जेठः २४८४ः १पः
(समयसार–कर्ताकर्मअधिकार उपरना प्रवचनोमांथी)
(आत्मधर्म अंक १७प थी चालु)
(११३) प्रश्नः– धर्मीनो उपयोग ज्यारे रागमां जोडायेलो होय त्यारे ते ज्ञानी छे के अज्ञानी?
उत्तरः– धर्मीनो उपयोग ज्यारे परने के रागादिने जाणवामां जोडायेलो होय त्यारे पण ते ज्ञानी ज छे, केमके
रागने जाणता होवा छतां ते वखते य रागमां तन्मयपणे नथी परिणमता, ते वखते य ज्ञानमां ज
तन्मयपणे परिणमे छे, माटे ते ज्ञानी ज छे; रागनुं अने ज्ञानस्वभावनुं भेदज्ञान ते वखते पण तेने
वर्ते ज छे, तेथी ते ज्ञानी ज छे.
(११४) प्रश्नः– मिथ्याद्रष्टि केवो छे?
उत्तरः– मिथ्याद्रष्टि
ज्यारे रागने जाणे छे त्यारे ‘राग ते ज हुं’ एम मानीने रागमां ज तन्मयपणे परिणमे छे.
पण रागथी भिन्न ज्ञानपणे परिणमतो नथी, तेथी ते अज्ञानी छे; ज्ञान अने रागनुं भेदज्ञान तेने नथी.
ज्ञान परिणाम ते ज ज्ञानीनुं कर्म छे.
अज्ञानी रागादि परिणामने पोताना कर्मपणे करे छे, तेथी ते तेनुं कर्म छे.
(११७) प्रश्नः– कर्ताकर्मपणुं क्यां होय? ने क्यां न होय?
उत्तरः– कर्ताकर्मपणुं एक स्वरूपमां होय, भिन्न भिन्न स्वरूपमां न होय; जेम के–ज्ञानने ज्ञानपरिणाम साथे
कर्ताकर्मपणुं छे केमके ते बंने एक स्वरूपे छे; पण ज्ञानने राग–परिणाम साथे कर्ताकर्मपणुं नथी केमके
ज्ञान अने राग ए बंने एक स्वरूप नथी पण भिन्न भिन्न स्वरूप छे. (अहीं ‘एक स्वरूप’ एटले
‘तत्स्वरूप’ एम समजवुं.)
(११८) प्रश्नः– जीवने शेनुं भोक्तापणुं होय छे?
उत्तरः– पोताना जे भावने जीव करे छे तेनो ज ते भोक्ता छे. आ रीते जीव पोताना भावनो ज भोक्ता छे,
परचीजनो ते भोक्ता नथी.
जेम कर्ताकर्मपणुं ‘तत्स्वरूप’ मां ज होय छे, भिन्न भिन्न वस्तुमां होतुं नथी, तेम भोक्ता–
भोग्यपणुं पण ‘तत्स्वरूप’ मां ज होय छे, भिन्न भिन्न वस्तुमां होतुं नथी. माटे जीव परचीजनो
भोक्ता नथी. जे भावने पोतामां एकमेकपणे ते करे छे तेनुं ज तेने वेदन होय छे.
(१२०) प्रश्नः– ज्ञानीने शेनुं वेदन होय छे?
उत्तरः– साधकदशामां ज्ञानीने आत्माना ज्ञान–आनंदनुं वेदन होय छे; हर्ष–शोकनुं अल्प वेदन छे पण तेमां
एकता–बुद्धिपूर्वक तेनुं वेदन नथी, तेथी ते वेदननी मुख्यता नथी.
(१२१) प्रश्नः– सर्वज्ञ परमात्माने शेनुं वेदन छे?
उत्तरः– सर्वज्ञ
परमात्माने पोताना परिपूर्ण ज्ञान–