चिंतानिरोधरूप ध्यान थयुं. परनो हुं कर्ता ने मारी पर्याय परथी थाय–एम जे माने तेने परनी चिंता छूटे नहि ने
स्वमां एकाग्रता थाय नहि; एटले आत्मानुं ध्यान तेने थाय नहि; अने आत्माना ध्यान वगर वीतरागभावरूप धर्म
थाय नहि.
सुप्रसिद्ध १पमी गाथामां आचार्यदेवे ए ज वात स्पष्ट बतावी छे के जे शुद्ध आत्मानी अनुभूति छे
ते समस्त जिनशासननी अनुभूति छे; शुद्धात्माने जे जाणे छे ते समस्त जिनशासनने जाणे छे. आ
महासिद्धांत अने जैनशासननुं रहस्य छे.
निरालंबी आत्माने अडीने तेमनी वाणी नीकळी छे. आवा वीतरागी संतोनो, चैतन्यपदने प्राप्त करावनारो परम
हित–उपदेश पामीने आत्माने ऊंचे ऊंचे लई जवो एटले के अंतर्मुख थईने आत्मानी उन्नति करवी ते ज जिज्ञासु
आत्मार्थी जीवोनुं कर्तव्य छे.
तारी दीनता छे. ए दीनता छोड, ने तारी प्रभुताने धारण कर. जे जीव पोताना आत्मानी प्रभुताने तो
स्वीकारतो नथी ने एकली बाह्यद्रष्टिथी भगवान पासे जईने कहे छे के “हे भगवान! तमे प्रभु छो..हे
भगवान! मारुं हित करो..मने प्रभुता आपो!” तो भगवान तेने कहे छे के रे जीव! तारी प्रभुता अमारी
पासे नथी, भाई! तारामां ज तारी प्रभुता छे, माटे तारा अंतरमां वळ..अंर्तद्रष्टि करीने अंतरमां ज तारी
प्रभुताने शोध. जेम अमारी प्रभुता अमारामां छे तेम तारी प्रभुता तारामां छे; तारो आत्मा ज प्रभुताथी
भरेलो छे; तारा आत्माने सर्वथा दीन मानीने बहारथी तुं प्रभुता शोधीश तो तने तारी प्रभुता नहि मळे.–
‘दीन भयो प्रभु पद जपे मुक्ति कहांसे होय?’ पोतामां प्रभुता भरेली छे तेने तो मानतो नथी ने बहारमां
भटके छे तेने तो मिथ्यात्वने लीधे पामरता थाय छे. राग होवा छतां, राग जेटलो तूच्छ–पामर हुं नहि पण हुं
तो प्रभुत्वशक्तिथी भरेलो छुं,–एम रागने ओळंगी जईने पोतानी प्रभुतानो स्वीकार करवो ते अपूर्व
पुरुषार्थ छे. पोतानी प्रभुताने भूलीने जीव संसारमां रखडयो छे, ने पोतानी प्रभुतानी संभाळ करवाथी जीव
पोते परमात्मा थई जाय छे. देहथी पार रागथी पार आत्मानी प्रभुताने अपूर्व प्रयत्नवडे ज्यां सुधी न
ओळखे त्यां सुधी भेदज्ञान–सम्यग्ज्ञान थाय नहि, ने सम्यग्ज्ञान वगर अज्ञानीने धर्म केवो? माटे जेणे
खरेखर धर्म करवो होय–धर्मी थवुं होय तेणे अपूर्व उद्यम करीने पोताना आत्मस्वभावनी ओळखाणथी
भेदज्ञान करवुं जोईए. भेदज्ञानी जीव पोताना स्वभावना आश्रये निर्मळ–पर्यायरूपे परिणमीने तेनो ज कर्ता
थाय छे, ने विकारनो कर्ता थतो नथी; एनुं नाम धर्म छे.
सर्वगुणसंपन्न तारा आत्मानुं ज अवलंबन कर..जेथी तारा भवदुःखथी नीवेडा आवे..ने तने मोक्षसुख प्राप्त
थाय.