Atmadharma magazine - Ank 173
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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फागणः २४८४ः २१ः
(वीर सं. २४८२ जेठ सुद पंचमीः समाधिशतक गा. १६)
आजे श्रुतपंचमीनो महान दिवस छे; तेनो ईतिहास आ प्रमाणे छेः
वीतराग सर्वज्ञ अंतिम तीर्थंकर देवाधिदेव महावीर परमात्माना श्रीमुखथी दिव्यध्वनि द्वारा जे हितोपदेश
नीकळ्‌यो ते झीलीने गौतमगणधरदेवे एक मुहूर्तमां बार अंगनी रचना करी. बार अंगमां तो अपार श्रुतज्ञाननो
दरियो भर्यो छे. महावीर भगवानना मोक्ष पधार्या बाद गौतम स्वामी, सुधर्मस्वामी अने जंबुस्वामी ए त्रणे
केवळी, तथा आचार्य विष्णु, नंदि, अपराजित, गोवर्द्धन अने भद्रबाहु–ए पांच श्रुतकेवली भगवंतो १६२ वर्षमां
अनुक्रमे थया. त्यार पछी बार अंगेनुं ज्ञान परंपरा घटतुं घटतुं चाल्युं आवतुं हतुं, अने तेनो केटलोक भाग
धरसेनाचार्यदेवने गुरु परंपराथी मळ्‌यो हतो. महावीर भगवान मोक्ष पधार्या बाद ६८३ वर्षे धरसेनाचार्यदेव
थया.
तेओ आ सौराष्ट्रना गीरनार पर्वतनी चंद्रगुफामां बिराजता हता, तेओ अष्टांग
महानिमित्तना जाणनार अने भारे श्रुतवत्सल हता. भगवाननी परंपराथी चाल्या आवेला श्रुतना विच्छेदनो
भय थतां तेमणे महिमा नगरीमां धर्मोत्सव निमित्ते भेगा थयेला दक्षिणना आचार्यो उपर एक लेख मोकल्यो, ते
लेख द्वारा धरसेनाचार्यदेवना आशयने समजीने ते आचार्योए शास्त्रना अर्थने ग्रहण–धारण करवामां समर्थ,
महा विनयवंत, शीलवंत एवा बे मुनिओने धरसेनाचार्यदेव पासे मोकल्या; गुरुओ द्वारा मोकलवाथी जेमने
घणी तृप्ति थई छे, जेओ उत्तम देश, उत्तम कुळ अने उत्तम जातिमां उत्पन्न थयेला छे, समस्त कळाओमां
पारंगत छे, एवा ते बंने मुनिवरो त्रण वार आचार्य भगवंतोनी आज्ञा लईने धरसेनाचार्यदेव पासे आववा
नीकळ्‌या.
ज्यारे ते बंने मुनिवरो आवी रह्या हता त्यारे, अहीं धरसेनाचार्यदेवे रातना पाछला भागमां एवुं
शुभस्वप्न जोयुं के बे महा सुंदर सफेद बळद भक्तिपूर्वक त्रण प्रदक्षिणा दईने नम्रपणे चरणोमां नमी रह्या
छे.–आ प्रकारनुं मंगल स्वप्न देखवाथी संतुष्ट थईने आचार्यदेवे ‘
जयवंत हो श्रुतदेवता’ एवा वाक्यनुं
उच्चारण कर्युं.
ते ज दिवसे पूर्वोक्त बंने मुनिवरो आवी पहोंच्या, ने भक्तिपूर्वक आचार्यदेवना चरणोमां वंदनादि कर्यां.
महाधीर गंभीर अने विनयनी मूर्ति एवा ते बंने मुनिओए त्रीजे दिवसे धरसेनाचार्यदेव
पासे विनयपूर्वक निवेदन कर्युं के प्रभो! आ कार्यने माटे अमे बंने आपना चरणकमळमां
आव्या छीए. तेओए आवुं निवेदन कर्युं त्यारे ‘बहु सारुं, कल्याण हो’ एम आचार्यदेवे
आशीष वचन कह्या.
त्यारबाद, जो के शुभस्वप्न उपरथी ज ते बंने मुनिओनी विशेषता जाणी लीधी हती छतां फरीने परीक्षा
करवा माटे, धरसेनाचार्यदेवे ते बंने साधुओने बे मंत्रविद्या आपीने कह्युं के, बे दिवसना उपवासपूर्वक आ
विद्याने सिद्ध करो. परीक्षा करवा माटे आचार्यदेवे एक विद्याना मंत्रमां वधारे अक्षरो आप्या हता ने बीजामां
ओछा अक्षरो आप्या हता. बंने मुनिओने विद्या सिद्ध थतां बे देवीओ देखाणी, तेमां एकना दांत बहार
नीकळेला हता ने बीजी काणी हती. तेने जोईने मुनिओए विचार्युं के
‘देवताओ कदी विकृतांग होता
नथी’ माटे जरूर विद्याना मंत्रमां कंईक फेर छे. महासमर्थ एवा ते मुनिवरोए मंत्राक्षरो सरखा कर्या, जेमां
वधारे अक्षरो हता ते काढी नांख्या, ने जेमां ओछा अक्षरो हता ते पूरा कर्यां. पछी ते मंत्र पढतां बंने देवीओ
सरखा रूपमां देखाणी. भगवान धरसेनाचार्यदेव पासे जईने तेओए विनयपूर्वक समस्त वृत्तांत कहेतां
आचार्यदेवे संतुष्ट थईने तेमने भगवाननी सीधी परंपराथी चाल्युं आवेलुं अगाध श्रुतज्ञान भणाववानुं शरू
कर्युं; ने
अषाड सुद अगीयारसे सवारे ग्रंथ समाप्त थतां भूत जातना व्यंतरदेवोए आवीने