Atmadharma magazine - Ank 174
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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चैत्रः २४८४ः १७ः
जे जे नवुं नवुं कार्य सिद्ध थाय छे ते ते कार्यरूपे परिणमीने आत्मा पोते कर्ता थाय छे. आ कर्तापणुं आत्मानो स्वभाव
छे. ज्यां एम कह्युं छे के ‘कर्तापणुं आत्मानो स्वभाव नथी’ त्यां तो विकारना अने जडकर्मना कर्तापणानी वात छे.
अने अहीं तो निर्मळ–पर्यायरूप कार्यना कर्तापणानी वात छे,–आ कर्तापणुं तो आत्मानो त्रिकाळी स्वभाव छे.
ज्ञानानंदस्वभावी अनंत शक्तिसंपन्न भगवान आत्माने जाणीने ज्यां तेनो आश्रय कर्यो त्यां आत्मानी
कर्तृत्वशक्तिने लीधे ज्ञानगुणे कर्ता थईने ज्ञानभावरूप कार्य कर्युं, श्रद्धागुणे कर्ता थईने सम्यग्दर्शनरूपी कार्य कर्युं,
आनंदगुणे कर्ता थईने अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन आप्युं; ए रीते अनंता गुणोए कर्ता थईने पोतपोतानी निर्मळ
पर्यायरूप कार्यने कर्युं कर्तृत्व–शक्तिवाळा आत्माने ओळखतां आत्मा पोताना निर्मळ भावनो ज कर्ता थाय छे ने
विकारनुं कर्तापणुं तेने रहेतुं नथी. कर्ताशक्तिवाळो आत्मस्वभाव त्रिकाळ एकरूप छे, ते एकरूप स्वभावमां एकताथी
निर्मळ–एकरूप कार्य ज थया करे छे. आत्मानी कर्ताशक्ति एवी नथी के आत्मा रागनो कर्ता थाय; आत्मानी
कर्ताशक्ति तो एवी छे के ते निर्मळ भावोनो ज कर्ता थाय. ज्यां एकलुं विकारनुं कर्तापणुं छे त्यां आत्मानी
कर्ताशक्तिनी प्रतीत नथी.
‘आत्मामां तो अनंतशक्ति छे तेथी आत्मा परनां कार्यो करी शके’–एम अनेक मूढ जीवो माने छे. अहीं
आचार्यदेव तेने कहे छे के अरे मूढ! जगतना एक परमाणुने के स्कंधने कोई पण परने आत्मा करे एवी कर्ताशक्ति
तो आत्मामां नथी. हा, एक क्षणमां समस्त विश्वने साक्षात् जाणवानुं कार्य करे एवी कर्ताशक्ति आत्मामां छे.
आत्मानी शक्तिनुं कार्य तो आत्मामां होय के बहारमां होय? आत्मानी अनंत शक्तिओ छे ते बधीये शक्तिओनुं
कार्य आत्मामां ज थाय छे, एक पण शक्ति एवी नथी के आत्माथी बहार कांई कार्य करे. अहो! मारो आत्मा,
मारी बधी शक्तिओ, ने बधी शक्तिओनुं कार्य–ए बधुं य मारा अंतरमां ज समाय छे,–आवी अंर्तद्रष्टि करवी ते
अपूर्व कल्याण छे.
जेम आ आत्मा अने बीजा बधाय आत्मा जगतमां स्वयंसिद्ध अनादिअनंत सत् छे, कोई तेनो कर्ता नथी;
तेम पोतानी पर्यायरूप कार्यना कर्ता थवानी ताकात पण आत्मामां स्वयमेव छे; पर्यायनुं कार्य नवुं उत्पन्न थाय छे
माटे तेनो कर्ता बीजो कोई हशे–एम नथी. आत्मा ज स्वयं ते–रूपे परिणमीने कर्ता थाय छे. धर्मी जाणे छे के मारो जे
साधकभाव छे तेनो हुं ज स्वयं कर्ता छुं, मारा आत्मामां ज तेना कर्ता थवानी ताकात छे. पोताना कार्य माटे बीजो कोई
कर्ता जोईए एवुं पराधीन वस्तुस्वरूप नथी. कार्यथी जुदो कोई कर्ता नथी, ने कर्तानुं कार्य पोताथी जुदुं नथी; ए ज
प्रमाणे साधन वगेरे पण जुदा नथी.–आम अनंत शक्तिथी अभेद आत्मस्वभावनी प्रतीत करीने परिणमतां
सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धदशा सुधीना निर्मळ कार्यो सिद्ध थई जाय छे. द्रव्यनी एक कर्ताशक्तिमां तेना बधाय गुणोना
कार्योनुं कर्तापणुं समाई जाय छे; एटले कर्ताशक्तिने शोधवा माटे गुणभेद उपर जोवानुं नथी रहेतुं पण अखंड द्रव्य
उपर जोवानुं रहे छे. अखंड आत्मद्रव्यनी सन्मुख जोतां ज तेनी परिपूर्ण शक्तिओ प्रतीतमां आवे छे, ने वीतरागी
श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र प्रगटे छे.
सर्वज्ञना बधा शास्त्रोनुं तात्पर्य वीतरागभाव छे; अने ते वीतरागभाव निरपेक्ष आत्मस्वभावना अवलंबने
ज थाय छे. परना आश्रये पोतानी शक्ति माने तेने पर प्रत्येनो रागनो अभिप्राय खसे नहि ने वीतरागता कदी थाय
नहि. मारी अनंती शक्तिओ मारा आत्माना ज आश्रये छे, हुं जे कार्य (सम्यग्दर्शनादि) करवा मांगुं छुं ते मारा
आत्माना ज आश्रये थाय छे–एम निर्णय करीने स्वभावनो आश्रय करतां वीतरागभाव थाय छे, ते धर्म छे, ते जैन
शासननो सार छे, ते संतोनुं फरमान छे, ने ते ज सर्व शास्त्रोनो उपदेश छे.
अनंत शक्तिवाळा शुद्ध चैतन्यस्वभावी आत्माने जुओ तो तेमां कोई परचीजने लेवा–मूकवानुं के
फेरववानुं कर्तृत्व नथी, तेमज विकारनुं कर्तृत्व पण तेमां नथी; ते वखते स्वभावमां अभेद थयेली निर्मळ पर्यायनुं
ज कर्तृत्व छे. पर्याय द्रष्टिथी जोतां क्षणिक विकारनुं कर्तृत्व छे, परंतु तेटलो ज आत्मा माने तो तेणे आत्माना
स्वभावने जाण्यो नथी.
आत्मा भावक थईने कोने भावे? अथवा आत्मा कर्ता थईने कोने करे? आत्मा भावक थईने (कर्ता थईने)
विकारने पोताना कार्यपणे भावे एवो तेनो स्वभाव नथी,