संबंध तोडावे छे; ए रीते परथी भिन्न आत्माने बतावे छे. आवा विभक्त आत्माने जाण्या वगर “आ
शब्दनी आ विभक्ति ने फलाणा शब्दनी फलाणी विभक्ति” एम व्याकरण भणी जाय तेथी कांई कल्याण न
थाय. जेणे बधाथी विभक्त आत्माने जाण्यो तेणे बधी विभक्ति जाणी लीधी. आत्माने परनी साथे
कर्ताकर्मपणुं माने, परने साधन माने के परने आधार माने तेणे आत्मानी विभक्तिने (–परथी भिन्नताने)
जाणी नथी.
कर्ता–करण वगेरे बतावशे. वर्णनमां तो क्रमथी कथन आवे, वस्तुमां कांई छ कारको क्रमे क्रमे नथी, वस्तुमां तो एक
साथे ज छए कारकरूप परिणमन छे.
स्वभावमांथी जे सम्यग्दर्शनादि निर्मळपर्यायरूप कार्य प्राप्त करवामां आवे तेनी वात छे. शुद्ध द्रव्य स्वभावनुं
अवलंबन लेतां क्षणे क्षणे नवो नवो निर्मळभाव प्राप्त थाय छे; ते प्राप्त थतो भाव सिद्धरूप छे एटले के प्रसिद्ध
थई गयेलो छे–प्रगटेलो छे. वस्तुमां शक्तिपणे तो अनादिथी हतो पण हवे ते भाव प्रसिद्ध थयो–पर्यायमां
व्यक्त थयो एटले तेने सिद्धरूप भाव कह्यो छे. ‘सिद्धरूप भाव’ मां एकली सिद्धदशा न लेवी पण
सम्यग्दर्शनादि बधी निर्मळपर्यायो सिद्धरूप भावमां आवी जाय छे. ते प्राप्त करातो सिद्धरूप भाव ते कर्म छे,
आत्मा पोतानी शक्तिथी ते रूप थाय छे एवी तेनी कर्मशक्ति छे. आ शक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे. पण तेनुं
भान थतां निर्मळपर्यायरूप कार्यनी (–कर्मनी) प्राप्ति नवी थाय छे, पहेलां निमित्ताधीन बाह्यद्रष्टि वखते
निर्मळभावनी प्राप्ति न हती ने शक्तिनुं पण भान न हतुं; हवे स्वभावशक्तिनुं भान थतां तेना आश्रये
सम्यग्दर्शनादि निर्मळभावने कर्मपणे प्राप्त कर्यो. द्रव्यनी शक्तिमां तो ते भाव अनादिथी सिद्ध थयेलो हतो पण
पर्यायमां तेनी प्राप्ति नवी थई...पर्यायमां कर्मपणे व्यक्त थतां तेने सिद्धरूप भाव कह्यो. ते ते समयनी सिद्धरूप
निर्मळपर्यायरूपे थवानी ताकात द्रव्यमां पडी छे, ते द्रव्य स्वभावना आश्रये आत्मा निर्मळ कर्मरूपे ज परिणमे
छे,–विकारी कर्मरूपे परिणमतो नथी, एवो ज आत्मानो स्वभाव छे. द्रव्यद्रष्टिवडे ज आवा स्वभावनी प्रतीत
थाय छे. अने आवा स्वभावनी प्रतीत करतां तेनी सन्मुखताथी अनंतगुणो पोतपोताना निर्मळ कार्यरूप
परिणमी जाय छे. जे निर्मळ कार्य करवुं छे ते कार्यरूप थवानी ताकात पोतामां त्रिकाळ छे. कर्मशक्तिथी आत्मा
पोते निर्मळ–निर्मळभावरूपे प्राप्त थाय छे–निर्मळभावरूप कर्मपणे पोते ज परिणमे छे.
तारी स्वभावशक्तिने संभाळतां तुं पोते ज तन्मयपणे तारा सम्यग्दर्शनादि कार्यरूपे परिणमी जईश, एवी तारी
कर्मशक्ति छे.
सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धपद सुधीना भावोने प्राप्त करीने तन्मयपणे परिणमे छे, एटले के पोताना कर्मपणे
पोते ज थाय छे. जे जीव आत्मानी आवी कर्मशक्तिनी प्रतीत करे तेने जड कर्मना संबंधनो अभाव थया विना
रहे नहि.
(१) जडरूप ज्ञानावरणादि द्रव्यकर्म
(२) राग–द्वेष–मोहादि विकाररूप भावकर्म
(३) सम्यग्दर्शनादि निर्मळ पर्यायरूप कर्म
(४) आत्माना त्रिकाळ स्वभावरूप कर्मशक्ति
(१) द्रव्यकर्म ते पर छे, (२) भावकर्म ते विभाव