तारा आत्मा तरफ जो. बहारना भावो अनंत काळ कर्या छतां शांति न मळी, माटे हवे तो अंतर्मुख
था. आ संसार के संसारना संयोगो स्वप्ने पण इच्छवा जेवा नथी, अंतरनुं एक चिदानंद तत्त्व ज
भावना करवा जेवुं छे.
अनित्य जाणे छे तेने तेनो मोह छूटीने, अंतरमां नित्य चिदानंद तत्त्व तरफ वलण थाय छे ने तेमां ज लीनतानी
भावना थाय छे.
निर्विषयं कुरुष्व मनः येन सुखं उत्तमं लभते।।२२।।
पामीश. अमारो आ वैराग्य झरतो उपदेश सांभळीने, हे जीव! अनादिथी जेनी प्रीति करी छे एवा विषयोनी प्रीति
छोड, ने अनादिथी जेनी प्रीति नथी करी एवा चैतन्य तत्त्व साथे प्रीति जोडः चैतन्यस्वभावनी भावनाथी तारो
आत्मा परम सुखमय बनशे, परम आनंदमय अविनाशी सिद्धपदनी तने प्राप्ति थशे.
चिदानंदस्वरूपमां मग्न थया–एवा परम वैरागी
श्री आदिनाथ जिनेन्द्रदेवने नमस्कार हो.
छे? जो ते जाणवा चाहता हो तो तेनो उत्तर ए छे के–अविद्यानो नाश
करवाथी ज ते बुद्धिनुं रक्षण थई शके छे. मिथ्याज्ञानने अविद्या कहे छे,
अने अतत्त्वोमां तत्त्वबुद्धि होवी ते मिथ्याज्ञान छे. अरहंतदेवना कहेला
होय ते ज तत्त्व छे, अने अरहंत पण ते ज होई शके के जेओए दोष
अने आवरणोनो क्षय कर्यो होय. तेथी, पोताना मननो मेल (अर्थात्
बुद्धिनो दोष) दूर करवा माटे अरहंत देवना मतनो अभ्यास करवो
जोईए.