करता पालखी लईने भगवाननो दीक्षाकल्याणक ऊजववा आव्या. श्री आदिनाथ भगवान पालखीमां
बिराजमान थया. देवेन्द्रो अने राजेन्द्रोनो समूह भगवाननी पालखी ऊंचकवा कटिबद्ध थयो...अहा!
तीर्थंकरनाथनी पालखी ऊंचकवानो उत्साह कोने न होय? अहीं देवो अने राजाओ वच्चे एक विवाद उपस्थित
थयो...देवो कहेः भगवाननी पालखी पहेलां अमे ऊठावीए, ने राजाओ कहे के पहेलां अमे ऊठावीए.–छेवटे
एम निर्णय थयो के जेओ ठेठ सुधी भगवाननी साथे रही शके–दीक्षा वखते पण भगवान साथे रही शके एटले
के भगवाननी साथे दीक्षा ल्ये–तेओ भगवाननी पालखी पहेलां ऊठावे.–ए वात थतां देवो झंखवाणा पडी गया,
केमके देवोने मुनिदीक्षा होती नथी. तेथी राजाओ प्रथम भगवाननी पालखी उठावीने सात पगलां चाल्या,
त्यारबाद विद्याधरो सात पगलां चाल्या, अने पछी देवो पालखी लईने गगनमार्गे दीक्षावनमां आव्या. अने
दीक्षावनमां एक वृक्ष नीचे वैराग्यमय वातावरणमां दीक्षाविधि थई...सिद्ध भगवंतोने नमस्कार करीने भगवान
स्वयंदीक्षित थया..ने अप्रमत्त आत्मध्यानमां लीन थया...तुरत ज मनःपर्यय ज्ञान थयुं. भगवाननी दीक्षा बाद
दीक्षावनमां पू. गुरुदेवे अद्भुत वैराग्य प्रवचनद्वारा मुनिदशानुं स्वरूप बताव्युं हतुं अने ए धन्य अवसरनी
भावना भावी हती...प्रवचन बाद अजमेर भजनमंडळीए मुनिभक्ति करी हती–
बाद, “अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे.. विचरशुं कव आदिप्रभुने पंथ जो..” एम भावना भावतां भावतां
भक्तजनो पाछा फर्या...ने भगवानना केशनुं क्षीरसमुद्रमां क्षेपण कर्युं.
इक्षुरसनुं आहारदान दे छे–ए द्रश्य दर्शनीय हतुं. आहारदाननो प्रसंग शेठ श्री मनुसुखलाल गुलाबचंदने त्यां थयो
हतो. आहारदान पछी भगवान ज्यारे पाछा पधार्या त्यारे अनेक भक्तजनो खूब ज भक्ति करता करता भगवाननी
साथे जता हता.
थयो हतो.
गुरुदेवे प्रवचनद्वारा समजाव्युं हतुं. रात्रे वींछीया पाठशाळाना बाळकोए “नेम–वैराग्य” नो सुंदर संवाद
भजव्यो हतो.
रीते माह वद चौदस कहेवाय छे. माह वद चौदसने महाशिवरात्री तरीके आजे घणा लोको ऊजवे छे. निर्वाण कल्याणक
थतां पंचकल्याणक पूरा थया हता.
जिनेन्द्र देवनो भेटो थतां सौ भक्तोना हैयां हर्षथी पुलकित थता हता.