Atmadharma magazine - Ank 176
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः २६ः आत्मधर्मः १७६
लोकांतिक देवोए भक्तिपूर्वक भगवानना वैराग्यनुं अनुमोदन कर्या बाद, तरत इन्द्रो अने देवो जयजयकार
करता पालखी लईने भगवाननो दीक्षाकल्याणक ऊजववा आव्या. श्री आदिनाथ भगवान पालखीमां
बिराजमान थया. देवेन्द्रो अने राजेन्द्रोनो समूह भगवाननी पालखी ऊंचकवा कटिबद्ध थयो...अहा!
तीर्थंकरनाथनी पालखी ऊंचकवानो उत्साह कोने न होय? अहीं देवो अने राजाओ वच्चे एक विवाद उपस्थित
थयो...देवो कहेः भगवाननी पालखी पहेलां अमे ऊठावीए, ने राजाओ कहे के पहेलां अमे ऊठावीए.–छेवटे
एम निर्णय थयो के जेओ ठेठ सुधी भगवाननी साथे रही शके–दीक्षा वखते पण भगवान साथे रही शके एटले
के भगवाननी साथे दीक्षा ल्ये–तेओ भगवाननी पालखी पहेलां ऊठावे.–ए वात थतां देवो झंखवाणा पडी गया,
केमके देवोने मुनिदीक्षा होती नथी. तेथी राजाओ प्रथम भगवाननी पालखी उठावीने सात पगलां चाल्या,
त्यारबाद विद्याधरो सात पगलां चाल्या, अने पछी देवो पालखी लईने गगनमार्गे दीक्षावनमां आव्या. अने
दीक्षावनमां एक वृक्ष नीचे वैराग्यमय वातावरणमां दीक्षाविधि थई...सिद्ध भगवंतोने नमस्कार करीने भगवान
स्वयंदीक्षित थया..ने अप्रमत्त आत्मध्यानमां लीन थया...तुरत ज मनःपर्यय ज्ञान थयुं. भगवाननी दीक्षा बाद
दीक्षावनमां पू. गुरुदेवे अद्भुत वैराग्य प्रवचनद्वारा मुनिदशानुं स्वरूप बताव्युं हतुं अने ए धन्य अवसरनी
भावना भावी हती...प्रवचन बाद अजमेर भजनमंडळीए मुनिभक्ति करी हती–
मारा परमदिगंबर मुनिवर आया,
सब मिल दरशन कर लो...हां...सब मिल०
बार बार आनो मुशकिल छे,
भावभक्ति उर धर लो...हां...भावभक्ति०
इत्यादि भजनो गवाया हता. भगवाननी दीक्षाप्रसंगनो वरघोडो घणो भव्य हतो...सौथी आगळ हाथी उपर
धर्मध्वज फरकतो हतो, ने पालखी आरूढ भगवाननी सन्मुख अजमेरमंडळी भजननृत्य करी रही हती.. दीक्षाविधि
बाद, “अपूर्व अवसर एवो क्यारे आवशे.. विचरशुं कव आदिप्रभुने पंथ जो..” एम भावना भावतां भावतां
भक्तजनो पाछा फर्या...ने भगवानना केशनुं क्षीरसमुद्रमां क्षेपण कर्युं.
त्यारबाद श्री ऋषभदेव–मुनिराजना आहारदाननी विधि थई हती...ऋषभमुनिराज एक वर्ष उपरांतना
उपवास बाद आहार माटे नीकळ्‌या छे...अने भक्त–श्रावको पडगाहन करीने नवधा भक्तिपूर्वक ऋषभमुनिराजने
इक्षुरसनुं आहारदान दे छे–ए द्रश्य दर्शनीय हतुं. आहारदाननो प्रसंग शेठ श्री मनुसुखलाल गुलाबचंदने त्यां थयो
हतो. आहारदान पछी भगवान ज्यारे पाछा पधार्या त्यारे अनेक भक्तजनो खूब ज भक्ति करता करता भगवाननी
साथे जता हता.
बपोरे पू. गुरुदेवना मंगल हस्ते जिनबिंबो उपर अंकन्यास विधि (ॐ अर्हं नमः इत्यादि मंत्राक्षरोनी
लेखनविधि) थई हती, पू. गुरुदेव घणा भावपूर्वक जिनबिंबो उपर अंकन्यास करता हता, ते देखीने भक्तोने आनंद
थयो हतो.
अंकन्यासविधान बाद भगवानना केवळज्ञानकल्याणकनो उत्सव थयो हतो...समवसरणमंडलमां गंधकूटी
उपर भगवान बिराजता हता, इन्द्रोए केवळज्ञाननुं पूजन कर्युं; त्यारबाद, भगवाने दिव्यध्वनिमां शुं कह्युं–ते
गुरुदेवे प्रवचनद्वारा समजाव्युं हतुं. रात्रे वींछीया पाठशाळाना बाळकोए “नेम–वैराग्य” नो सुंदर संवाद
भजव्यो हतो.
वैशाख सुद तेरशनी सवारमां, कैलासपर्वत उपर श्री आदिनाथ भगवान बिराजे छे ने त्यांथी निर्वाण पामे छे.
–ए रीते निर्वाणकल्याणक प्रसंग थयो हतो. भगवाननो मोक्ष पोष वद चौदसे थयो हतो; पोष वद चौदसने शास्त्रीय
रीते माह वद चौदस कहेवाय छे. माह वद चौदसने महाशिवरात्री तरीके आजे घणा लोको ऊजवे छे. निर्वाण कल्याणक
थतां पंचकल्याणक पूरा थया हता.
पंचकल्याणक बाद, प्रतिष्ठित थयेला श्री पार्श्वनाथादि जिनेन्द्र भगवंतो जिनमंदिरे पधार्या हता...भगवान
पधार्या त्यारे भक्तोने घणो ज उल्लास हतो ने चारे बाजु आनंदनुं वातावरण छवाई गयुं हतुं. गुरुदेवना प्रतापे
जिनेन्द्र देवनो भेटो थतां सौ भक्तोना हैयां हर्षथी पुलकित थता हता.
लींबडी शहेरनुं जिनमंदिर घणुं भव्य अने सुंदर छे. लगभग पप हजार रूा. ना खर्चे ते तैयार थयुं छे. तेमां
मूळनायक श्री पार्श्वनाथ भगवान अने तेमनी