Atmadharma magazine - Ank 174
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः आत्मधर्मः १७४
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
(४२)
कर्तृत्व शक्ति
अहो, आत्मानी आ शक्तिओ बतावीने
अमृतचंद्रदेवे अमृतना रेला रेडया छे...अरे जीव!
आवी आवी शक्तिओ तारामां ज छे, तो हवे तारे
बहारमां क्यां अटकवुं छे! अंतरमां तारी
शक्तिओथी परिपूर्ण सर्वगुण–संपन्न तारा आत्मानुं
ज अवलंबन कर, जेथी तारा भवदुःखनी नीवेडा
आवे ने तने मोक्षसुख प्राप्त थाय.
निर्मळ कार्यरूप जे कर्म तेरूप आत्मा पोते थाय छे–एम कर्मशक्तिमां बताव्युं.–हवे, निर्मळ कार्य तो थयुं पण ते
कार्यनो कर्ता कोण? ते कार्यनो कर्ता कोई बीजो नथी पण आत्मा पोते ज तेनो कर्ता थाय छे–ए वात आ
कर्तृत्वशक्तिमां बतावे छेः “थवापणारूप एवो जे सिद्धरूपभाव तेना भावकपणामयी कर्तृत्वशक्ति छे.” आत्मामां एक
आवी शक्ति छे एटले पोताना निर्मळभावनो कर्ता पोते ज थाय छे. पहेलां २१मी अकर्तृत्वशक्तिमां एम बताव्युं हतुं
के ज्ञाता स्वभावथी जुदा जे समस्त विकारी परिणामो तेनो कर्तापणाथी निवृत्तस्वरूप आत्मा छे; अने हवे,
ज्ञातास्वभाव साथे एकमेक जे अविकारी परिणामो तेनो कर्ता आत्मा छे–एम आ कर्तृत्वशक्तिमां बतावे छे. आ रीते
आ भगवान आत्मा विकारनो अकर्ता ने शुद्धतानो कर्ता–एवा स्वभाववाळो अनेकान्तमूर्ति छे.
कर्तृत्वशक्ति रागना आधारे नथी पण आत्मद्रव्यना आधारे छे; एटले राग कर्ता थईने सम्यग्दर्शनादि कार्य
करतो नथी, पण आत्मद्रव्य पोते कर्ता थईने सम्यग्दर्शनादि कार्य करे छे. आवा आत्मस्वभाव उपर जेनी द्रष्टि छे ते
स्वयं कर्ता थईने पोताना सम्यग्दर्शन आदि–रूपे परिणमे छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते