Atmadharma magazine - Ank 176
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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जेठः २४८४ ः २३ः
जिनशासनप्रभावक पू. कहानगुरुदेवना पुनितप्रतापे सौराष्ट्रना भक्तजनोने ठेरठेर जिनेन्द्रभगवंतोनो भेटो
थई रह्यो छे, अने तीर्थंकरभगवंतोना पंचकल्याणकना अद्भुत महोत्सवोनुं महान सौभाग्य प्राप्त थाय छे.
जिनेन्द्रभगवाननुं तेमज जिनेन्द्रभगवाने कहेला मार्गनुं यथार्थ स्वरूप समजावीने पू. गुरुदेव भक्तजनो उपर परम
उपकार करी रह्या छे.
लींबडी शहेरमां पण गुरुदेवना प्रतापे भव्य दि. जिनमंदिर तैयार थयुं अने तेमां श्री पार्श्वनाथादि
भगवंतोनी प्रतिष्ठानो भव्य पंचकल्याणक महोत्सव गुरुदेवनी मंगलकारी छायामां ऊजवायो. वैशाख सुद पांचमे
प्रतिष्ठा माटेना खास मंडपमां श्री जिनेन्द्रभगवानने बिराजमान करीने झंडारोपण करवामां आव्युं, तथा
अंकुरारोपण, जलयात्रा अने समवसरण मंडलविधान थयुं हतुं. मंडलविधान पूरुं थतां वैशाख सुद सातमे
श्रीजिनेन्द्रदेवनो अभिषेक थयो हतो.
वैशाख सुद ९ना रोज पू. गुरुदेव लींबडी पधार्या हता; अने नांदीविधान तथा इन्द्रप्रतिष्ठा पण ते ज दिवसे
थया हता. हाथी उपर इन्द्रोनो वरघोडो तथा गुरुदेवना स्वागतनुं जुलुस–ए बंने एक साथे ज नीकळ्‌या हता. आ
प्रसंगे नगरी घणी सुशोभित शणगारेली हती. अमदावादनी बेन्डपार्टी अने हाथीने लीधे आ जुलुस घणुं ज
प्रभावशाळी हतुं, ने आखुं शहेर ते जोवा उमटयुं हतुं. गुरुदेवे मांगळिक संभळाव्या बाद यागमंडलविधान (–जेमां
इन्द्रोद्वारा पंचपरमेष्ठी वगेरेनुं पूजन थाय छे ते) थयुं हतुं.
रात्रे गर्भकल्याणकनी पूर्वक्रियानुं द्रश्य थयुं हतुं.
जीव मोहथी आ शरीर ते ज हुं छुं एम मानीने तेनी साथे व्यर्थ चेष्टाओ करे छे. अज्ञानी जीव आ जड देहरूपी मडदाने
जीवतुं मानीने (एटले के तेने ज आत्मा मानीने) अनंतकाळथी तेने साथे फेरवी रह्यो छे; मृतकलेवरमां चैतन्य
भगवान मूर्छाई गयो छे. देहनी चेष्टाओथी जे पोताने सुखी–दुःखी माने छे, देहनी क्रिया हुं करुं एम माने छे, देहनी
क्रियावडे धर्मनुं साधन थाय एम माने छे ते बधाय शरीरने ज आत्मा माननारा छे, तेओ पोताना श्रद्धा–ज्ञानरूपी
खभा उपर जड मडदाने ज धारण करीने भवभ्रमणमां रखडी रह्या छे. रामचंद्रजीने तो ज्यारे खभे लक्ष्मणनुं मडदुं हतुं
त्यारे पण अंतरना श्रद्धा–ज्ञानमां पोताना चिदानंदस्वभावनुं ज ग्रहण हतुं, रागनुं के देहादिनुं एक क्षण पण ग्रहण न
हतुं. अरे! अज्ञानदशामां चैतन्यतत्त्वने चूकीने भ्रमथी जीव केवी केवी व्यर्थ चेष्टाओ करी रह्यो छे तेनी तेने पोताने
खबर नथी. ज्यारे जीव पोते ज्ञानी थयो त्यारे तेने खबर पडी के अरे! पूर्वे अज्ञानदशामां में केवी नकामी चेष्टाओ
करी!
।। २१।।