कहेवाय. प्रथम तो प्रवचनसारे शुं कह्युं? के श्रुतज्ञानने अंतर्मुख करीने केवळ आत्मानो अनुभव
करवानुं कह्युं एटले के शुद्धोपयोगरूप परिणमवानुं कह्युं ते झीलीने, शुद्धात्मानी सन्मुख थईने
शुद्धोपयोगरूपे जे परिणमे छे ते शिष्य जन प्रवचनना साररूप सिद्धपदने पामे छे.
ने ते ज शास्त्रना फळरूप मोक्षपदने पामे छे.–आवुं अर्हंतदेवना शासननुं संक्षेप रहस्य छे, बीजुं जे कांई छे ते बधुं
आनो ज विस्तार छे.
पांच रत्नो उपरना पू. गुरुदेवना
प्रवचनोनो केटलोक सार अहीं प्रसिद्ध
कर्यो छे, ते मुमुक्षु जीवोने खास
उपयोगी छे. विस्तृत प्रवचनो हवे
पछी प्रसिद्ध थशे.
गुणस्थाने आत्माना अमृतकुंडमां झूले छे, तेमनो अवतार सफळ
छे...एवा संतमुनिवरो पण वैराग्यनी बार भावना भावीने
वस्तुस्वरूप चिंतवे छे. वस्तुस्वरूपने लक्षमां राखीने वैराग्यनी आ
बार भावनाओ भाववा जेवी छे. आ भावनाओने आनंदनी जननी
कीधी छे; केमके वस्तुस्वरूप अनुसार वैराग्यनी भावनाओनुं चिंतवन
करतां चित्तनी स्थिरता थईने भव्य जीवने आनंद थाय छे, तेथी आ
भावनाओ ‘भविकजन आनंदजननी’ छे, अने ते सांभळतां ज
भव्य जीवोने मोक्षमार्गमां उत्साह ऊपजे छे. अहा, तीर्थंकरो पण
दीक्षा वखते जेनुं चिंतन करे एवी वैराग्य–रसमां झूलती आ बार
भावनाओ भावतां कया भव्यने आनंद न थाय? अने कया भव्यने
मोक्षमार्गनो उत्साह न जागे? ?