Atmadharma magazine - Ank 174
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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चैत्रः २४८४ः ९ः
रस्रने पी रह्या छे, स्वरूपमां एकमां ज अभिमुख थईने वर्ते छे, स्वरूपथी बहार आवीने
व्यवहारनो जराक विकल्प ऊठे तो तेटलो पण अयथाचार छे, आ मुनिराज स्वरूपथी बहार
नीकळता नहि होवाथी ‘अयथाचार रहित’ छे, ने नित्य ज्ञानी छे. आवा साक्षात् श्रमणने
मोक्षतत्त्व जाणवुं.
मोक्षतत्त्व तरीके अहीं ‘सिद्ध’ ने न लेतां, जे अप्रतिहतपणे अंर्तस्वरूपमां लीन थया छे ने तेमांथी हवे बहार
नीकळवाना नथी एवा साधुने अहीं मोक्षतत्त्व कह्युं छे. आम नजरोनजर पोतानी सामे जाणे के मुक्त
थवानी क्रियारूपे साधु परिणमी रह्या होय–ए रीते तेमने मोक्षतत्त्व तरीके आचार्यदेव वर्णवे छेः
अहा! चिदानंदस्वरूपमां अप्रतिहतपणे जे लीन थया एवा मुनि ते मोक्षतत्त्व छे, केम के चैतन्यमां लीन थईने
आनंदनी मोजपूर्वक पूर्वनां समस्त कर्मोनुं फळ तेणे नष्ट कर्युं छे ने नवां कर्मो जरा पण बांधता नथी, तेथी तेओ फरीने
प्राणधारणरूप दीनताने पामता नथी, आ रीते कर्मोथी मुक्त थवानी क्रियारूपे ज परिणमी रह्या होवाथी ते मुनिने
मोक्षतत्त्व जाणवुं.
आ रीते पहेलां संसारतत्त्व अने पछी मोक्षतत्त्व प्रगट कर्युं. तत्त्वोनी विपरीत श्रद्धावाळा अविवेकी द्रव्यलिंगी
श्रमणाभासने संसारतत्त्वमां लीधा, ने परम विवेकथी तत्त्वश्रद्धा करीने चैतन्यना आनंदमां अछिन्नपणे लीन वर्तता
भावलिंगी श्रमणराजने मोक्षतत्त्व कह्या.
नमस्कार हो ए चरमशरीरी मुनिभगवंतोने!
(बीजा रत्ननो प्रकाश अहीं पूर्ण थयो.)
* * *
त्रीजुं रत्न
हवे आ त्रीजुं रत्न, मोक्षतत्त्वना साधनतत्त्वने प्रकाशित करे छेः
जाणी यथार्थ पदार्थने,
तजी संग अंतर्बाह्यने,
आसक्त नहि विषयो विषे जे,
‘शुद्ध’ भाख्या तेमने. २७३
जुओ, अहीं शुद्धोपयोगरूपे परिणमेला मुनि भगवंतने ज मोक्षतत्त्वना साधन तत्त्व तरीके कह्या छे. भगवान
अर्हंत देवे जैन शासनमां कहेला मोक्षना साधनने आ सूत्ररत्न प्रकाशित करे छे. अर्हंतदेवना शासनमां कहेला मोक्ष
साधननुं सर्वतः संक्षेपथी कथन करतां आ सूत्र कहे छे के स्वरूपगुप्त प्रशांत परिणतिवाळा सकळ महिमावंत भगवंत
शुद्धोपयोगी संतो ज मोक्षनुं साधनतत्त्व छे, केमके कर्मबंधनने तोडीने मुक्त थवा माटेनो अति उग्र प्रयत्न तेओ करी
रह्या छे. अतिउग्र प्रयत्न कह्यो ते कयो?–के अंतरमां शुद्धोपयोग वर्ते छे ते ज कर्मने छेदनार अतिउग्र प्रयत्न छे.
शुद्धोपयोग सिवाय बीजो कोई खरेखर मोक्षनो प्रयत्न के मोक्षनुं साधन नथी.–एम प्रसिद्ध करीने आ त्रीजुं रत्न
अर्हंतदेवना शासनने प्रकाशे छे.
हवे, मोक्षना साधनरूप शुद्धोपयोगरूपे परिणमेला संतो केवा छे? ते कहे छे. प्रथम तो अनेकान्त वडे जणातुं जे
सकळ ज्ञातृतत्त्वनुं अने ज्ञेयतत्त्वनुं यथास्थित स्वरूप तेना पांडित्यमां जे प्रवीण छे. जुओ आ पंडिताई! शास्त्रो भणी
भणीने भले मोटा मोटा पंडित नाम धरावे पण अंतरमां ज्ञातातत्त्व कोण छे ने ज्ञेयतत्त्व शुं छे? तेनो जेने निर्णय
नथी ते पंडिताईमां प्रवीण नथी पण मूर्ख छे. जेणे अंतर्मुख थईने ज्ञाता अने ज्ञेय तत्त्वोने अनेकान्त वडे जाणीने
तेमनो बराबर निर्णय कर्यो छे ते भले शास्त्रो न पढयो होय तो पण ते पंडिताईमां प्रवीण छे. आवा पांडित्यमां
प्रवीण शुद्धोपयोगी संतो पोते ज मोक्षना साधन छे.
मोक्षना साधनरूप आ शुद्धोपयोगी संतो प्रथम तो अनेकान्तवडे ज्ञाता–ज्ञेय तत्त्वना पांडित्यमां प्रवीण छे;
वळी ते केवा छे? जेमणे अंतरंगमांथी मोह–राग–द्वेषनो संग छोडयो छे ने बहिरंगमां वस्त्रादिनो संग छोडयो छे; आ
रीते समस्त अंतरंग तथा बहिरंग संगतिना परित्यागवडे ते संतोए अंतरमां चकचकित अनंत शक्तिवाळा
चैतन्यतत्त्वना स्वरूपने विविक्त कर्युं छे, एटले के मोहादि परभावोथी चैतन्यना निज स्वरूपने जुदुं पाडी दीधुं