वीतराग सर्वज्ञ अंतिम तीर्थंकर देवाधिदेव महावीर परमात्माना श्रीमुखथी दिव्यध्वनि द्वारा जे हितोपदेश
दरियो भर्यो छे. महावीर भगवानना मोक्ष पधार्या बाद गौतम स्वामी, सुधर्मस्वामी अने जंबुस्वामी ए त्रणे
केवळी, तथा आचार्य विष्णु, नंदि, अपराजित, गोवर्द्धन अने भद्रबाहु–ए पांच श्रुतकेवली भगवंतो १६२ वर्षमां
अनुक्रमे थया. त्यार पछी बार अंगेनुं ज्ञान परंपरा घटतुं घटतुं चाल्युं आवतुं हतुं, अने तेनो केटलोक भाग
धरसेनाचार्यदेवने गुरु परंपराथी मळ्यो हतो. महावीर भगवान मोक्ष पधार्या बाद ६८३ वर्षे धरसेनाचार्यदेव
थया.
भय थतां तेमणे महिमा नगरीमां धर्मोत्सव निमित्ते भेगा थयेला दक्षिणना आचार्यो उपर एक लेख मोकल्यो, ते
लेख द्वारा धरसेनाचार्यदेवना आशयने समजीने ते आचार्योए शास्त्रना अर्थने ग्रहण–धारण करवामां समर्थ,
महा विनयवंत, शीलवंत एवा बे मुनिओने धरसेनाचार्यदेव पासे मोकल्या; गुरुओ द्वारा मोकलवाथी जेमने
घणी तृप्ति थई छे, जेओ उत्तम देश, उत्तम कुळ अने उत्तम जातिमां उत्पन्न थयेला छे, समस्त कळाओमां
पारंगत छे, एवा ते बंने मुनिवरो त्रण वार आचार्य भगवंतोनी आज्ञा लईने धरसेनाचार्यदेव पासे आववा
छे.–आ प्रकारनुं मंगल स्वप्न देखवाथी संतुष्ट थईने आचार्यदेवे ‘
पासे विनयपूर्वक निवेदन कर्युं के प्रभो! आ कार्यने माटे अमे बंने आपना चरणकमळमां
आव्या छीए. तेओए आवुं निवेदन कर्युं त्यारे ‘बहु सारुं, कल्याण हो’ एम आचार्यदेवे
आशीष वचन कह्या.
विद्याने सिद्ध करो. परीक्षा करवा माटे आचार्यदेवे एक विद्याना मंत्रमां वधारे अक्षरो आप्या हता ने बीजामां
ओछा अक्षरो आप्या हता. बंने मुनिओने विद्या सिद्ध थतां बे देवीओ देखाणी, तेमां एकना दांत बहार
नीकळेला हता ने बीजी काणी हती. तेने जोईने मुनिओए विचार्युं के
सरखा रूपमां देखाणी. भगवान धरसेनाचार्यदेव पासे जईने तेओए विनयपूर्वक समस्त वृत्तांत कहेतां
आचार्यदेवे संतुष्ट थईने तेमने भगवाननी सीधी परंपराथी चाल्युं आवेलुं अगाध श्रुतज्ञान भणाववानुं शरू
कर्युं; ने