जिनेन्द्रभगवाननुं तेमज जिनेन्द्रभगवाने कहेला मार्गनुं यथार्थ स्वरूप समजावीने पू. गुरुदेव भक्तजनो उपर परम
उपकार करी रह्या छे.
प्रतिष्ठा माटेना खास मंडपमां श्री जिनेन्द्रभगवानने बिराजमान करीने झंडारोपण करवामां आव्युं, तथा
अंकुरारोपण, जलयात्रा अने समवसरण मंडलविधान थयुं हतुं. मंडलविधान पूरुं थतां वैशाख सुद सातमे
श्रीजिनेन्द्रदेवनो अभिषेक थयो हतो.
प्रसंगे नगरी घणी सुशोभित शणगारेली हती. अमदावादनी बेन्डपार्टी अने हाथीने लीधे आ जुलुस घणुं ज
प्रभावशाळी हतुं, ने आखुं शहेर ते जोवा उमटयुं हतुं. गुरुदेवे मांगळिक संभळाव्या बाद यागमंडलविधान (–जेमां
इन्द्रोद्वारा पंचपरमेष्ठी वगेरेनुं पूजन थाय छे ते) थयुं हतुं.
जीवतुं मानीने (एटले के तेने ज आत्मा मानीने) अनंतकाळथी तेने साथे फेरवी रह्यो छे; मृतकलेवरमां चैतन्य
भगवान मूर्छाई गयो छे. देहनी चेष्टाओथी जे पोताने सुखी–दुःखी माने छे, देहनी क्रिया हुं करुं एम माने छे, देहनी
क्रियावडे धर्मनुं साधन थाय एम माने छे ते बधाय शरीरने ज आत्मा माननारा छे, तेओ पोताना श्रद्धा–ज्ञानरूपी
खभा उपर जड मडदाने ज धारण करीने भवभ्रमणमां रखडी रह्या छे. रामचंद्रजीने तो ज्यारे खभे लक्ष्मणनुं मडदुं हतुं
त्यारे पण अंतरना श्रद्धा–ज्ञानमां पोताना चिदानंदस्वभावनुं ज ग्रहण हतुं, रागनुं के देहादिनुं एक क्षण पण ग्रहण न
हतुं. अरे! अज्ञानदशामां चैतन्यतत्त्वने चूकीने भ्रमथी जीव केवी केवी व्यर्थ चेष्टाओ करी रह्यो छे तेनी तेने पोताने
खबर नथी. ज्यारे जीव पोते ज्ञानी थयो त्यारे तेने खबर पडी के अरे! पूर्वे अज्ञानदशामां में केवी नकामी चेष्टाओ
करी!