भक्तिथी उल्लसी जाय छे...अहो! आ मोक्षना साक्षात् साधक संत
भगवानने माटे हुं शुं–शुं करुं? ? कई कई रीते एमनी सेवा
करुं!! कई रीते एमने अर्पणता करी दउं!!–आम धर्मीनुं हृदय
भक्तिथी ऊछळी जाय छे. अने ज्यां एवा साधक मुनि पोताना
आंगणे आहार माटे पधारे ने आहारदाननो प्रसंग बने त्यां तो
जाणे साक्षात् भगवान ज आंगणे पधार्या..साक्षात् मोक्षमार्ग ज
आंगणे आव्यो.–एम अपार भक्तिथी मुनिने आहारदान
आपे.–पण ते वखते य, आहार लेनारा साधक मुनिने तथा
आहार देनारा समकिती धर्मात्माने अंतरमां सम्यक्भान वर्ते छे के
अमारो ज्ञायक आत्मा आ आहारनो लेनार के देनार नथी, तेमज
निर्दोष आहार लेवानी के देवानी शुभवृत्ति थाय तेनो पण देनार
के पात्र अमारो ज्ञायक आत्मा नथी. अमारो ज्ञायक आत्मा तो
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप निर्मळ भावोनो ज देनार छे ने
तेना ज अमे पात्र छीए.