भावे छे एटले के तेने करे छे, एवी तेनी कर्तृत्वशक्ति छे.
संप्रदान–अपादान–अधिकरणरूप थाय छे; छ कारकरूप अने एवी अनंत शक्तिओरूप आत्मा पोते ज परिणमे छे;
ए रीते एक साथे अनंत शक्तिओनुं परिणमन ज्ञानमूर्ति आत्मामां ऊछळी रह्युं छे तेथी ते अनेकान्तमूर्ति
भगवान छे.
कर्ता जे आत्मा तेना करण संबंधी मीमांसा (ऊंडी तपास, विचारणा) करवामां आवतां, निश्चये पोताथी भिन्न
करणनो अभाव होवाथी भगवती प्रज्ञा ज छेदनात्मक करण छे...” जुओ, भेदज्ञानरूप कार्यनो कर्ता आत्मा पोते
ज छे, अने तेनुं साधन पण पोतामां ज छे. कर्तानुं साधन खरेखर कर्ताथी भिन्न होतुं नथी; कर्ताथी भिन्न जे
कोई साधन कहेवामां आवे ते कोई खरेखर साधन नथी. “पोताथी भिन्न करणनो अभाव छे” एमां तो
महानियम भरी दीधो छे. अरे जीव! तारा साधननी ऊंडी तपास तारामां ज कर..तारामां ज साधनने शोध.
जेओ बहारमां साधन शोधे छे तेओ साधननी ऊंडी तपास करनारा नथी पण छीछरा ज्ञानवाळा–
बाह्यद्रष्टिवाळा–छे. जेओ आत्माना ज्ञानना साधननी खरी मीमांसा करे–ऊंडी तपास करे–अंतरमां ऊतरीने
शोध करे तेओने तो पोतानी पवित्र प्रज्ञा ज पोतानुं साधन भासे छे, ए सिवाय राग के परद्रव्यो तेने पोताना
साधन तरीके भासता ज नथी. साधन संबंधी विशेष खुलासो हवे पछीनी (४३ मी) शक्तिमां आवशे अत्यारे
कर्ताशक्तिनुं वर्णन चाले छे.
तो शुं केवळी–श्रुतकेवळी आ आत्माना क्षायकसम्यक्त्वना कर्ता छे? ना. ते रूपे थईने तेना कर्ता थवारूप
कर्तृत्वशक्ति आत्मानी ज छे, तेने कोई बीजानी अपेक्षा नथी. केमके वस्तुनी शक्तिओ बीजानी अपेक्षा राखती
नथी.
कार्यनो कर्ता थाय छे. आवी शक्तिवाळा आत्माने जे भजे तेने सम्यग्दर्शनादि कार्य थया विना रहे नहि.
तेथी तेनुं ज भजन (श्रद्धा–ज्ञान ने लीनता) करवा योग्य छे. अहीं आचार्यदेव शक्तिमान आत्मानी ओळखाण
करावे छे. आत्मशक्तिने जाण्या वगर बीजाने (कुदेव–देवी, शक्ति–मेलडीमाता वगेरेने) शक्तिमान मानीने
भज्यां करे तो तेनी पासेथी कांई मळे तेम नथी. कुदेवादिने जे भजे छे ते तो मोटो मूढ छे. अरे मूढ! तारी
शक्ति परमां नथी के ते तने कांई आपे. अहीं तो कहे छे के आत्मानी शक्तिने ओळख्या वगर एकला रागथी
पंचपरमेष्ठीने भज्या करे तो ते पण खरेखर शक्तिमानने भजतो नथी पण रागने ज भजे छे; पंचपरमेष्ठीने ते
खरेखर ओळखतो नथी ने तेने पंचपरमेष्ठीनुं भजन पण खरेखर आवडतुं नथी. जो पंचपरमेष्ठीनी शक्तिने
खरेखर ओळखीने भजे तो तेमना जेवी पोताना आत्मानी शक्तिने जाणीने ते शक्तिमान तरफ वळ्या वगर
रहे नहि. पोतानो आत्मा ज एवो शक्तिमान छे के तेनुं भजन करतां ते सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रना अनंत
निधान आपे छे, केवळज्ञान अने सिद्धदशारूपी कार्य एक क्षणमां करी देवानी तेनी ताकात छे. आवी शक्तिवाळा
आत्मानुं भजन ते ज परमार्थ भक्ति छे, तेनुं फळ मुक्ति छे.