Atmadharma magazine - Ank 174
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १२ः आत्मधर्मः १७४
शुद्धोपयोग ज अभिनंदनीय छे, बीजुं अभिनंदनीय नथी.
शुद्धोपयोग ज मोक्षार्थीनो मनोरथ छे, बीजो मनोरथ नथी.
भगवान अर्हंतदेवना आवा शासनने (आवा उपदेशने, आवा मार्गने) आ पांच सूत्ररत्नो प्रकाशित करे छे.
* मोक्षना साक्षात् साधनरूप श्रामण्य शुद्धोपयोगीने ज होय छे, बीजाने नहि.
* केवळज्ञान अने केवळदर्शन पण शुद्धोपयोगीने ज थाय छे, बीजाने नहि.
* परम ज्ञान–आनंदरूप निर्वाणपद पण शुद्धोपयोगीने ज थाय छे, बीजाने नहि.
* परमानंदरूप आत्मस्वभावनी प्राप्तिरूप सिद्ध पद पण शुद्धोपयोगीने ज होय छे, बीजाने नहि.
–वधारे शुं कहीए! आटलाथी बस थाओ!! सर्व मनोरथना स्थानरूप एवा आ शुद्धोपयोगने तद्रूपे
परिणमीने अभेदभावे नमस्कार हो.
अहो..अंतरमां चिदानंद तत्त्वने पकडीने उपयोग स्थिर थाय ते ज मुक्तिनो उपाय छे, ते अमृत छे, ते
ज धर्मीना सर्वे मनोरथनुं स्थान छे. धर्मात्माना मनोरथनुं चक्र शुद्ध चैतन्यस्वभाव उपर ज चाले छे, विकारना
मार्ग उपर तेना मनोरथनुं चक्र चालतुं नथी. शुद्धोपयोगवडे ज मुनिदशा अंगीकार थाय छे. सम्यग्दर्शननी
उत्पत्ति पण शुद्धोपयोगपूर्वक थाय छे. आ रीते शुद्धोपयोग ज धर्म छे, ते ज परमार्थ मोक्षसाधन छे. साक्षात्
शुद्धोपयोगरूप परिणमवुं ते शुद्धोपयोगी संतने अभेद नमस्कार छे; तेमां नमस्कार करनार हुं ने मारे नमस्कार
करवा योग्य बीजा– एवा स्वपरना भेदनो विकल्प तोडीने, निर्विकल्पपणे पोते पोताना स्वरूपमां
नम्या..एटले जे नमस्कार करवा योग्य हता ते रूपे पोते ज परिणमी गया..आ रीते शुद्धोपयोगरूपे परिणमीने
आचार्य भगवाने शुद्धोपयोगीने भावनमस्कार कर्या, अने तेने ज सर्व मनोरथना स्थान तरीके अभिनंदन
कर्युं.
आ रीते, शुद्धोपयोग ज मोक्षसाधन छे–एम कहीने, आ चोथा रत्नमां तेने सर्व मनोरथना स्थान तरीके
अभिनंदन कर्या..नमस्कार कर्या.
(चोथा रत्ननो प्रकाश अहीं पूरो थयो.)
* * *
पांचमुं रत्न
शास्त्र पूरुं करतां पहेलां, भगवान आचार्यदेव शिष्यजनोने शास्त्रना फळ साथे जोडे छे–
साकार अण–आकार चर्यायुक्त आ उपदेशने
जे जाणतो, ते अल्पकाळे सार प्रवचननो लहे. २७प.
शास्त्रनुं फळ शुं छे तेने आ पाचमुं रत्न प्रकाशे छे. श्रुतज्ञानने अंतर्मुख करीने तेना प्रभाववडे केवळ आत्मानो
अनुभव करवो ते आ शास्त्रनो उपदेश छे; जे जीव ए प्रमाणे आत्माने अनुभवे ते जीव ज्ञान ने आनंदथी भरपूर
एवा अभूतपूर्व सिद्धपदने पामे छे–ए ज आ शास्त्रने जाणवानुं फळ छे.
जुओ, आ शास्त्रने जाणवानुं फळ अपूर्व ज्ञानानंद स्वभावनी प्राप्ति छे; पण शास्त्रने कई रीते जाणवुं? के
समस्त शास्त्रोना अर्थना विस्ताररूप के संक्षेपरूप श्रुतज्ञानउपयोगपूर्वक प्रभाववडे केवळ आत्माना अनुभव सहित जे
शिष्यो आ उपदेशने जाणे छे ते खरेखर अपूर्व ज्ञानानंदस्वरूप आत्माने पामे छे. जेओ श्रुतज्ञानवडे केवळ आत्माने
अनुभवे छे तेओए ज खरेखर समस्त शास्त्रनुं रहस्य जाण्युं छे. शास्त्रनो उपदेश पण ए ज छे के ज्ञान उपयोगने
अंतरमां वाळीने केवळ आत्मानो अनुभव करवो;–तेथी जे शिष्य तेम करे छे तेणे ज समस्त शास्त्रना उपदेशने जाण्यो
छे, अने ए रीते आ शास्त्रना उपदेशने जे जाणे छे ते शिष्यवर्ग अपूर्व आत्मिक सिद्धिने पामे छे. आ प्रमाणे आ
पांचमुं रत्न शास्त्रना फळने प्रकाशे छे.
आ प्रवचनसारे शुं कह्युं? अने तेना श्रोता