Atmadharma magazine - Ank 173
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः २२ः आत्मधर्मः १७३
वाजिंत्रनादपूर्वक ते बंनेनी भारे पूजा करी. भूत नामना देवोए पूजा करी तेथी धरसेनाचार्यदेवे एकनुं
नाम ‘भूतबलि’ राख्युं, ने बीजा मुनिना दांत देवोए सरखा करी दीधा तेथी तेनुं नाम ‘पुष्पदंत’ राख्युं.
अने ए रीते धरसेनाचार्यदेवे श्रुतज्ञान भणावीने तरत ते पुष्पदंत अने भूतबलि मुनिवरोने त्यांथी विदाय
आपी.
त्यारबाद ते बंने मुनिवरोए ते श्रुतज्ञानने षट्खंडागम रूपे गूंथ्युं..ने ए रीते श्रुतज्ञाननो प्रवाह वहेतो
राख्यो.
महावीर भगवाने जे कह्युं अने अत्यारे महाविदेहमां सीमंधर भगवान जे कही रह्या छे तेनो अंश आ
शास्त्रोमां छे.
राग–द्वेष–मोह रहित वीतरागी पुरुषोए रचेली आ वाणी छे. सर्वज्ञ भगवाननी परंपराथी
चाल्युं आवेलुं आवुं श्रुतज्ञान टकी रह्युं तेथी चतुर्विध संघे भेगा थईने अंकलेश्वरमां घणा ज मोटा
महोत्सवपूर्वक जेठ सुद पांचमे श्रुतज्ञाननुं बहुमान कर्युं, त्यारथी आ दिवस ‘श्रुतपंचमी’ तरीके
प्रसिद्ध थयो, अने दर वर्षे ते उजवाय छे.
अत्यारे तो तेनो विशेष प्रचार थतो जाय छे, ने घणे ठेकाणे तो आठ
दिवस सुधी उत्सव करीने श्रुतज्ञाननी प्रभावना थाय छे. आ श्रुतपंचमीनो दिवस घणो महान छे. अहो, सर्वज्ञ
भगवाननी वाणी दिगंबर संतोए टकावी राखी छे.
पुष्पदंत अने भूतबलि आचार्यभगवंतोए जे षट्खंडागम रच्या तेना उपर वीरसेनाचार्यदेवे धवला
नामनी महान् टीका रची छे. ते वीरसेनाचार्य पण एवा समर्थ हता के सर्वार्थगामिनी (–सकल अर्थमां
पारंगत) एवी तेमनी नैसर्गिक प्रज्ञाने देखीने बुद्धिमान लोकोने सर्वज्ञनी सत्तामां संदेह न
रहेतो, अर्थात् तेमनी अगाध ज्ञानशक्तिने जोतां ज बुद्धमानोने सर्वज्ञनी प्रतीत थई जती.
आवी अगाध शक्तिवाळा आचार्यदेवे षट्खंडागमनी टीका रची. आ परमागम सिद्धांतशास्त्रो
सेंकडो वर्षोथी ताडपत्र उपर लखेला मूळबिद्रीना शास्त्रभंडारोमां विद्यमान छे. थोडाक वर्षो
पहेलां तो तेनां दर्शन पण दुर्लभ हता..पण पात्र जीवोना महाभाग्ये आजे ते बहार प्रसिद्ध
थई गया छे.
आचार्यभगवंतोए सर्वज्ञभगवाननी वाणीनो सीधो नमूनो आ शास्त्रोमां भर्यो छे. ए उपरांत बीजा
पण अनेक महासमर्थ आभना थोभ जेवा कुंदकुंदाचार्यदेव वगेरे संतो जैनशासनमां पाकया, ने तेमणे
समयसारादि अलौकिक महाशास्त्रो रच्यां..
तेनो एकेक अक्षर आत्माना अनुभवमां कलम
बोळीबोळीने लखायो छे. ए संतोनी वाणीनां ऊंडा रहस्यो गुरुगम वगर साधारण जीवो समजी
शके तेम नथी.
महावीर भगवाननी परंपराथी केटलुंक ज्ञान मळ्‌युं तथा पोते सीमंधर भगवानना उपदेशनुं
साक्षात् श्रवण कर्युं ते बंनेने आत्माना अनुभव साथे मेळवीने आचार्य भगवाने श्री समयसारमां भरी दीधुं
छे. आ समाधिशतकनां बीजडां पण समयसारमां ज भर्या छे. पूज्यपादस्वामी पण महासमर्थ संत हता, तेमणे
आ समाधिशतकमां टूंकामां अध्यात्म भावना भरी दीधी छे. तेमांथी पंदर गाथाओ वंचाणी छे, हवे सोळमी
गाथा वंचाय छे.
* * *
आ आत्मा ज्ञानानंदस्वरूप छे, ते आत्माने जाणीने जेणे आत्मामां ज आत्मबुद्धि करी ते अंतरात्मा थयो,
अने पूर्वे कदी नहि थयेलो एवो अपूर्व लाभ तेने थयो. ज्यां ‘अलब्धलाभ’ थयो एटले पूर्वे कदी जे नहोतो पाम्यो
तेनी प्राप्ति थई, त्यां धर्मीने एम थाय छे के अहो! मारो आवो ज्ञानानंदस्वरूप आत्मा छे तेने में पूर्वे कदी न जाण्यो..
ने बहिरात्मबुद्धिथी अत्यार सुधी हुं रखडयो. हवे मने मारा अपूर्व आत्मस्वभावनुं भान थयुं. आ रीते अलब्ध
आत्मानी प्राप्तिनो संतोष थयो के अहो! मने अपूर्व लाभ मळ्‌यो, पूर्वे मने कदी आवा आत्मानी प्राप्ति नहोती थई.
पूर्वे हुं आवा आत्माथी च्युत थईने बाह्यविषयोमां ज वर्त्यो,–पण हवे आत्माना अतीन्द्रिय आनंदनी प्राप्तिथी संतुष्ट
थयो.–ए वात १६ मी गाथामां कहे छे–