चैत्रः २४८४ः २३ः
पोरबंदरना
दरियाकिनारे
फागण सुद तेरसना रोज पू. गुरुदेव पोरबंदर पधार्या, त्यारे त्यांना शेठश्री भुरालालभाई, तथा
नेमिदासभाई वगेरेए भावभीनुं स्वागत कर्युं...ने आठ दिवस सुधी पोरबंदरमां अमृतधारा उल्लसी..
अहीं दरियाकिनारे ज (टाउन होलमां) गुरुदेवनो उतारो हतो...एक बाजु दरियो उल्लसतो हतो. तो बीजी
बाजु तेना कांठे ज गुरुदेव प्रवचन–समुद्रने ऊछळता हता...पूर्णिमाना चंद्रने देखीदेखीने, जाणे के ते चंद्रस्थित
जिनबिंबने भेटवा चाहतो होय तेम दरियो ऊछळतो हतो..अने आ बाजु गुरुदेवना हृदयमां स्थित सम्यग्ज्ञानरूपी
चंद्र वडे स्याद्वाद समुद्र ऊछळतो हतो...ने ए उल्लसता दरियामां भव्यजीवो निमग्न थता हता..अहा! गंभीर
दरियानुं कुदरती द्रश्य, जाणे के चैतन्यना आनंदसागरने प्रसिद्ध करी रह्युं होय–एवुं दीसतुं हतुं; तो बीजी तरफ
गुरुदेवनी वाणीमां आनंदसागरनी छोळो ऊछळती हती.
ऊल्लसता मोजां द्वारा दरियो जाणे के श्रुतसमुद्रना गुणगान गातो होय! “अरे, हुं तो खारो छुं ने आ
ज्ञानसागर तो मीठो अमृत जेवो, आनंदथी भरेलो छे, मारामां पडेला जीवो तो डुबे छे, त्यारे आ ज्ञानसमुद्रमां
पडनारा जीवो तो भवसमुद्रने तरी जाय छे” एम समजीने ए दरियो पण ऊछळीऊछळीने ज्ञानसमुद्रने अभिनंदतो
हतो..अने जाणे के चैतन्यसागरना गुणगान करी करीने खूब थाकी गयो होय एम तेना मुखमांथी फीण नीकळता
हता...ए खारा समुद्रने छोडी छोडीने, चैतन्य समुद्रना मीठा अमृतनुं पान करवा माटे अनेक जीवो गुरुदेवना
प्रवचनमां दोडया आवता हता.
दरियाकिनारे रहेली दीवादांडी दरियाना मुसाफरोने मार्ग प्रकाशित करती हती, तो बीजी तरफ दरिया किनारे
गुरुदेव शुद्ध आत्मानी द्रष्टिरूपी दीवादांडीवडे भव्य जीवोने मुक्तिनो मार्ग प्रकाशीत करता हता. दरियानुं द्रश्य देखतां
नयनो ठरता हता..तेम गुरुदेवनी वाणीमां ऊछळता सुखसमुद्रने नीहाळतां (सांभळतां) भव्यजीवोनां हृदय ठरता
हता...ने फरी फरीने एनुं श्रवण कर्या ज करीए...एम थतुं हतुं. आम पोरबंदरना दरियाकिनारे आठ दिवस सुधी
अद्भुत अमृतधारा वरसी.
सम्यग्ज्ञान–सुधांशुवडे गुरुदेवे ऊल्लसावेला आ आनंदना दरियामां जगतना भव्यजीवो निमग्न थाओ..
शांतरसथी भरेलो आ चैतन्यसमुद्र लोकपर्यंत ऊछळी रह्यो छे...भ्रमणाने भांगीने भव्यजीवो आ ज्ञानसमुद्रमां मग्न
थाओ.–
“मज्जन्तु निर्भरममी सममेव लोका
आलोकमुच्छलति शांतरसे समस्ता
आप्लाव्य विभ्रमतिरस्करिणीं भरेण
प्रोन्मग्न एष भगवानवबोध सिंधु।।
”
पोरबंदरमां मुमुक्षुमंडळनी स्थापना
पू. गुरुदेव पोरबंदर पधार्या ते प्रसंगे त्यांना घणा भाई–बेनोए उल्लासथी लाभ लीधो हतो, अनेक खारवा
भाईओ पण प्रेमथी प्रवचनमां आवता; आ प्रसंगे फागण वद पांचमना रोज त्यां मुमुक्षुमंडळनी पण स्थापना थई
छे. गुरुदेवना प्रभावे स्थापित थयेल आ मुमुक्षु मंडळ वृद्धिंगत हो. पोरबंदरमां श्री पार्श्वनाथ भगवाननुं दि.
जिनमंदिर छे, त्यां रोज तत्त्वचर्चा तथा शास्त्रवांचन थाय छे.