ः ४ः आत्मधर्मः १७प
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
(४३)
करण शक्ति
* आ ‘करणशक्ति’ मां धर्मना
साधन संबंधी खूब स्पष्टीकरण
करवामां आव्युं छे. जिज्ञासु जीवोए ते
खास समजवा जेवुं छे.
“अहो! सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धदशा सुधीना मारा
कार्योनुं साधन थवानी ताकात मारा आत्मामां छे, बहारना
कोई पदार्थो मारुं साधन छे ज नहि”–आवो निर्णय करनार
धर्मात्मा बाह्यसाधनो शोधवानी व्यग्रता करतो नथी,
अंर्तस्वभावनुं अवलंबन लईने पोताना आत्माने ज ते
सम्यग्दर्शनादिनुं साधन बनावे छे.–ए वात आ करणशक्तिमां
आचार्यदेवे प्रसिद्ध करी छे.
आत्माए पोते कर्ता थईने पोताना सम्यग्दर्शनादि कार्यने कर्युं; परंतु तेनुं साधन शुं? कर्ताए कया साधनवडे
पोतानुं कार्य कर्युं?–ते हवे बतावे छे.
“भवता भावना भवनना साधकतमपणामयी करणशक्ति छे.”–आ शक्तिथी आत्मा पोते ज पोताना भावनुं
साधन थाय छे. “भवतो भाव” एटले वर्तमान वर्ततो भाव, ते कार्य छे, ते कार्य थवानुं उत्कृष्ट साधन आत्मा पोते
ज छे. साधकना आत्मामां जे