Atmadharma magazine - Ank 175
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १६ः आत्मधर्मः १७प
(समयसार–कर्ताकर्म अधिकार उपरना प्रवचनोमांथी)
(आत्मधर्म अंक १७२ थी चालु)
***
(८९) प्रश्नः– आत्मामां धर्म थाय तेनी पोताने खबर पडे?
उत्तरः– हा,
जेने आत्मामां धर्म थयो होय तेने पोताना स्वसंवेदनथी तेनी निःशंक खबर पडे छे. तेमज परीक्षा
वडे बीजानी ओळखाण पण थई शके छे.
(९०) प्रश्नः– हुं भव्य छुं–एवो निर्णय छद्मस्थने थई शके?
उत्तरः– हा;
ज्यां पोताने आत्मानुं भान थयुं ते क्षणे ज धर्मीने संदेह टळी जाय छे, ने निःशंकता थई जाय छे के
हुं भव्य ज छुं, ने भव्यमां पण हुं निकट भव्य छुं; मारो अनंत संसार कपाई गयो छे, ने हवे
अल्पकाळमां ज मारी मुक्ति थवानी छे.
(९१) प्रश्नः– सम्यक्त्व–मिथ्यात्वनी खबर पडे?
उत्तरः– हा;
ज्यां रागादिथी भिन्न चिदानंदस्वभावनुं भान अने अनुभव थया त्यां धर्मीने तेनी नि–संदेह
खबर पडे छे के अहो! आत्माना अपूर्व आनंदनुं मने वेदन थयुं, सम्यग्दर्शन थयुं, आत्मामांथी
मिथ्यात्वनो नाश थई गयो. ‘हुं समकिती हईश के मिथ्याद्रष्टि’–एवो जेने संदेह छे ते नियमथी
मिथ्याद्रष्टि छे. सम्यग्द्रष्टि धर्मात्माने एवो संदेह होतो नथी. तेमज धर्मी जीव परीक्षा वडे बीजाने पण
ओळखी ल्ये छे.
(९२) प्रश्नः– सर्वज्ञ भगवाननी आज्ञा शुं छे?
उत्तरः– ज्ञानस्वभावनो निर्णय करीने तेमां एकाग्रता करवी ते ज सर्वज्ञ भगवाननी आज्ञा छे; ते ज मोक्षमार्ग
छे. भगवान पण ए ज उपायवडे सर्वज्ञपद पाम्या छे.
(९३) प्रश्नः– “विज्ञान” एटले शुं?
उत्तरः– आत्मा
अने रागादि भिन्न छे–एवुं जे विशेष ज्ञान अर्थात् भेदज्ञान ते ‘विज्ञान’ छे. जेने आवुं
विज्ञान नथी तेने भले ज्ञाननो घणो उघाड होय तोपण ते ‘अज्ञान’ छे. भले विज्ञान (सायन्स) नी
मोटी मोटी डिग्री (उपाधि) मेळवी होय पण जो अंदरमां रागथी भिन्न आत्मानुं भान नथी तो ते जीव
खरेखर विज्ञानी नथी पण अज्ञानी ज छे. अने देडका वगेरे तिर्यंचने भले लखता–वांचता य न
आवडतुं होय पण भगवाननी दिव्य ध्वनि सांभळीने अंतरमां जो रागादिथी भिन्न चिदानंद स्वभावनुं
भान कर्युं छे तो ते अज्ञानी नथी पण विज्ञानी छे, भेदज्ञानी छे, धर्मी छे. जगतनुं विज्ञान (सायन्स) ते
कांई भवथी तरवामां काम नथी आवतुं, पण आ भेदज्ञानरूप आत्म–विज्ञान ते ज भवथी तारनार छे.
जे जीव जिज्ञासु थईने पूछे छे तेने समजावे छे.
(९प) प्रश्नः– जिज्ञासु शुं पूछे छे?
उत्तरः– जिज्ञासु एम पूछे छे के हे प्रभो! आ आत्मा ज्ञानी थयो ते शी रीते ओळखाय?–अर्थात् ज्ञानीनुं शुं
लक्षण छे?