शुद्धोपयोग ज मोक्षार्थीनो मनोरथ छे, बीजो मनोरथ नथी.
भगवान अर्हंतदेवना आवा शासनने (आवा उपदेशने, आवा मार्गने) आ पांच सूत्ररत्नो प्रकाशित करे छे.
* मोक्षना साक्षात् साधनरूप श्रामण्य शुद्धोपयोगीने ज होय छे, बीजाने नहि.
* केवळज्ञान अने केवळदर्शन पण शुद्धोपयोगीने ज थाय छे, बीजाने नहि.
* परम ज्ञान–आनंदरूप निर्वाणपद पण शुद्धोपयोगीने ज थाय छे, बीजाने नहि.
* परमानंदरूप आत्मस्वभावनी प्राप्तिरूप सिद्ध पद पण शुद्धोपयोगीने ज होय छे, बीजाने नहि.
–वधारे शुं कहीए! आटलाथी बस थाओ!! सर्व मनोरथना स्थानरूप एवा आ शुद्धोपयोगने तद्रूपे
मार्ग उपर तेना मनोरथनुं चक्र चालतुं नथी. शुद्धोपयोगवडे ज मुनिदशा अंगीकार थाय छे. सम्यग्दर्शननी
उत्पत्ति पण शुद्धोपयोगपूर्वक थाय छे. आ रीते शुद्धोपयोग ज धर्म छे, ते ज परमार्थ मोक्षसाधन छे. साक्षात्
शुद्धोपयोगरूप परिणमवुं ते शुद्धोपयोगी संतने अभेद नमस्कार छे; तेमां नमस्कार करनार हुं ने मारे नमस्कार
करवा योग्य बीजा– एवा स्वपरना भेदनो विकल्प तोडीने, निर्विकल्पपणे पोते पोताना स्वरूपमां
नम्या..एटले जे नमस्कार करवा योग्य हता ते रूपे पोते ज परिणमी गया..आ रीते शुद्धोपयोगरूपे परिणमीने
आचार्य भगवाने शुद्धोपयोगीने भावनमस्कार कर्या, अने तेने ज सर्व मनोरथना स्थान तरीके अभिनंदन
कर्युं.
जे जाणतो, ते अल्पकाळे सार प्रवचननो लहे. २७प.
एवा अभूतपूर्व सिद्धपदने पामे छे–ए ज आ शास्त्रने जाणवानुं फळ छे.
शिष्यो आ उपदेशने जाणे छे ते खरेखर अपूर्व ज्ञानानंदस्वरूप आत्माने पामे छे. जेओ श्रुतज्ञानवडे केवळ आत्माने
अनुभवे छे तेओए ज खरेखर समस्त शास्त्रनुं रहस्य जाण्युं छे. शास्त्रनो उपदेश पण ए ज छे के ज्ञान उपयोगने
अंतरमां वाळीने केवळ आत्मानो अनुभव करवो;–तेथी जे शिष्य तेम करे छे तेणे ज समस्त शास्त्रना उपदेशने जाण्यो
छे, अने ए रीते आ शास्त्रना उपदेशने जे जाणे छे ते शिष्यवर्ग अपूर्व आत्मिक सिद्धिने पामे छे. आ प्रमाणे आ
पांचमुं रत्न शास्त्रना फळने प्रकाशे छे.