जेठः २४८४ः १७ः
उत्तरः– खरेखर आत्मा परनो कर्ता–भोक्ता न होवा छतां, ‘आत्मा पुद्गलकर्मने करे छे अने भोगवे छे’
एवो अज्ञानीओनो अनादिसंसारथी प्रसिद्ध व्यवहार छे.
(१३३) प्रश्नः– ए व्यवहारमां शुं दूषण छे?
उत्तरः– आत्मा पोताना भावने करे तथा भोगवे, अने पुद्गलकर्मने पण ते करे अने भोगवे,–तो ते आत्मा बे
क्रियावाळो ठरे–ए मोटो दोष आवे छे; एक द्रव्यने बे क्रिया होय–ए वात सर्वज्ञना मतथी बहार छे.–माटे
आत्मा पोताना ज परिणामने करतो प्रतिभासो, परंतु पुद्गल परिणामने करतो कदी न प्रतिभासो.
(१३४) प्रश्नः– एक आत्मा बे द्रव्योनी क्रिया केम न करे?
उत्तरः– केमके बे द्रव्योनी क्रिया भिन्न ज छे. जडनी क्रिया जडरूप छे, चेतननी क्रिया चेतनरूप छे; जडनी क्रिया
चेतन करतुं नथी, चेतननी क्रिया जड करतुं नथी.–माटे जे पुरुष एक द्रव्यने बे क्रिया माने ते
मिथ्याद्रष्टि छे, ने जिनना मतथी ते बहार छे.
(१३प) प्रश्नः– जगतमां जे क्रिया छे ते बधीए केवी छे?
उत्तरः– जगतमां जे कोई क्रिया छे ते बधीए परिणामस्वरूप ज छे; जडनी क्रिया जडना परिणामस्वरूप छे, ने
आत्मानी क्रिया आत्माना परिणामस्वरूप छे; क्रिया परिणामथी जुदी नथी.
(१३६) प्रश्नः– परिणाम केवा छे?
उत्तरः– परिणाम परिणामीथी अभिन्न छे. आ रीते वस्तुथी जुदा तेना परिणाम नथी, ने परिणामथी जुदी
क्रिया नथी; माटे कोई पण वस्तुनी क्रिया ते वस्तुथी जुदी होती नथी.
(१३७) प्रश्नः– आमां शुं सिद्ध थयुं?
उत्तरः– अहीं एम सिद्ध कर्युं के वस्तुस्थितिथी ज क्रिया अने कर्तानुं अभिन्नपणुं सदाय तपी रह्युं छे; कर्ता अने
तेनी क्रिया अभिन्न ज होय–एवी वस्तुनी मर्यादा छे.
(१३८) प्रश्नः– कोण सर्वज्ञना मतथी बहार छे?
उत्तरः– वस्तुस्वरूपनी मर्यादाने तोडीने जेओ एम माने छे के आत्मा परनी क्रियाने पण करे,–तेओ द्विक्रियावादी–
मिथ्याद्रष्टि होवाथी सर्वज्ञना मतनी बहार छे,–‘नमो अरहंताणं’ ने ते खरेखर मानतो नथी.
(१३९) प्रश्नः– द्विक्रियावादी सर्वज्ञना मतनी बहार छे–एटले शुं?
उत्तरः– शरीरादि जडनी क्रियाने आत्मा करे तथा भोगवे–एम जे माने छे ते द्विक्रियावादी छे; सर्वज्ञना मतमां
कहेलुं बे द्रव्योनुं भिन्नपणुं ते मानतो नथी तेथी ते सर्वज्ञना मतनी बहार छे, एटले के मिथ्याद्रष्टि छे;
तेणे खरेखर सर्वज्ञदेवने मान्या नथी.
(१४०) प्रश्नः– आत्माने परद्रव्यनी क्रियानो कर्ता–भोक्ता माननार केम मिथ्याद्रष्टि छे?
उत्तरः– केमके परद्रव्यनी क्रियानो कर्ता जे पोताने माने छे ते जीव पोताने परथी भिन्न नथी मानतो; एटले
तेने स्वपरनी भिन्नतानुं भान रहेतुं नथी, तेथी अनेक द्रव्यस्वरूपे एक आत्माने मानतो होवाथी ते
मिथ्याद्रष्टि ज छे.
(१४१) प्रश्नः– ज्ञानी अने अज्ञानीनुं कार्य शुं छे?
उत्तरः– ज्ञानी के अज्ञानी कोई पण जीव परद्रव्यनी क्रिया तो करी शकतो ज नथी; ज्ञानी पोताना ज्ञान
परिणामने करे छे, अने अज्ञानी पोताना अज्ञान परिणामने करे छे; माटे आचार्यदेव कहे छे के आत्मा
पोताना ज परिणामने करतो प्रतिभासो; पुद्गलना परिणामने करतो तो कदी न प्रतिभासो.
(१४२) प्रश्नः– कर्ता कोण छे?
उत्तरः– कार्यरूपे जे परिणमे छे ते कर्ता छे. जेमके घडारूपे परिणमनारी माटी ज घडानी कर्ता छे, कुंभार तेनो
कर्ता नथी केमके कुंभार घडारूपे परिणमतो नथी.
(१४३) प्रश्नः– ‘कर्म’ शुं छे?
उत्तरः– कर्तानुं जे परिणाम छे ते कर्म छे. कर्तानुं परिणाम पोताथी जुदुं होतुं नथी. जेमके कुंभारना इच्छा
वगेरे परिणाम ते ज कुंभारनुं कर्म छे, पण घडो ते कुंभारनुं कर्म नथी, केमके ते तो कुंभारथी भिन्न
छे. घडो ते कुंभारनुं