Atmadharma magazine - Ank 174
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः २२ः आत्मधर्मः १७४
विधविध समाचार
शिखरजी यात्राना मीठां संभारणा
सौराष्ट्रमां मंगलविहार करतां पू. गुरुदेव फागण सुद सातमे मोटा आंकडिआ पधार्या हता, ने
सम्मेदशीखरजीनी मंगलयात्रानो वार्षिक दिवस त्यां ऊजवायो हतो. आंकडिआमां माणेकचंदभाई रवाणी तथा
जमुभाई रवाणी वगेरेए उमंगपूर्वक गुरुदेवनुं सन्मान कर्युं हतुं. अहीं भगवान शांतिनाथ प्रभुनी अद्भुत भाववाही
प्रतिमा बिराजे छे. अने आपणा आ “आत्मधर्म–मासिक” नुं आ जन्मस्थान छे, अनेक वर्षो सुधी ‘आत्मधर्म’
अहीं छपायुं छे. अहीं फागण सुद सातमना रोज सवारमां शीखरजी पूजन विधान पू. बेनश्रीबेने घणी भक्तिथी
कराव्युं हतुं, तथा शांतिनाथ भगवाननुं पूजन कराव्युं हतुं. बपोरे गुरुदेवना प्रवचन बाद सम्मेदशीखरजीनी
मंगलयात्राना वार्षिकोत्सव निमित्ते बेनश्रीबेने भक्ति करावी हती. आरती बाद रात्रे तत्त्वचर्चामां हजार जेटला
माणसोए भाग लीधो हतो,–जेमां मोटा भागना खेडुत भाईओ हता. एक खेडुतभाईए प्रेमथी प्रश्न पूछयो हतो के
“बापजी! आत्मानुं स्वरूप शुं छे!! कोई कांई कहे छे, ने कोई कांई कहे छे, तो आत्मानुं खरूं स्वरूप शुं हशे?” वळी,
पहेलां ज्ञान होय के पहेलां चारित्र होय?–मोक्ष ज्ञानथी थाय के चारित्रथी?–एवा एवा प्रश्नो पण जिज्ञासाथी पूछेल.
आ रीते, गुरुदेव पधारतां खेडुतोमां आत्मानी अने ज्ञान–चारित्र मोक्षनी चर्चा चालती हती. चर्चा बाद
खेडुतभाईओ ठेरठेर अंदरो–अंदर वातचीत करता कहेता हता के “आ महाराज एम कहे छे के आत्माने ओळख्या
वगर मोक्ष न थाय.”
चर्चानी शरूआतमां ज गुरुदेवे सम्मेदशीखरजी वगेरेनी मंगलयात्राना मीठा मधुर संभारणां याद करतां
कह्युं हतुं केः जुओ, आ फागणसुद सातमे शीखरजीनी यात्रा करी हती. छठ्ठनी रात्रे दोढ वागे उठीने उपर चडवा
मांडयुं हतुं ने सातमनी बपोरे दोढ वागे यात्रा करीने नीचे उतरवा मांडयुं हतुं. अहा, ए सम्मेदशीखरजीनो
देखाव सरस छे, ए तो नजरे जुए एने खबर पडे!
अनादिकाळनुं ए शाश्वत तीर्थ छे. अनंता तीर्थंकरो
त्यांथी मोक्ष पाम्या छे, ने अनंता तीर्थंकरो मोक्ष पामशे. सामान्यपणे तो आ भरतक्षेत्रना बधा तीर्थंकरो
अयोध्यानगरीमां जन्मे ने शिखरजीथी मोक्ष पामे.–एम ए बंने शाश्वत तीर्थ छे, ने ए बंनेनी नीचे शाश्वत
साथीया छे.–जराक ऊंडो ऊतरीने विचार करे तेने आ बधी खबर पडे तेवुं छे. अहा, ए वखते जात्रामां
लोकोनो उल्लास पण घणो हतो. आ उपरांत खंडगीरी–उदयगीरीनी अतिप्राचीन जैनगुफाओनुं पण गुरुदेवे
भावपूर्वक स्मरण कर्युं हतुं.
विशेषमां गुरुदेवे कह्युं हतुं केः जुओ, शीखरजीनी जात्रानो दिवस फागण सुद सातम. शीखरजी उपरथी
चंद्रप्रभु तथा सुपार्श्वप्रभुना मोक्षनो दिवस पण फागण सुद सातम. वींछीयामां पंच कल्याणक प्रतिष्ठानो दिवस पण
फागण सुद सातम. राणपुर, वढवाण, सुरेन्द्रनगर वगेरे गामोना भगवंतोनी प्रतिष्ठानो दिवस पण फागण सुद
सातम अने अहीं आंकडियाना आ शांतिनाथ भगवाननी प्रतिष्ठानो दिवस पण फागण सुद सातम छे,–ए दिवस
आपणे बराबर कुदरते अहीं आंकडियामां ज आव्यो छे. आम स्मरण करीने गुरुदेव शिखरजी, अयोध्या वगेरे
तीर्थधामोनी मंगलयात्रानुं वारंवार भावपूर्वक स्मरण करता हता...ने गुरुदेवना श्रीमुखेथी यात्राना मीठां संभारणां
सांभळतां भक्तोने बहु प्रमोद थतो हतो...ने, गुरुदेव साथेनी मंगलयात्राना आवा सोनेरी प्रसंगो फरी फरीने प्राप्त
थाव–एम सौ भक्तो भावना करता हता. आ रीते, शीखरजीनी तीर्थधामनी मंगलयात्रानो वार्षिकोत्सव आंकडियामां
फागण सुद सातमे उजवायो हतो.
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