Atmadharma magazine - Ank 175
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखः २४८४ः ९ः
बधा गुणो सहित आखो आत्मा तेनी मान्यतामां न आव्यो. अनंतगुणथी परिपूर्ण आखा आत्माने मान्या विना कदी
साधकपणुं थाय नहि.
विकल्पवडे एक गुणने जुदो पाडीने जीव लक्षमां ल्ये छे, पण वस्तुमां कांई एक गुण जुदो नथी पडतो; एटले
ते विकल्पवडे वस्तु प्रतीतमां आवती नथी. जेम जड–चेतनने अत्यंत प्रदेशभेद छे, बंने वस्तुना प्रदेशो ज जुदा छे, तेम
कांई वस्तुनी अनंतशक्तिओने प्रदेशभेद नथी, ज्ञानना जुदा प्रदेश, दर्शनना जुदा प्रदेश, आनंदना जुदा प्रदेश–एवो
प्रदेशभेद तो नथी; तेमज अनंतशक्तिओथी जुदो बीजो कोई शक्तिमान नथी परंतु शक्तिमान (वस्तु) पोते ज
अनंतशक्तिस्वरूप छे, ए रीते शक्तिमानने अने शक्तिओने स्वरूपभेद पण नथी. मात्र समजाववा माटे अभेदमां
भेद ऊपजावीने एक गुणनी मुख्यताथी ‘ज्ञान ते आत्मा’ एम कहेवामां आवे छे. त्यां भेद सामे जोवाथी आत्मा
समजातो नथी, पण अनंतधर्मस्वरूप एक अखंड चैतन्यवस्तु आत्मा छे–तेनी सामे जोवाथी ज आत्मानुं खरुं स्वरूप
समजाय छे. आ वात जराक सूक्ष्म तो छे, परंतु पूर्वे अनंतकाळमां नहि करेल एवुं अपूर्व आत्मकल्याण जेणे करवुं होय
तेणे अंतरमां वारंवार उद्यम करीने आ वात समजवा जेवी छे. आ वात समज्ये ज भवभ्रमणथी छूटकारो थाय तेम
छे, बीजी कोई रीते छूटकारो थाय तेम नथी.
श्री तत्त्वार्थ सूत्रजी पांचमा अध्यायमां एक सूत्र छे के ‘द्रव्याश्रया निर्गुणा गुणाः’ बधाय गुणो द्रव्यना
आश्रये रहेला छे अर्थात् द्रव्य पोते ज अनंतगुणस्वरूप छे, एटले ते द्रव्यना आश्रये परिणमतां बधा गुणोनुं
निर्मळ परिणमन थई जाय छे; परंतु गुण पोते निर्गुण छे एटले के एक गुणना आश्रये बीजा गुण रहेला नथी,
तेथी एक गुणनो भेद पाडीने तेना आश्रये श्रद्धा–ज्ञान–एकाग्रता करवा मांगे तो ते बनी शकतुं नथी, केमके,
एक गुणने श्रद्धा–ज्ञानमां लेवा जतां बीजा अनंत गुणो बाकी रही जाय छे, तेथी आखी वस्तु जेवी छे तेवी
प्रतीतमां के ज्ञानमां आवती नथी, अने प्रतीतमां ने ज्ञानमां आखी वस्तु आव्या विना तेमां एकाग्रता पण क्यांथी थाय? एक ज्ञान गुणना आश्रये केवळज्ञान प्रगटाववा मांगे तो तेने केवळज्ञान थतुं नथी; केमके, केवळज्ञान
जो के ज्ञानगुणनी पर्याय छे तो पण ते गुण कांई वस्तुथी जुदो पडीने नथी परिणमतो. अखंड वस्तुनो आश्रय
करीने परिणमतां आत्माना बधा गुणो निर्मळपणे परिणमी जाय छे, श्रद्धागुण सम्यक्त्वरूपे परिणमी जाय छे,
ज्ञानगुण केवळज्ञानरूपे परिणमी जाय छे. चारित्रगुण स्वरूपमां लीनतारूपे परिणमी जाय छे, आनंदगुण
आनंदरूपे परिणमी जाय छे. त्यां दरेक गुणनुं जुदुं जुदुं अवलंबन नथी, एक अखंड चैतन्य वस्तुनुं ज अवलंबन
छे, ने ते ज बधाय गुणोनी निर्मळपर्यायनुं साधन छे.
भाई! तारा आत्मामां ने दरेक आत्माना स्वरूपमां जे वस्तुस्थिति छे तेनुं ज आ वर्णन छे. तारा
आत्मानो वैभव तने देखाडाय छे. आ शक्तिओ कांई नवी उत्पन्न करवानी नथी, शक्तिओ तो तारामां सदाय
छे ज, पण तें तेनी प्रतीत करी नथी, तेथी अंतर्मुख थईने तेनी प्रतीत नवी करवानी छे. आ शक्तिओनी प्रतीत
करतां एटले के आवी शक्तिस्वरूप आत्माने प्रतीतमां लेतां आत्मा पोते निर्मळपणे परिणमे छे ने तेनी
शक्तिओ पर्यायमां प्रगटी जाय छे, निर्मळपणे खीली जाय छे. आनुं नाम मोक्षमार्ग; अने बधी शक्तिओ
पूरेपूरी खीली जाय ते मोक्ष.
‘मोक्ष कह्यो निजशुद्धता, ते पामे ते पंथ;
समजाव्यो संक्षेपमां, सकल मार्ग निर्ग्रंथ’
(आत्मसिद्धि)
अहीं जुदी जुदी शक्तिओ बताववानुं प्रयोजन नथी, परंतु आत्मवस्तु अनंतशक्तिसंपन्न छे–ते
बताववुं छे, अनंतधर्मस्वरूप–अनेकान्तमूर्ति आत्मद्रव्य ओळखाववुं छे. कोई पण शक्ति ल्यो–जेम के
जीवत्वशक्ति, ते शक्ति कोनी?–आत्मद्रव्यनी; आत्मद्रव्य केवडुं? एक साथे ज्ञानादि अनंतधर्म जेवडुं. आवा
आत्मद्रव्यने प्रतीतमां लीधा वगर तेनी कोई शक्तिओ पोतानुं निर्मळकार्य आपती नथी; अने शुद्धद्रव्यने
प्रतीतमां लईने तेना आश्रये परिणमतां बधी शक्तिओ निर्मळ कार्य आपे छे,–द्रव्य परिणमतां तेनी बधी
शक्तिओ निर्मळपणे परिणमी जाय छे. अज्ञानीनो आत्माय परिणमे छे तो खरो,–परंतु ते स्वद्रव्यना आश्रये न
परिणमतां परना आश्रये विकारपणे परिणमे छे, तेथी तेने खरेखर आत्मानी शक्तिनुं कार्य गणवामां आवतुं
नथी. शक्तिनुं कार्य तेने कहेवाय के जे