Atmadharma magazine - Ank 176
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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जेठः २४८४ः २पः
लींबडीनुं दिगंबर जैन मंदिर
राजामहाराजाओ आवीने भक्तिपूर्वक भेट धरे छे; तथा सर्पनृत्य वगेरे सुंदर द्रश्यो थया हता. भगवाने घणा
वर्षो सुधी राज्य कर्युं, ने प्रजाने ब्राह्मीविद्या, लेखनविद्या, राजविद्या वगेरेनुं ज्ञान आप्युं...अनुक्रमे भगवाननी दीक्षानो
अवसर आव्यो.
वैशाख सुद १२ना रोज सवारमां भगवाननो दीक्षा कल्याणक थयो हतो. सवारमां, भगवाननो
राजदरबार भरायो छे ने देवीओ भक्तिपूर्वक नृत्य करी रही छे. नीलंजसा नामनी देवीनुं आयुष्य पूर्ण थतां
नृत्य करतां करतां ज तेनो देह विलय थई जाय छे, अने तेने स्थाने तरत ज जो के बीजी देवी गोठवाई जाय
छे, तो पण भगवानना ख्यालमां ते वात आवी जाय छे, अने संसारनी आवी क्षणभंगुरता देखीने तेओ
संसारथी विरक्त थाय छे, ने बार वैराग्यभावनाओना चिंतनपूर्वक दीक्षा लेवा माटे तैयार थाय छे तरत ज
लोकांतिक देवो आवे छे, ने भगवाननी स्तुति करीने तेमना वैराग्यनुं अनुमोदन करतां कहे छे केः हे नाथ!
आपश्री जे परम वैराग्यभावनामां झूली रह्या छो तेने अमारुं अनुमोदन छे...हे प्रभो! आ संसारना भोग
खातर आपनो अवतार नथी पण आत्माना मोक्ष खातर आपनो अवतार छे. प्रभो, चैतन्यना
आनंदसागरमां लीन थईने आप शीघ्र केवळज्ञान पामो, अने आ भरतक्षेत्रमां असंख्य वर्षोथी बंध रहेला
मोक्षनां द्वारने आपनी दिव्यवाणीवडे खुल्लां करो.
हे नाथ! मिथ्यात्वादि भावोने जीवोए अनंतवार पूर्वे भाव्या छे पण सम्यक्त्वादि भावोने पूर्वे कदी भाव्या
नथी. पूर्वे नहि भावेली एवी अपूर्व भावनाने–रत्नत्रयभावनाने–आप भावी रह्या छे, ते भावनाने अमारुं अत्यंत
अनुमोदन छे...ने अमे पण ए ज धन्य मुनिदशाने झंखी रह्या छीए.” आ प्रमाणे