Atmadharma magazine - Ank 176
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १६ः आत्मधर्मः १७६
आनंदनुं ज वेदन छे, हर्ष–शोकनुं वेदन तेमने जरा पण नथी.
(१२२) प्रश्नः– अज्ञानीने शेनुं वेदन होय छे?
उत्तरः–
अज्ञानी जीव हर्ष–शोकथी भिन्न पोताना ज्ञानानंदस्वरूपने जाणतो नथी, तेथी ते हर्ष–शोकमां ज
एकाकार थईने तेने ज वेदे छे; ज्ञान–आनंदनुं वेदन तेने जरा पण नथी. बाह्य संजोगोने तो कोई पण
जीव वेदतो नथी.
(१२३) प्रश्नः– ज्ञानीने ज्ञान–आनंदनुं वेदन, तेमज हर्ष–शोकनुं पण वेदन, एम बंने वेदन होवा छतां “तेने एकला
ज्ञान–आनंदनुं ज वेदन छे ने हर्ष–शोकनुं वेदन नथी”–एम केम कह्युं?
उत्तरः– जेनी साथे अभेदता छे तेनुं ज वेदन छे, ने जेनाथी भिन्नता छे तेनुं वेदन नथी–ए अपेक्षाए ज्ञानीने
ज्ञान–आनंदनुं वेदन ज छे ने हर्ष–शोकनुं वेदन नथी एम कह्युं छे. जे ज्ञान–आनंदरूप निर्मळ भाव
प्रगटयो छे तेनी साथे आत्मानी अभेदता होवाथी ज्ञानी तेनो ज वेदक छे; अने जे हर्ष–शोक थाय छे
तेने पोताना स्वभावथी भिन्नपणे जाणतो होवाथी ज्ञानी तेनो वेदक नथी. जेना उपर द्रष्टि पडी छे
तेनुं ज वेदन छे.
(१२४) प्रश्नः– आनंदनुं वेदन केम थाय?
उत्तरः– मारो आत्मा ज्ञान–आनंदस्वरूप छे, हर्ष–शोकादि भावो मारा स्वभावथी जुदा छे–एवुं भेदज्ञान
करीने, अंतरना ज्ञान–आनंदस्वरूप तरफ वळतां आत्माना आनंदनुं वेदन थाय छे. भेदज्ञान पछी
साधकदशामां जो के अल्प हर्ष–शोक थाय छे, छतां श्रद्धामां तो वेदननो एक ज प्रकार छे.
(१२प) प्रश्नः– “श्रद्धामां वेदननो एक ज प्रकार छे” एटले शुं?
उत्तरः–
धर्मी जीवनी द्रष्टि पोताना ज्ञानानंदस्वरूप उपर छे त्यां ते पोताना ज्ञानानंदस्वरूपने एकने ज वेदे छे,
हर्षादिना वेदनने धर्मीनी द्रष्टि पोतामां स्वीकारती नथी; माटे श्रद्धा अपेक्षाए तो धर्मीने एकला
आनंदनुं ज वेदन छे. चारित्र अपेक्षाए तेने वेदनना बे प्रकार छे.
(१२६) प्रश्नः– ‘चारित्र अपेक्षाए वेदनना बे प्रकार’ कई रीते छे?
उत्तरः– धर्मी
जीवने पोताना ज्ञानानंदस्वभावना भानपूर्वक जेटले अंशे तेमां लीनता थई छे तेटले अंशे तो
आनंदनुं वेदन छे, अने जेटला हर्ष–शोकरूप अस्थिरताना भाव छे तेटलुं आकुळतानुं पण वेदन छे; ए
रीते साधकदशामां वेदनना बंने प्रकार एक साथे वर्ते छे.
(१२७) प्रश्नः– अज्ञानीना वेदनमां कयो प्रकार छे?
उत्तरः– अज्ञानी
“हर्ष–शोक वगेरे भावो ते ज हुं” एवी एकत्वबुद्धिने लीधे एकांत हर्ष–शोकादि भावोने ज
वेदे छे, एटले तेना वेदनमां दुःखनुं ज एकलुं वेदन छे.
(१२८) प्रश्नः– भगवान सर्वज्ञना वेदनमां कयो प्रकार छे?
उत्तरः– भगवान
सर्वज्ञना वेदनमां परिपूर्ण ज्ञानानंदनो एक ज प्रकार छे, हर्ष–शोकादिनुं वेदन तेमने जरा
पण नथी. –आ रीते वेदन बाबतमां चार बोल थया.
(१२९) प्रश्नः– वेदन बाबतमां चार बोल कई रीते थया?
उत्तरः– (१)
सर्वज्ञने एकलुं आनंदनुं ज वेदन छे.
(२) अज्ञानीने एकलुं दुःखनुं ज वेदन छे.
(३) साधक ज्ञानीने अंशे आनंदनुं वेदन, तेमज अंशे दुःखनुं पण वेदन,–एम बंने वेदन छे.
(४) साधकने बंने वेदन होवा छतां द्रष्टि अपेक्षाए एकलुं आनंदनुं ज वेदन छे; हर्ष–शोकादिने
पोताना स्वभावमां एकपणे ते वेदतो ज नथी. –आ रीते वेदनना चार बोल छे.
(१३०) प्रश्नः– आ चार बोलमांथी अहीं ७८मी गाथामां कयो बोल लागु पडे छे?
उत्तरः– अहीं
चोथो बोल लागु पडे छे.
(१३१) प्रश्नः– निश्चयथी आत्मा शेनो कर्ता–भोक्ता छे?
उत्तरः–
निश्चयथी आत्मा पोताना भावोनो ज कर्ता–भोक्ता छे.
(१३२) प्रश्नः– कयो व्यवहार अज्ञानीओने अनादिथी प्रसिद्ध छे?