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चारित्रनुं साधन शरीर नथी पण चारित्रनुं साधन आत्मा ज छे. आत्माना ज ग्रहणथी ज्ञान–चारित्र वगेरे
मुज आत्म प्रत्याख्यान ने
मुज आत्म संवर योग छे.’
एक साथे छे, बीजुं कोई भिन्न कारण नथी.
उत्तरः– शुद्ध कारणने स्वीकारे ने निर्मळ कार्य न होय एम बने ज नहि; ‘कारण त्रिकाळ छे’ एम स्वीकार्युं
परने कारण तरीके मान्युं छे एटले शुद्धकारण तेनी द्रष्टिमां आव्युं ज नथी, ने सम्यग्दर्शनादि कार्य पण तेने थयुं नथी.
शुद्धकारणने स्वीकारे अने सम्यग्दर्शनादि कार्य न होय एम बने ज नहि. ‘कारण छे पण कार्य नथी’ एम जे कहे छे
तेणे खरेखर कारणने कारण तरीके स्वीकार्युं ज नथी. ध्रुववस्तु कारण, अने ज्यां तेनो स्वीकार कर्यो त्यां मोक्षमार्गरूप
कार्य,–ए रीते कारण–कार्य बंने एक साथे ज छे. जो कार्य नथी तो द्रव्यने कारण तरीके स्वीकारनार कोण छे?
शुद्धद्रव्यना अवलंबने ज्यां शुद्धकार्य थयुं त्यां भान थयुं के अहो! मारो स्वभाव ज मारा कार्यनुं कारण छे. आवुं कारण
मारामां पूर्वे पण हतुं पण में तेनुं अवलंबन न लीधुं तेथी कार्य न थयुं. हवे ते शुद्धकारणना स्वीकारथी सम्यग्दर्शनादि
शुद्धकार्य थयुं.
मुक्ति पाम्या छे; ने ‘हे जीवो! तमे पण आ रीते तमारा चिदानंदस्वभावने ज साधनपणे अंगीकार करो..तेने साधन
करवाथी ज सिद्धि थाय छे’–एम भगवाननो उपदेश छे. आ सिवाय बीजा कोई साधनथी मोक्ष थाय एम भगवाने
कह्युं नथी.
धर्मनुं साधन शुं?
–देहनी क्रिया ते धर्मनुं साधन नथी;
–पुण्य ते धर्मनुं साधन नथी;
अनंत शक्तिसंपन्न धर्मी एवो जे आत्मा ते ज धर्मनुं साधन छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते धर्म छे, ने
अनंतगुणने धारण करनार एवो आत्मा ते धर्मी छे ने तेना ज आधारे धर्म छे. आत्मा पोते साधक थईने पोताना
धर्मने साधे छे तेथी आत्मा साधु छे, अथवा आत्माना गुणो पोतपोतानी निर्मळ पर्यायोने साधे छे तेथी ते साधु छे;
ए ज रीते पोतपोतानी निर्मळ पर्यायोनी जतना (–रक्षा) करे छे तेथी यति छे; वळी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र
इत्यादि निज ऋद्धि सहित