Atmadharma magazine - Ank 175
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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वैशाखः २४८४ः पः
सम्यग्दर्शनादि निर्मळ कार्य थाय छे तेनो ‘साधकतम’ आत्मा पोते ज छे. अहीं आत्माने ‘साधकतम’ कह्यो तेथी एम
न समजवुं के ‘साधक’ अने ‘साधकतम’ कोई बीजुं हशे. अहीं ‘साधकतम’ ए अनन्यपणुं बतावे छे एटले के
निर्मळ भावनुं साधन एक आत्मा पोते ज छे, तेनाथी भिन्न बीजुं कोई साधन छे ज नहि.
अहो! सम्यग्दर्शनथी मांडीने सिद्धदशा सुधीना जे जे भावो मारामां थाय तेनुं साधन थवानी ताकात
मारा आत्मामां छे, बहारना कोई पदार्थो मारुं साधन छे ज नहि. निमित्त ते पण मारा कार्यनुं साधन छे ज
नहि. आवो निर्णय करनार पोताना कार्यने माटे (सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रने माटे) बाह्य साधनो शोधवानी
व्यग्रता करतो नथी, ते तो अंर्तस्वभावनुं अवलंबन लईने पोताना आत्माने ज सम्यग्दर्शनादिनुं साधन
बनावे छे.
‘शरीर ते धर्मनुं साधन छे, सारा निमित्तो ते धर्मनुं साधन छे, शुभराग ते धर्मनुं साधन छे, सारो उपदेश ते
धर्मनुं साधन छे’–एम मानीने अज्ञानी तो तेना ज अवलंबनमां रोकाय छे. तेने अहीं समजावे छे के अरे जीव! तारा
धर्मनुं साधन थवानी ताकात तारा आत्मामां ज छे, अंतर्मुख थईने तारा आत्माने ज साधनपणे अंगीकार कर. ए
सिवाय बीजा कोई पदार्थोमां के रागमां तारा धर्मनुं साधन थवानी ताकात नथी. बीजा जे कोई साधन कहेवाता होय ते
बधाय उपचारथी ज छे,–ते उपचार पण कयारे लागु पडे? के वास्तविक साधन जे आत्मस्वभाव तेना अवलंबनवडे
ज्यारे निर्मळ कार्य प्रगट करे त्यारे निमित्त–राग–व्यवहार वगेरेने उपचार साधन कहेवाय छे. पण जे खरा साधनने
तो जाणे नहि ने उपचार साधनने ज खरुं साधन मानी ल्ये तेने तो निर्मळ कार्य थतुं ज नथी, अने कार्य थया वगर
तेना साधननो उपचार पण क्यांथी लागु पडे? ज्यां निश्चय साधन वडे कार्य थाय त्यां ज बीजाने (गुरुउपदेश
वगेरेने) व्यवहार साधन कहेवाय छे.
धर्मनुं खरुं साधन जे पोतानो शुद्धचिदानंद–स्वभाव तेनुं तो अवलंबन लेतो नथी अने व्यवहारना
शुभराग वगेरेने ज साधन मानीने तेना अवलंबनमां अटके छे ते जीवने स्वभावनी रुचि नथी पण विकारनी
रुचि छेः तेने सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप धर्म क्यांथी थाय? जेने आत्माना वीतरागी धर्मनो प्रेम होय ते
तेनाथी विरुद्ध भावोने आदरे नहि. राग तो आत्माना स्वभावथी विरुद्ध अने नुकसानकारक होवा छतां तेने जे
लाभकारक माने, ते रागने साधन माने, तेने तो रागनो प्रेम छे, रागरहित स्वभावनो प्रेम नथी; जेने रागनो
प्रेम छे ते रागरहित स्वभावने क्यांथी साधी शकशे? जे सम्यग्ज्ञान छे ते रागने पोताना स्वभावथी विरुद्ध
जाणे छे;–तेने साधन तरीके नथी जाणतुं पण बाधक तरीके जाणे छे, एटले तेमां ते तन्मय थतुं नथी. पोताना
शुद्ध स्वभावने ज साधन जाणीने तेमां एक्ता वडे रागनो अभाव करी नांखे छे. आ रीते स्वभाव–साधनवडे ज
सिद्धि पमाय छे. बहारना कोई साधनना अवलंबन विना आत्मा पोते पोतानी ताकातथी ज साधन थईने
सिद्धिने साधे छे.
घणा लोको पूछे छे के धर्मनुं साधन शुं? अहीं ते साधन बतावे छे. भाई! आत्मा पोते ज पोताना धर्मनुं
उत्कृष्ट साधन थवानी ताकातवाळो छे. जेम अग्निनी उष्णतानुं साधन बीजुं कोई नथी, पोते पोताना स्वभावथी ज
उष्णतानुं साधन छे; तेम चैतन्यमूर्ति आत्माने पोताना ज्ञान–आनंदनुं साधन बीजुं कोई नथी, पोते ज साधन थईने
ज्ञान–आनंदरूपे परिणमे छे. एक वार आत्मानी आवी ताकातनो विश्वास तो कर. आत्माना आवा साधननो विश्वास
करे त्यां बहारना साधन (निमित्त वगेरे) शोधवानी पराश्रयबुद्धि छूटी जाय, ने स्वभावना साधनथी अनंती शांति
थई जाय.
प्रश्नः– इन्द्रियो, पुस्तको, चश्मा वगेरे ज्ञाननुं साधन छे ने?
उत्तरः– ज्ञाननो एवो पराधीन स्वभाव नथी के पोताथी भिन्न साधननो आश्रय लेवो पडे. आत्मा स्वयं
ज्ञानस्वभावी छे, एटले आत्मा पोते ज ज्ञाननुं साधन छे. इन्द्रियो वगेरे जड छे, ते ज्ञाननुं साधन नथी. ज्ञाननुं
साधन ज्ञानथी जुदुं न होय. इन्द्रियो तो ज्ञानथी जुदी छे.
प्रश्नः– व्यवहार तो निश्चयनुं साधन छे ने?
उत्तरः– निश्चयरत्नत्रयनुं साधन थवानी ताकात द्रव्य–स्वभावमां ज छे, केमके करणशक्ति द्रव्यनी छे.