Atmadharma magazine - Ank 175
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १२ः आत्मधर्मः १७प
पणे ग्रहण करे ते क्षणे केवळज्ञान थाय छे. आ केवळज्ञाननी जेम बधी निर्मळ पर्यायोमां पण समजी लेवुं.
आत्माने धर्मना साधन तरीके एकलुं स्वद्रव्यनुं ज अवलंबन छे, बीजुं कोई साधन नथी. स्वद्रव्यमां अंतर्मुख
थतां द्रव्य पोते ज निर्मळपर्यायनुं साधन थाय छे, आवी शक्ति आत्मामां छे.
ज्ञाननुं साधन शास्त्र नथी पण ज्ञाननुं साधन आत्मा ज छे.
चारित्रनुं साधन शरीर नथी पण चारित्रनुं साधन आत्मा ज छे. आत्माना ज ग्रहणथी ज्ञान–चारित्र वगेरे
निर्मळपर्यायो थाय छे, तेथी आत्मा ज तेमनुं साधन छे. अभेदपणे आत्मा पोते ज श्रद्धा–ज्ञान–चारित्र–तप वगेरे रूप छे–
‘मुज आत्म निश्चय ज्ञान छे,
मुज आत्म दर्शन चरित छे,
मुज आत्म प्रत्याख्यान ने
मुज आत्म संवर योग छे.’
(–समयसार गा. २७७)
आत्मा ज पोतानी दर्शन–ज्ञान–चारित्र वगेरे निर्मळ पर्यायोमां अभेदपणे परिणमे छे तेथी ते पर्यायो आत्मा
ज छे, तेनुं साधन पण आत्मा ज छे. त्रिकाळी द्रव्य ते कारण ने तेनी निर्मळपर्याय ते कार्य; आवा कारण–कार्य अभेद
एक साथे छे, बीजुं कोई भिन्न कारण नथी.
प्रश्नः– जो कारण–कार्य बंने साथे ज होय तो, शुद्धद्रव्यरूप कारण तो त्रिकाळ छे छतां कार्य केम नथी?
उत्तरः– शुद्ध कारणने स्वीकारे ने निर्मळ कार्य न होय एम बने ज नहि; ‘कारण त्रिकाळ छे’ एम स्वीकार्युं
कोणे? कारणने स्वीकारनारुं पोते ज निर्मळकार्य छे. अज्ञानीए तो शुद्धद्रव्यने कारण तरीके स्वीकार्युं ज नथी, तेणे तो
परने कारण तरीके मान्युं छे एटले शुद्धकारण तेनी द्रष्टिमां आव्युं ज नथी, ने सम्यग्दर्शनादि कार्य पण तेने थयुं नथी.
शुद्धकारणने स्वीकारे अने सम्यग्दर्शनादि कार्य न होय एम बने ज नहि. ‘कारण छे पण कार्य नथी’ एम जे कहे छे
तेणे खरेखर कारणने कारण तरीके स्वीकार्युं ज नथी. ध्रुववस्तु कारण, अने ज्यां तेनो स्वीकार कर्यो त्यां मोक्षमार्गरूप
कार्य,–ए रीते कारण–कार्य बंने एक साथे ज छे. जो कार्य नथी तो द्रव्यने कारण तरीके स्वीकारनार कोण छे?
शुद्धद्रव्यना अवलंबने ज्यां शुद्धकार्य थयुं त्यां भान थयुं के अहो! मारो स्वभाव ज मारा कार्यनुं कारण छे. आवुं कारण
मारामां पूर्वे पण हतुं पण में तेनुं अवलंबन न लीधुं तेथी कार्य न थयुं. हवे ते शुद्धकारणना स्वीकारथी सम्यग्दर्शनादि
शुद्धकार्य थयुं.
तीर्थंकर भगवंतोना मार्गमां तो मोक्षमार्गनुं साधन शुद्धआत्मा ज छे. शुद्धआत्मस्वभावना अवलंबनथी ज
मोक्षमार्गने साधी शकाय छे ने ए ज तीर्थंकर भगवंतोए बतावेलो मुक्तिनो मार्ग छे. भगवान पण ए ज मार्गे
मुक्ति पाम्या छे; ने ‘हे जीवो! तमे पण आ रीते तमारा चिदानंदस्वभावने ज साधनपणे अंगीकार करो..तेने साधन
करवाथी ज सिद्धि थाय छे’–एम भगवाननो उपदेश छे. आ सिवाय बीजा कोई साधनथी मोक्ष थाय एम भगवाने
कह्युं नथी.
जुओ, आ धर्मनुं साधन बतावाय छे.
धर्मनुं साधन शुं?
–देहनी क्रिया ते धर्मनुं साधन नथी;
–पुण्य ते धर्मनुं साधन नथी;
अनंत शक्तिसंपन्न धर्मी एवो जे आत्मा ते ज धर्मनुं साधन छे. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते धर्म छे, ने
आत्मानो स्वभाव ज तेनुं साधन छे. स्वामी समन्तभद्रआचार्यदेवे कह्युं छे के ‘न धर्मो धार्मिकैर्विना’ धर्म धार्मिक
विना होतो नथी; परमार्थे धर्मने धारण करनार एवो जे आत्मा (धर्मी) तेना विना सम्यग्दर्शनादि धर्म होतो नथी.
अनंतगुणने धारण करनार एवो आत्मा ते धर्मी छे ने तेना ज आधारे धर्म छे. आत्मा पोते साधक थईने पोताना
धर्मने साधे छे तेथी आत्मा साधु छे, अथवा आत्माना गुणो पोतपोतानी निर्मळ पर्यायोने साधे छे तेथी ते साधु छे;
ए ज रीते पोतपोतानी निर्मळ पर्यायोनी जतना (–रक्षा) करे छे तेथी यति छे; वळी सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र
इत्यादि निज ऋद्धि सहित