Atmadharma magazine - Ank 173
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४८४ः १९ः
– परम शांति दातारी –
अध्यात्म भावना
भगवानश्री पूज्य पादस्वामी रचित ‘समाधिशतक’
उपर परम पूज्य सद्गुरुदेवश्री कानजीस्वामीना अध्यात्मभावना
–भरपूर वैराग्यप्रेरक प्रवचनोनो सार.
(वीर सं. २४८२, जेठ सुद चोथ, समाधिशतक गा. १४–१प–१६)
तथा श्रुत पंचमीनुं प्रवचन
आत्माने समाधि केम थाय एटले के शांति केम थाय, आनंद केम थाय, सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र केम थाय–
तेनी आ वात छे.
देहथी भिन्न चिदानंदस्वरूप आत्मा छे–तेना ज अवलंबने शांति–समाधि थाय छे, देह ते ज हुं छुं–एम
शरीरमां आत्मबुद्धि करे छे ने अंतरना चैतन्यस्वरूपमां प्रवेश करतो नथी तेथी जीवने शांति–समाधि थती नथी.
चैतन्यस्वरूपमां प्रवेशवानो प्रयास करे तो ज शांति–समाधि थाय. जेम घरमां महावैभव भर्यो होय पण जो घरमां
प्रवेश न करे–ते तरफ मुख पण न फेरवे ने बीजी तरफ मुख राखे तो तेने ते वैभव क्यांथी देखाय? तेम आत्माना
चैतन्यघरमां ज्ञान–आनंद–शांतिनो अचिंत्य वैभव भर्यो छे पण जीव तेमां प्रवेश नथी करतो–ते तरफ मुख पण नथी
करतो ने बहिर्मुख रहे छे तेथी तेने पोताना निराकुळ आनंदनो स्वाद आवतो नथी; पोतानी चैतन्यसंपतिनुं तेने भान
नथी ने बहारनी जडसंपत्तिने ज आत्मानी माने छे, तेथी ते दुःखी छे.
बहारमां संपत्ति वधे त्यां जाणे के मारी वृद्धि थई, ने संयोग छूटे त्यां जाणे मारो आत्मा हणाई गयो–आ
प्रमाणे अज्ञानीने बहारमां ज आत्मबुद्धि छे. हुं तो बधाथी भिन्न ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा छुं, मारी संपत्ति मारामां ज
छे–एम निजस्वभावनी द्रढता करे तो मिथ्यात्व टळीने पहेलां सम्यग्दर्शनरूपी समाधि थाय; पछी पोताना
चिदानंदस्वरूपमां एवो लीन थाय के जगतने भूली जाय (एटले के तेनुं लक्ष छूटी जाय) ने रागद्वेष टळी जाय त्यारे
चारित्र–अपेक्षाए वीतरागी समाधि थाय छे. आ सिवाय बहारमां पोतापणुं माने तेने समाधि थती नथी, पण संसार
थाय छे.
आचार्यदेव बहिरात्माओ उपर करुणाबुद्धिथी कहे छे के हा! हतं जगत् अरेरे! आ बहिरात्म जीवो हत छे के
चैतन्यने चूकीने बहारमां ज आत्मबुद्धि करीने तेना संयोग–वियोगमां हर्ष–विषाद करे छे..बाह्यद्रष्टिथी जगतना जीवो
क्षणेक्षणे भावमरण करीने हणाई रह्या छे. अरेरे! खेद छे के आ जीवो हणाई