Atmadharma magazine - Ank 173
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 5 of 25

background image
ः ४ः आत्मधर्मः १७३
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
(४१)
कर्मशक्ति
‘कर्मशक्ति’ कहेतां जड कर्मनी
शक्तिनी आ वात नथी, परंतु पोताना
सम्यग्दर्शनादि कर्मरूपे (कार्यरूपे) पोते
परिणमे एवी आत्मानी कर्मशक्ति छे;
ते शक्तिनुं आ वर्णन छे. पू. गुरुदेवनुं
आ प्रवचन मुमुक्षुजीवोने खास
मननीय छे.
क्रियाशक्तिमां आत्माना स्वाभाविक छ कारको बताव्या; हवे छ शक्तिओमां ते स्वभाविक छए कारकोनुं जुदुं
जुदुं वर्णन करीने आचार्यदेव वधारे स्पष्टता करे छे.
“प्राप्त करातो एवो जे सिद्धरूप भाव ते–मयी कर्मशक्ति छे.”
व्याकरणमां छ कारको अने एक संबंध एम सात विभक्ति आवे छे, ते साते विभक्तिओने अहीं सात
शक्तिरूपे वर्णवीने आत्मानुं एकत्व–विभक्त स्वरूप बताव्युं छे. परमार्थ विभक्ति तेने कहेवाय के जे आत्माने परथी
विभक्त करे. स्वमां एकत्व ने परथी विभक्त एवो आत्मानो स्वभाव छे. कर्ता–कर्म–करण वगेरे छ कारक अने एक
संबंध ए साते विभक्ति आत्माने परथी विभक्त–जुदो बतावे छे. छेल्ली संबंधशक्ति कहेशे ते संबंधशक्ति पण कांई
आत्मानो पर साथे संबंध नथी बतावती, पण पोतामां ज स्व–स्वामी संबंध बतावीने पर साथेनो