Atmadharma magazine - Ank 176
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १२ः आत्मधर्मः१७६
(आ ज्ञान–श्रद्धा–चारित्र ने आनंदनी जेम पुरुषार्थ वगेरे बधा गुणोमां समजी लेवुं.)
‘अहो! हुं ज दातार थईने मारा आत्माने सदाय आनंद आप्या ज करुं, ने हुं ज संप्रदान थईने सदाय आनंद
लीधा ज करुं–आवो मारो स्वभाव छे’–एम ज्यां श्रद्धा थई त्यां पोताना स्वभावना आनंदनुं वेदन थयुं, ने बाह्यमां
क्यांय पण आनंदनी कल्पना स्वप्नेय न रही. पोते ज दातार थईने पोताने आनंद दीधो, ने पोते ज लेनार थईने
पोतानो आनंद लीधो; तेथी ते आनंद सदाय टकी ज रहेशे, अर्थात् आत्मा सदाय पोताने आनंद दीधा ज करशे ने पोते
ते सदाय लीधा ज करशे. माटे हे जीव! जो तारे आनंद जोईतो होय तो आनंदना दातार एवा तारा आत्मा पासे ज
जा. त्यांथी ज तने आनंद मळशे, ए सिवाय जगतमां बीजे क्यांयथी तने आनंद नहि मळे.
आत्मा पोते निर्मळ पर्यायोनो दातार छे ने पोते ज तेनो लेनार छे, आवो आत्मानो संप्रदान स्वभाव छे; ते
समजाववा माटे अहीं ज्ञान, श्रद्धा, चारित्र तथा आनंदगुणनी जुदी जुदी वात लीधी छे. पण ए ध्यान राखवुं के एकेक
गुणना भेदना लक्षे निर्मळता थती नथी. आत्मा तो एक साथे अनंतगुणनो पिंड छे, तेना ज लक्षे बधा गुणोनी
निर्मळ दशा थाय छे; एक शक्तिने जुदी पाडीने तेना लक्षे विकास करवा मागे तो तेनो विकास थतो नथी, त्यां तो मात्र
विकल्प थाय छे. ते विकल्पमां एवी ताकात नथी के कोई गुणनी निर्मळ दशा आपे. अखंड आत्मस्वभावमां ज एवी
ताकात छे के अनंतगुणोथी भरेली परमात्मदशाने आपे.
अहो! मारो आत्मा अनंत अनंत शक्तिनो भंडार अनादिअनंत छे. ज्यारे हुं पात्र थईने लउं त्यारे मने
मारी परमात्मदशा आपे एवो ते उदार दातार छे.–आवा निजस्वभावनी, हे जीवो! तमे प्रतीत तो करो...तेनी
ओळखाण तो करो...तेना प्रत्ये उल्लास तो करो! आवा चैतन्यस्वभावने जेणे लक्षमां लीधो तेनुं जीवन सफळ छे.–
बाकी बीजानुं तो शुं कहेवुं?
आत्मा पोते ज पोताने सुखनो दातार छे. जो आत्मा पोते ज पोताने सुखनो दातार न होय ने बीजा पासेथी
सुख मागवुं पडतुं होय तो तो पराधीनता थई, पराधीनतामां तो स्वप्नेय सुख क्यांथी होय? स्वाधीनपणे आत्मा
पोते ज पोताने सुखनो दातार छे, ने पोते ज पात्र थईने लेनार छे.
(१) ‘पात्रे दान देवुं’–पात्र कोण छे जगतमां? हुं आत्मा पोते ज मारुं सुख लेवाने पात्र छुं.
(२) ‘दातार छे कोई?’–हा अनंतशक्तिथी भरेलो हुं पोते ज दातार छुं.
(३) ‘दातार दानमां शुं देशे?’ मारो आत्मा दातार थईने ज्ञान–दर्शन–आनंदरूप निर्मळ पर्यायोनुं दान देशे.
(४) कई विधिथी दान देशे?–पोताथी ज देशे, एटले के पोते पोताना स्वरूपमां एकाग्र रहीने स्वरूप–
भंडारमांथी ज निर्मळ पर्यायो काढी काढीने तेनुं दान देशे.
दान देवानो अवसर आवे त्यां दातार छूपे नहि, तेम हे जीव! तारे आ दाननो अवसर आव्यो छे, तेने तुं
चूकीश नहि. तुं पोते पात्र थईने, अने तुं पोते ज दातार थईने, ज्ञान–दर्शन–आनंदनी निर्मळ पर्यायोनुं दान, अंतरमां
एकाग्र थईने आप अने संप्रदान थईने ते दान तुं ले. अनंत शक्तिथी परिपूर्ण चैतन्य स्वभाव जेवो मोटो दातार
मळ्‌यो, तो हवे तेनी सेवा (श्रद्धा अने एकाग्रता) करीने परमात्मदशानां दान मांग, तो तने तारी परमात्मदशानां दान
मळी जाय. ते परमात्मदशा लईने तेनुं संप्रदान थवानो तारो स्वभाव छे.
मारा स्वभावने साधीने हुं परमात्मा थाउं–एवी भावनाने बदले, ‘हुं समजीने पछी बीजाने समजावुं’
एम बीजाने समजाववाना अभिप्रायथी जे समजवा मांगे छे ते पोतानी समजणनुं संप्रदान परने माने छे
एटले अंतर्मुख थईने पोताना स्वभावने ते साधी शकतो नथी. जे आत्मार्थी छे ते तो पोतपोताना हितने माटे
ज समजवा मांगे छे.
अहो! अनंतकाळे मांड मांड मळे एवा आ टाणां आव्या छे, तेमां गुरुगमे सत् स्वभावनुं श्रवण मळवुं तो
महादुर्लभ छे. आवा अवसरमां अपूर्व भावे श्रवण, ग्रहण ने धारण करीने स्वभावमां पहोंची जवानी आ वात छे,
ए ज करवा जेवुं छे. एना सिवाय बीजुं तो बधुंय ऊकरडा ऊथामवा जेवुं थोथे–थोथा छे.
भगवान आत्मानुं वास्तविक स्वरूप ओळखाववा माटे तेनी शक्तिओनुं आ वर्णन चाले छे; तेमां आ (४४
मी) संप्रदान शक्तिमां आत्माने सुपात्र ठराव्यो,