरना अवयवोमां