सद्भाव छे, केमके निर्मळ पर्याय ज आत्माना स्वभाव साथे अभेद थाय छे, राग के शरीर साथे आत्मानी
अभेदता नथी. राग संप्रदान थईने आत्माना सम्यग्दर्शनादिने धारी राखे, के आत्मा संप्रदान थईने रागने
धारी राखे–एम नथी; ए ज प्रमाणे आत्मा संप्रदान थईने शरीरने धारी राखे, के शरीर संप्रदान थईने
आत्माने धारी राखे–एम पण नथी. आत्मा संप्रदान थईने पोतानी निर्मळ पर्यायने धारी राखे छे. आवा
आत्माने समज्या वगर सुख थतुं नथी. आवा आत्मस्वभावने समजवो ते ज जन्ममरणना दुःखथी छूटीने
सुखी थवानो रस्तो छे. अंतरना अचिंत्य रस्ता ज्ञानीओए प्रगट करीने बताव्या छे...अहो! मुक्तिना मार्ग
संतोए सुगम करी दीधा छे. संतोनी बलिहारी छे!!
लेवाना पात्ररूप संप्रदान छे. आत्माना धर्मने रहेवा माटे रागादि के शरीर ते संप्रदान नथी, तेम ज आत्मा ते
रागादिनुं संप्रदान नथी. जेम आंबो तो केरी ज आपे, आंबो कांई आकोलीया न आपे; केमके आंबो केरीनुं ज
संप्रदान छे, आकोलीयानुं संप्रदान आंबो नथी; तेम आत्मामां एकाग्र थतां आत्मा तो निर्मळ पर्यायो ज आपे,
आत्मा कांई विकार न आपे, केमके आत्मामां निर्मळ पर्यायोनुं ज संप्रदान थवानो स्वभाव छे, विकारनुं
संप्रदान थवानो आत्मानो स्वभाव नथी. आ रीते निर्मळ पर्यायने ज आपे ने तेने ज ल्ये एवो आत्मानो
स्वभाव छे. ए प्रमाणे ज्ञान–आनंद वगेरे बधाय गुणोमां पण एवो स्वभाव छे के पोतपोताना स्वभावथी
निर्मळ पर्याय ज आपे, ने तेने ज पोते ल्ये.
सम्यग्ज्ञान छे, एवुं ज्ञान देवानो ने तेने ज लेवानो आत्माना ज्ञानगुणनो स्वभाव छे. वाणी तो जड छे, ते
वाणीद्वारा ज्ञान देवातुं नथी के ज्ञान तेने लेतुं नथी, तेम ज ते वाणी तरफना विकल्पद्वारा पण ज्ञान देवातुं नथी
के ज्ञान ते विकल्पने लेतुं नथी. आत्मा पोते ज पोताना ज्ञानस्वभावमांथी ज्ञान आपे छे, ने ते निर्मळ ज्ञानने
ज लेवानो ज्ञानगुणनो स्वभाव छे. आ सिवाय अज्ञान साथे ज्ञानस्वभावने कांई लेवा–देवा नथी. आत्मा साथे
अभेदपणुं करीने जे ज्ञान प्रगटयुं तेनी साथे ज आत्माने लेवादेवा छे, ते ज्ञान टकीने केवळज्ञान थई जशे.
एकला पराश्रये वर्ततुं ज्ञान आत्मा साथे टकी नहि शके, ते हणाई जशे. माटे हे भाई! जो तारे तारा ज्ञानने
टकाववुं होय–विकसाववुं होय तो आत्मामां तेने समर्पण कर! जेम सर्वज्ञभगवान पासे जईने
ज्ञानगुणनो स्वभाव छे.
आत्मस्वभावनी श्रद्धा करी ते देवा–लेवानो स्वभाव होवाथी आत्मा साथे सदाय टकी रहेशे; अर्थात् श्रद्धागुण
सदाय सम्यक्त्व पर्याय आप्या ज करे छे ने पोते संप्रदान थईने तेने लीधा ज करशे.
चारित्रगुणनुं स्वरूप नथी. ते रागादिभावो आत्मा साथे अभेद थईने टकता नथी, ने शांत अ–रागभाव तो
आत्मामां लीनता करीने टके छे.
दुःख ल्ये. दुःखनुं संप्रदान थवानो तेनो स्वभाव ज नथी.