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अनंतगुणोनी निर्मळ पर्यायोना साधनपणे परिणमे छे. आ रीते अंतरमां भगवान आत्मा ज पोतानुं साधन छे एम
जे जाणे तेने बाह्यसाधनो शोधवानी व्यग्रबुद्धि–आकुळबुद्धि–मिथ्याबुद्धि–पराधीनबुद्धि रहेती नथी, पण स्वाश्रय करीने
अंतस्वभावमां एकाग्र थवानुं ज रहे छे, द्रव्यस्वभाव ज तेना श्रद्धाज्ञानमां सदा मुख्य रहे छे, अने ते जीव निःशंकपणे
स्वभावसाधन वडे मोक्षने साधे छे.
स्वसन्मुख थईने स्वभावनो पुरुषार्थ करे छे, ने तेने ज सम्यग्दर्शनादि निर्मळ कार्य थाय छे. अहो! शुद्धचैतन्यद्रव्यना
आश्रय सिवाय गुणभेदना आश्रये लाभ थवानी मान्यता पण ज्यां ऊडाडी दीधी त्यां रागना आश्रये के परना
आश्रये लाभ थवानी मान्यता तो क्यांथी ऊभी रहे?
थाय एम माननार शरीरने अने आत्माने एकपणे ज माने छे; रागथी आत्माने लाभ माननार रागने अने
आत्माना स्वभावने एकपणे ज माने छे; पुण्यथी धर्म थाय–एम माननार पुण्यने अने धर्मने एकपणे ज माने छे;
व्यवहारथी निश्चय थाय एम माननार निश्चय–व्यवहार बंनेने एकपणे ज माने छे; अने एक गुणना भेदना आश्रये
लाभ थाय एम माननार एक ज गुण साथे आत्मानी एकता माने छे पण अनंतगुण साथे आत्मानी एकताने
जाणतो नथी, एटले गुणभेदना विकल्पने ज ते आत्मा माने छे.–आ बधा मिथ्याद्रष्टि जीवनी मान्यताना प्रकारो छे.
अंतरना चिदानंद स्वभावमां ज्यां एकता न थई त्यां बीजे क्यांय एकता मान्या विना रहे ज नहि. अने धर्मी जाणे
छे के मारो चिदानंद स्वभाव ज मने लाभनुं कारण छे; अने, ‘जेनाथी लाभ माने तेनी साथे एकता मान्या वगर रहे
नहि,’ ए सिद्धांत प्रमाणे धर्मी पोताना स्वभावथी ज लाभ मानीने तेमां ज एकता करे छे, ने स्वभावमां एकताथी
तेने सम्यग्दर्शनादिनो लाभ थाय छे.
ज्ञानस्वभावी अखंड आत्माना चिंतनथी केवळज्ञान थाय छे; ए ज प्रमाणे एक गुणना चिंतनथी सम्यक्त्व नथी
थतुं पण अखंड चिदानंद स्वभावना चिंतनथी ज सम्यक्त्व थाय छे. ए ज रीते एक आनंद गुणने लक्षमां लईने
चिंतवतां आनंदनो अनुभव नथी थतो पण आनंद वगेरे अनंतगुणोथी अभेद आत्माना चिंतनथी ज आनंदनो
अनुभव थाय छे, आ रीते अभेद द्रव्यना आश्रये ज तेना बधा गुणोनुं निर्मळ परिणमन थाय छे, एटले
निर्मळतानुं साधन आत्मा पोते ज छे. गुणभंडार आत्मा पोते ज पोतानी करणशक्तिथी साधकतम थईने
रत्नत्रयधर्मने साधे छे.
भविष्यमां पण ए ज रीते सिद्धपदने साधशे. स्वभावसाधनथी बहार बीजुं साधन जे शोधशे तेने सिद्धपदनी
सिद्धि नहि थाय, ते तो संसारनो ज साधक रहेशे एटले के संसारमां ज रखडशे. अहीं तो स्वभाव साधन
समजीने साधक थईने पोताना सिद्धपदने साधे एवा जीवोने माटे ज आ वात छे, संसारमां रखडनारा जीवो तो
परज्ञेयमां जाय छे.
करे नहि, तेम सम्यग्द्रष्टि धर्मात्मा पोताना चैतन्यस्वामी सिवाय बीजा कोईने स्वप्ने पण पोताना साधन तरीके
स्वीकारे नहि. आ ज साध्यनी सिद्धिनुं साधन छे, बीजा कोई साधनथी साध्यनी