भगवान बिराजमान छे. भावपूर्वक जिनेन्द्र भगवंतोनी प्रतिष्ठा बाद जिनमंदिरमां समयसारजी शास्त्रनी स्थापना
पण गुरुदेवना करकमळथी थई हती. अने जिनमंदिर उपर कलश तथा ध्वज चढाववामां आव्या हता...वीतरागी
जिनमंदिरमां बिराजमान वीतरागी भगवंतोनी शांतमुद्रा देखीदेखीने भक्तजनोनां हैडां ठरता हता..
उपर फरकतो धर्मध्वज, वच्चे बेन्डना वाजिंत्रनाद, अने भक्तोनो अपार उत्साह,–ए द्रश्योथी रथयात्रा बहु ज
शोभती हती, भक्तो अने नगरजनो आवी सुंदर रथयात्रा देखीने आश्चर्य पामता.
लोकोने थोडा वर्षो पहेलां खबर पण न हती के दिगंबर जैनधर्म ते शुं छे!! तेने बदले आजे गुरुदेवना प्रतापे
सौराष्ट्रमां ठेर ठेर दि. जैनधर्मना ऊंडां मूळ रोपाया छे अने दिनदिन जैनशासननी प्रभावना वधती जाय छे. आजे तो
जाणे आखुं सौराष्ट्र तीर्थधाम बनी गयुं छे. प्रतिष्ठा प्रसंगे लींबडीना भाईओने पण घणो उल्लास हतो. जिनेन्द्र
भगवाननी प्रतिष्ठानो पंचकल्याणक महोत्सव उल्लासपूर्वक कराववा माटे लींबडीना भाईओ–खास करीने
मनुसुखलालभाई फूलचंदभाई, हिंमतलालभाई, केशवलालभाई वगेरेने अनेक धन्यवाद घटे छे. चूडावाळा भाईश्री
लीलाधर मास्तरे आ प्रतिष्ठामां भगवाननी अने शास्त्रीजीनी प्रतिष्ठा माटे जे उमंग बताव्यो ते पण प्रशंसनीय हतो.
इंदोरना पंडित श्री नाथुलालजी शास्त्री प्रतिष्ठाचार्य हता, तेओ दरेक प्रसंगनी विगतवार समजण आपीने बहु सुंदर
रीते दरेक विधि करावता हता; निःस्पृहभावे प्रतिष्ठाविधि कराववा बदल तेमने पण धन्यवाद घटे छे. प्रतिष्ठाना दिवसे
सांजे जिनमंदिरमां सुंदर भक्ति थई हती. बीजे दिवसे गुरुदेवे पण जिनेन्द्रदेवनी एक स्तुति करी हती अने वैशाख सुद
पूर्णिमाए लींबडीथी चूडा तरफ विहार कर्यो हतो.
पूछयुंः डोशीमा! आनुं शुं लेशो? डोशीमा कहेः दस आना थाय पण एक आनो
ओछो आपजो. ते माणस कहेः चार आनामां आपवुं छे! “लीधा...लीधा..!”
कहेताक डोशीमाए चीभडुं पाछुं लई लीधुं..
करता नथी, ने शरीरनी क्रियाथी के शुभरागथी ज धर्म थई जवानुं माने छे, –परंतु
ए रीते कदी धर्मनी प्राप्ति थाय नहि. ज्ञानी कहे छे केः भाई! धर्म तो अपूर्व चीज
छे, ते एवी साधारण चीज नथी के राग वडे मळी जाय...अंतरस्वभावना अपूर्व
पुरुषार्थरूपी किंमत वगर धर्म मळे नहि, माटे आत्मानी समजणनो प्रयत्न करवो
जोईए. त्यां जे एम कहे छे केः “अमारे आत्मा समजवो नथी, अमने तो आ
बाह्यक्रिया ने रागादि करतां करतां धर्म थई जशे.”–तो ज्ञानी कहे छे केः “
कर्यो...कर्यो...तें धरम!!” आत्माने समज्या वगर तने कदी धर्म थाय–एम
बनवानुं नथी. धर्ममां मूळ रीत ज आत्मानी समजण करवी ते छे; एनी जे ना
पाडे छे तेने तो धर्मनी खरी दरकार ज नथी. ‘धर्म करवो छे’ एम ते भले कहेतो
होय पण धर्मनी खरी किंमत तेने भासी नथी.