Atmadharma magazine - Ank 176
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १४ः आत्मधर्मः १७६
आतम शक्ति साधे ग्यानको उदौ आराधे,
सोई समकिती भवसागर तरतु
है.
(नाटक समयसारः ८)
–जुओ, आ साधक समकितीनी अद्भुत दशा!! जेना हृदयमां गणधर जेवो निज–परनो विवेक प्रगट
थयो छे, जे आत्माना अनुभवथी आनंदित थईने मिथ्यात्वादि महामोहने नष्ट करे छे, साचा स्वाधीन सुखने
सुख माने छे, पोताना ज्ञानादि गुणोनुं अविचल श्रद्धान करे छे, पोताना सम्यग्दर्शनादि स्वभावने पोतामां ज
धारण करे छे, जेम कतकफळ जळ अने कादवने जुदा करे छे तेम भेदज्ञानवडे जे जीव अने अजीवने विलक्षण
जाणीने जुदा करे छे, आत्मशक्तिने जे साधे छे ने ज्ञानना उदयने (केवळज्ञानने) आराधे छे;– आवा समकिती
जीव भवसागरने तरे छे.
समकिती जीवनी खरेखरी ओळखाण करे तोय जीवनुं लक्ष फरी जाय, ने पोताना स्वभाव तरफ वलण थई
जाय. समकिती तो पोताना स्वभावने ज साधे छे. अरे जीव! तुं ज तारो दातार, ने तुं ज तारो लेनार. तुं दातार
थईने तारी पर्यायमां गमे तेटलुं दान आप तोय तारी स्वभावशक्तिमांथी कांई घटे नहि–आवो तारो स्वभाव छे.
आवा दातारने छोडीने हवे बहारमां तारे बीजो कयो दातार गोतवो छे? आ दातार सामे जोईने तेनी पासेथी तुं
निर्मळ पर्यायनुं दान लेवाने पात्र था...बीजा पासे भीख न मांग.
बीजा पासे दान मांगे त्यां तो बीजो न पण आपे, पण अहीं तो पोते पात्र थाय त्यां आत्मा
सम्यग्दर्शन, वगेरेनुं दान आप्या विना रहे ज नहि–एवो मोटो दातार छे. पोते ज दातार छे पछी शी चिंता?
स्वभावमां एकाग्र थईने तारे जोईए तेटलुं दान ले..तारे जेटला ज्ञान ने आनंद जोईए तेटला देवानी ताकात
तारा स्वभावमां भरी छे. लौकिकमां तो दान आपनार दातारनी मूडी घटे छे पण अहीं तो आत्मा पोते एवो
लोकोत्तर दातार छे के क्षणेक्षणे (–समये समये) परिपूर्ण ज्ञान–आनंदना दान अनंतकाळ सुधी आप्या ज करे
छतां तेनी मूडी जराय घटे नहि.
आत्मा पोते परिपूर्ण शक्तिमान छे, पोते पोतामां लीन थईने पोताना स्वभावमांथी निर्मळतानुं दान
करे छे, अने पोते ज ते दान ल्ये छे,–आवुं दान लेवानी पात्रतारूप संप्रदानशक्ति आत्मामां छे. जेम आत्मामां
ज्ञानशक्ति छे, आनंदशक्ति छे, तेम आ संप्रदानशक्ति पण छे. जो आत्मामां ज्ञानशक्ति न होय तो आत्मा
जाणे क्यांथी? जो आत्मामां सुखशक्ति न होय तो आत्माने अनाकुळतारूप सुख क्यांथी थाय? जो आत्मामां
श्रद्धाशक्ति न होय तो पोते पोतानो विश्वास क्यांथी करी शके? जो आत्मामां चारित्रशक्ति न होय तो पोताना
स्वरूपमां स्थिरता केम करी शके? जो आत्मामां जीवनशक्ति न होय तो आत्मा जीवी केम शके? जो आत्मामां
वीर्यशक्ति न होय तो ते पोताना स्वरूपनी रचनानुं सामर्थ्य क्यांथी लावे? जो आत्मामां प्रभुत्व शक्ति न होय
तो अखंडित प्रतापवाळी स्वतंत्रताथी ते कई रीते शोभे? जो आत्मामां कर्तृत्वशक्ति न होय तो पोते पोताना
निर्मळकार्यने कई रीते करे? ए ज प्रमाणे जो आत्मामां संप्रदान शक्ति न होय तो पोते पोतानो दातार, ने
पोते ज निर्मळतानो लेनार कई रीते थई शके? पोताना स्वभावथी आत्मा पोते ज ज्ञान–आनंदनो देनार छे ने
पोते ज तेनो लेनार छे–एवा भान विना परचीज देवा–लेवानो मिथ्या विकल्प कदी छूटे नहि, ने अंतरमां
एकाग्रता थाय नहि. ज्ञानी तो ‘हुं ज मारो दातार ने हुं ज मारो लेनार’ एवा निर्णयना जोरे अंर्तस्वभावमां
एकाग्र थईने ज्ञान–आनंदना निधान मेळवी ल्ये छे. जो बीजो द्ये ने पोते ल्ये तो तो पराधीनता थई गई,
पोतानी स्वाधीनशक्ति न रही. जो आत्मामां पोते ज दातार ने पोते ज लेनार एवी शक्ति न होय तो पर
सामे ज जोया करवुं पडे ने पोतामां कदी एकता थाय ज नहि. पण आत्मामां एवी संप्रदान शक्ति छे के एक
समयमां पोते ज देनार ने पोते ज लेनार छे, देवानो ने लेवानो समयभेद नथी, तेमज देनार ने लेनार जुदा
नथी. अहो! मारा स्वभावमांथी ज केवळज्ञान अने सिद्धपदना दान लेवानी मारी ताकात छे–एम प्रतीत करीने
स्वसन्मुख थईने पोते पोतानी शक्तिनुं दान कदी लीधुं नथी, स्वने चूकीने परना आश्रये अनादिथी विकारनुं ज
दान लीधुं छे. जो पात्र थईने पोते पोतानी शक्तिमां दान ल्ये तो अल्प काळमां मुक्ति थाय, माटे हे जीव! तारी
स्वभावशक्तिने संभाळ..ने ते स्वभाववडे देवामां आवता निर्मळज्ञान–आनंदनुं दान ले.
–४४मी संप्रदानशक्तिनुं वर्णन अहीं पूरुं थयुं.