
झारो वगेरे साधन न होय ते पाडोशी पासे मांगवा जाय, पण जेना घरमां बधाय साधन होय ते बीजा पासे मांगवा
शा माटे जाय? तेम चैतन्यस्वभाव पोते सर्वसाधनसंपन्न छे, तेनामां एवी कोई अधूराश नथी के बीजा पासेथी
साधन मांगवुं पडे.
नथी के बीजा साधनने मेळववा पडे. ‘बीजा जीवोने जे वीतरागताना निमित्तो थया तेवा पदार्थोने हुं मेळवुं तो तेमना
निमित्ते मने वीतरागता थाय’–ए द्रष्टि ज ऊंधी छे; एने स्वभाव तरफ नथी वळवुं, पण हजी तो एणे निमित्तोने
मेळववा छे! एटले साधन थवानी ताकातवाळा पोताना स्वभावने ते खरेखर मानतो ज नथी. ज्ञानी तो पोताना
स्वभावसामर्थ्यने ओळखीने, तेनुं अवलंबन लईने तेने ज साधन बनावे छे.
(–साधनशक्ति, करणशक्ति) तारा स्वभावमां ज भरी छे. ते ज साधननो उपयोग करीने (एटले के स्वभावमां
उपयोगने वाळीने तारा सिद्धमंदिरने तैयार कर. तारी सिद्धिने साधवा माटे तारा स्वभावरूप एक ज साधन बस छे,
बीजा कोई साधनने शोध मा.
उपादेय नथी. जेनामां कर्मनी कोई विवक्षा नथी–एवुं जे पोतानुं
शुद्धपरमात्मतत्त्व, तेनो आश्रय करवाथी सम्यग्दर्शन थाय छे, तेनो ज
आश्रय करवाथी सम्यक् चारित्र थाय छे, ने तेनो ज आश्रय करवाथी
अल्पकाळमां मुक्ति थाय छे, माटे मोक्षना अभिलाषी एवा अति
नीकट–भव्य जीवे पोताना शुद्धआत्मतत्त्वनो ज आश्रय करवा जेवो
छे, एनाथी भिन्न बीजुं कांई आश्रय करवा जेवुं नथी. शुद्ध–सहज–
परमपारिणामिकभावरूप एवा पोताना शुद्ध आत्मतत्त्वने उपादेय
करवाथी ज मोक्ष थाय छे–ए नियम छे, तेथी अंतर्मुख थईने जे जीव
पोताना आवा शुद्ध आत्माने उपादेय तरीके अंगीकार करे छे ते ज
अति नीकटभव्य छे, ते ज अल्पकाळमां मोक्ष पामे छे. अने जे जीव
आवा शुद्धात्माने उपादेय नथी करतो, ने बहिर्मुख रागादिभावोने
उपादेय करे छे ते मूढ जीव दूर्भव्य छे,–तेने मोक्ष घणो दूर छे. माटे हे
आसन्नभव्य जीव! हे मोक्षार्थी जीव! तारा शुद्ध आत्मतत्त्वने ज तुं
उपादेय कर, ते ज उपादेय छे एम श्रद्धा कर, तेने ज उपादेय तरीके
जाण, ने तेने ज उपादेय करीने तेमां ठर.–आम करवाथी अल्पकाळमां
तारी मुक्ति थशे.