चैत्रः २४८४ः ११ः
अहा! मुमुक्षुना सकळ मनोरथनुं स्थान होय तो एक आ शुद्धोपयोग ज छे...आचार्यदेव कहे छे के बस! एक
शुद्धोपयोगनो ज अमने मनोरथ छे, विकल्प ऊठे छे तेनो मनोरथ नथी, तेनी भावना नथी. भावना तो शुद्धोपयोगनी
ज छे. मोक्षार्थीना सकळ मनोरथनी सिद्धि शुद्धोपयोगवडे ज थाय छे. शुद्धोपयोगरूपे परिणमेला संतने श्रमणपणुं कह्युं
छे, ज्ञान–दर्शन पण तेने ज कह्या छे, निर्वाण पण तेने ज छे, अने ते ज सिद्ध छे, अहो! तेने नमस्कार हो, एटले के
आ आत्मानुं ते रूपे परिणमन हो.
मोक्षनुं साधनतत्त्व तो शुद्धोपयोग ज छे, देहादिनी क्रिया तो जड छे, हिंसादिभाव तेमज मिथ्यात्वादि ते अशुभ
पापाचरण छे ने दयादिभावो ते शुभआचरण छे; आ कोई मोक्षनुं साधन नथी. मोक्षनुं कारण तो शुद्धोपयोग छे.
शुद्धोपयोगी संतमुनिओने ज खरेखरुं श्रामण्य छे, ने शुभोपयोगी मुनिओने तो तेमनी पाछळ पाछळ (गौणपणे)
लेवामां आवे छे. ते शुभोपयोगी मुनिने पण साथे साथे सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी शुद्धपरिणति तो
वर्ते ज छे, अने जेटली शुद्ध परिणति छे तेटलुं ज मोक्षसाधन छे; बाकी जे राग रह्यो छे ते
मोक्षसाधन नथी. आवी श्रद्धा पण जे न करे ने रागने ज मोक्षसाधन माने तेने तो हजी प्राथमिक
सम्यग्दर्शननी शुद्धि पण नथी, तो पछी चारित्ररूप मुनिदशा तो क्यांथी होय? ने चारित्रदशा वगर मोक्षसाधन
केवुं? शुद्धोपयोगरूपे परिणमेला संत ते ज साक्षात् मोक्षमार्ग छे, पोतानी मोक्षदशानुं ते पोते ज
छे.
सातमा गुणस्थाने वर्तता शुद्धोपयोगी मुनिओने श्रामण्यमां मुख्य लीधा छे, ने छठ्ठे वर्तता
शुभोपयोगी मुनिओने तो पछी पाछळ पाछळ लीधा छे एटले के गौणपणे लीधा छे. शुद्धोपयोगीनुं मुख्यपणुं
कहीने तेने ज अभिनंदनीय अने उपादेय बताव्या छे, ने शुभोपयोगीनुं गौणपणुं कहीने ते शुभरागनुं हेयपणुं
बताव्युं छे.
अहा! जुओ, आ परम सत्य मार्ग!! भगवान सीमंधर परमात्मा पूर्वदिशामां विदेह क्षेत्रे अत्यारे
बिराजी रह्या छे, त्यां जईने कुंदकुंदाचार्य देव भगवान पासेथी दिव्यध्वनि सांभळी आव्या, ने पछी तेमणे आ
शास्त्रोमां परम सत्य मार्गनी रचना करी. अहा, केवो सत्य मार्ग!! केवो चोकखो मार्ग!! केवो प्रसिद्ध मार्ग!
पण अत्यारे लोको शास्त्रना नामे पण मार्गनी मोटी गरबड ऊभी करी रह्या छे. शुं थाय? एवो ज काळ! पण
सत्य मार्ग तो जे छे ते ज रहेवानो छे. शुद्धोपयोगरूप साक्षात् मोक्षमार्ग त्रणे काळे जयवंत छे, ते ज
अभिनंदनीय छे.
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी एकतारूप जे साक्षात् मोक्षमार्गस्वरूप श्रामण्य ते शुद्धोपयोगीने ज होय छे, माटे
ते ज मोक्षार्थीना मनोरथनुं स्थान छे.
त्रणे काळनी समस्त पर्यायो सहित समस्त वस्तुओने प्रत्यक्ष जाणनार–देखनार एवा केवळज्ञान ने
केवळदर्शन पण शुद्धोपयोगीने ज थाय छे, माटे ते शुद्धोपयोग ज मोक्षार्थीना सर्व मनोरथनुं स्थान छे.
सहज ज्ञान ने आनंद जेनी मुद्रा छे एवा दिव्य स्वभाववाळुं जे निर्वाण, ते पण शुद्धोपयोगीने ज थाय छे,
माटे मोक्षार्थीने ते शुद्धोपयोगनो ज मनोरथ छे.
टंकोत्कीर्ण परमानंदरूप अवस्थाओमां स्थित आत्मस्वभावनी उपलब्धिथी जे गंभीर छे एवुं सिद्धपद, ते पण
शुद्धोपयोग वडे पमाय छे. आ रीते सर्वे इष्टनी प्राप्तिना साधनभूत होवाथी शुद्धोपयोग ते सर्वे मनोरथनुं
स्थान छे, ने ते ज मोक्षार्थी जीवोए अभिनंदनीय छे. आत्मा शुद्धोपयोगरूपे परिणमे ते मोक्षार्थीनो
मनोरथ छे.
अहा! स्पष्ट मोक्षमार्गने प्रसिद्ध करतां आचार्यदेव कहे छे के–
शुद्धोपयोग ज मोक्षनुं साधन छे, बीजुं साधन नथी.