एक वार कोई माणसे साधु पासे जईने पूछयुंः हे स्वामी! माराथी विशेष कांई थई शकतुं नथी, माटे मने कोई
एवो सहेलो उपाय बतावो के मारी मुक्ति थाय!! साधुए कह्युंः
कपडां उंदर कोतरी गयेल; तेने गुस्सो आव्यो.. पण त्यां तो तरत साधुनुं वचन याद आव्युं अने एम थयुं के
बस! आ उंदर शक्तिमान छे माटे तेने भजवुं. आम हजी विचार करे छे त्यां तो बिल्लीबाईए उंदरभाई उपर
झपट मारी, ने उंदरभाई तो ऊभी पूंछडीए भाग्या. तरत ज ते माणसनो विचार बदलायो के “बिलाडी उंदर
करतां वधु शक्तिमान छे माटे तेने भजवी...थोडा दिवस बिलाडीनुं भजन कर्युं त्यां तो एक वार कुतराए
‘हा..उ’ कर्युं ने बिलाडी तो “म्यां..उं” करती भागी...त्यारथी ते माणस कुतराने वधु शक्तिमान जाणीने तेने
भजवा लाग्यो. एक वार कुतरुं रसोडामां घूसी गयेलुं ने तेनी स्त्रीए कुतरा उपर वेलण ऊगाम्युं त्यां तो कुतरुं
भाग्युं एटले ते माणसने थयुं के बधा करतां आ स्त्री ज शक्तिमान लागे छे; आथी ते मूरखो पोतानी स्त्रीने
भजवा लाग्यो. एक वार तेनी स्त्री दाळमां मीठुं नांखतां भूली गई तेथी गुस्से थईने तेणे स्त्री उपर ज्यां
लाकडी ऊगामी त्यां तो स्त्री राड पाडती पाडती भागी गई. तरत ज आ भाईसाहेबनी आंख ऊघडी गई के
अरे! हुं तो अत्यार सुधी आने शक्तिमान जाणीने भजतो हतो, परंतु माराथी तो ते बीए छे, माटे हुं ज
शक्तिमान लागुं छुं, तेथी हवे बीजानुं भजन छोडीने मारे मने ज भजवो. (सिद्धांत समजाववा माटेनुं आ एक
कल्पित द्रष्टांत छे.) जेम ते मूरखो कूतरां–बिलाडांने भजवा लाग्यो तेम तीव्र अज्ञानवश जीवो धरणेन्द्र–
पद्मावती–शीतळा–मेलडी वगेरे अनेक कुदेव देवताने भजे छे, त्यांथी जराक आघा चाले तो निमित्तने अने
कर्मप्रकृतिने ज बळवान मानीने तेने ज भजे छे; कदाचित् एथी पण जराक आगळ चाले तो अंदरना
शुभरागथी लाभ मानीने तेना भजनमां अटकी जाय छे. पण ज्यारे श्रीगुरु पासे जईने पूछे छे के प्रभो!
अत्यार सुधी में अनेक देव–देवताने भज्यांं, निमित्तोने भज्या, पूजा–भक्ति करी करीने शुभरागने पण बहु
भज्यो, छतां मारी मुक्ति केम न थई? त्यारे श्रीगुरु कहे छेः हे भाई! सांभळ!! अत्यार सुधी जेने जेने तें
भज्यां ए कोईनामां एवी शक्ति नथी के तने मुक्ति आपे. मुक्ति आपे एवी शक्ति तो तारा आत्मामां ज छे,
माटे ते शक्तिमानने ओळखीने तेने भज, तो जरूर मुक्ति थाय. शक्तिमानने भूलीने बीजाने भजे तो मुक्ति
क्यांथी थाय? माटे शक्तिमानने भज. तारा आत्मामां ज एवी अचिंत्यशक्ति छे के ते तारी मुक्तिनुं साधन
थाय. तारी मुक्तिनुं कार्य करी द्ये एवी शक्ति तो तारा आत्मामां ज छे, जगतमां बीजा कोईमां पण एवी शक्ति
नथी के तारी मुक्तिनुं कार्य करी द्ये, माटे अंतर्मुख थईने तुं तारा आत्माने ज भज.
शुद्ध आत्मस्वभावने ज भजो.–आवो संतोनो उपदेश छे. श्री प्रवचनसारनी टीकामां श्री जयसेनाचार्य कहे छे केः
‘पंचास्तिकायमां जीवास्तिकाय उपादेय छे, तेमां पण पंचपरमेष्ठी उपादेय छे, ते पंचपरमेष्ठीमां पण अर्हत् अने सिद्ध
उपादेय छे, तेमां पण सिद्ध उपादेय छे; अने वस्तुतः (परमार्थे), रागादिरहित अंतर्मुख थईने, सिद्धजीवोनी सद्रश
परिणमेलो स्वकीय आत्मा ज उपादेय छे.
पोते ज थाय छे; आत्मा पोते ज ज्ञानशक्तिवडे केवळज्ञाननो कर्ता थाय छे. आत्मा पोते ज चारित्रशक्तिवडे चारित्रनो
कर्ता थाय छे. ए रीते पोतानी अनंतशक्तिना कार्यना कर्तापणे आत्मा पोते ज थाय छे–एवी तेनी कर्तृत्वशक्ति छे.
पर्यायमां