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जेणे निश्चयरत्नत्रयने साध्या तेने व्यवहाररत्नत्रय उपचारथी साधन कहेवाय छे. खरेखर तो द्रव्य ज साधकतम छे;
एना सिवाय व्यवहारथी कांई साध्य नथी.
व्यवहारद्वारा निश्चय साध्य छे–एम आचार्यदेवे न कह्युं, पण तेनाथी कांई ज साध्य नथी–एम कह्युं. ज्यां अंदरना
गुण–गुणीभेदरूप सूक्ष्म व्यवहारथी पण कांई साध्य नथी तो पछी बीजा स्थूळ रागादि तो सिद्धिनुं साधन क्यांथी
थाय? राग द्वारा अर्थात् रागने साधन बनावीने आत्माना स्वभावमां जवातुं नथी पण सीधा स्वभावना
अवलंबनथी ज स्वभावमां जवाय छे, एटले आत्मा पोते ज पोतानुं साधन थाय छे. ज्यां आत्मस्वभावनुं अवलंबन
ल्ये त्यां जरूर सम्यग्दर्शनादि थाय ज, अने आत्मस्वभावना अवलंबन वगर सम्यग्दर्शनादि थाय ज नहि; ए रीते
आत्मस्वभाव ज अबाघित साधन छे. बीजा जे कोई साधन कहेवामां आवता होय ते उपचारथी ज छे, नियमरूप
नथी–एम समजवुं.
निश्चयथी परनी साथे आत्माने कारणपणानो संबंध नथी, के जेथी शुद्धात्मस्वभावनी प्राप्तिने माटे सामग्री
(बाह्य साधनो) शोधवानी व्यग्रताथी जीवो नकामा परतंत्र थाय छे. आ रीते शुद्धात्मस्वभावनी प्राप्ति
अन्यकारकोथी निरपेक्ष होवाथी अत्यंत आत्माधीन छे. (जुओ प्रवचनसार गा. १६) सम्यग्दर्शननी प्राप्ति पण
अन्य कारकोथी निरपेक्ष, अत्यंत आत्माधीन छे; ए ज प्रमाणे सम्यग्ज्ञान–सम्यक्चारित्र वगेरेनी प्राप्ति पण
अन्य साधनोथी निरपेक्ष, अत्यंत आत्माधीन छे.
निर्मळ पर्यायो थाय छे. प्रवचनसार गा. १२६मां कह्युं छे के–
एम जो निश्चय करी,
मुनि अन्यरूप नव परिणमे,
प्राप्ति करे
लोकोए स्थूळपणे–बाह्यद्रष्टिथी बहारनां साधनो मानी लीधा छे, पण सूक्ष्मपणे–अंतरद्रष्टि करीने पोताना
छतां मने मारुं हित न मळ्युं, माटे अंतरमां बीजुं कांईक साधन होवुं जोईए–एम ऊंडाणथी विचारीने जीवे कदी साचा
साधननी तपास करी नथी. अरे! विकारथी भिन्न मारा आत्मानो अनुभव कया साधनथी थाय?–एम जेना अंतरमां
ऊंडी जिज्ञासा जागी छे तेने साधन बतावतां आचार्यदेव कहे छे के आत्मा अने बंधने जुदा करवारूप कार्यमां कर्ता जे
आत्मा तेना करण (साधन) संबंधी ऊंडी विचारणा–मीमांसा करवामां आवतां, निश्चये पोताथी भिन्न करणनो
अभाव होवाथी भगवती प्रज्ञा ज छेदनात्मक करण छे. ते प्रज्ञावडे तेमने छेदवामां आवतां तेओ जुदापणाने अवश्य
पामे छे, माटे प्रज्ञावडे ज आत्मा अने बंधनुं द्विधा करवुं छे, एटले के प्रज्ञारूपी साधनवडे ज तेमनुं भेदज्ञान थाय छे.
(जुओ, समयसार गा. २९४ टीका)
थईने पटकवाथी तेमने छेदी शकाय छे–एम अमे जाणीए छीए.’