अनंत शक्तिओ छे तेनुं आ वर्णन चाले छे. आत्मानो एवो स्वभाव छे के पोताना भावने पोते ज झीले छे,
निर्मळभाव प्रगट करीने पोते पोताने ज आपे छे. द्रव्यस्वभावमांथी अपाता केवळज्ञानादि निर्मळभावने झीलीने
पोतामां ज राखवानी आत्मानी शक्ति छे. जेम लौकिक व्यवहारमां कुंभार घडो बनावीने राजाने आपे त्यां राजा ते
घडानुं संप्रदान कहेवाय छे; तेम आत्मानी निर्मळ पर्यायनुं संप्रदाय आत्मा पोते ज छे, आत्मा पोते ज तेने अंगीकार
करे छे. आत्मा पोतानी निर्मळ पर्याय प्रगट करीने कोई बीजाने नथी आपतो, पण पोतामां ज राखे छे, पोते पोताने
ज निर्मळपर्यायनुं दान आपे छे, एवी आत्मानी संप्रदान शक्ति छे.
ज लेनार, एवी आत्मानी संप्रदान शक्ति छे. आत्मा पोतानी चीज कोई बीजाने देतो नथी, ने बीजानी चीजने
पोतामां लेतो नथी. आत्मामां आहार ग्रहण करवानी पात्रता छे–एम न कह्युं, पण पोताथी देवामां आवता निर्मळ
भावने ज लेवानी पात्रता छे, एम कह्युं छे. आहार तो जड परमाणुनो बनेलो छे, ते कांई आत्माथी देवामां आवेलो
भाव नथी, ने तेने ग्रहण करे एवी पात्रता आत्मामां नथी. आत्मामां एवी ज पात्रता छे के निर्मळभाव ज तेमां रहे;
विकारने के परने ग्रहण करवानी पात्रता आत्माना स्वभावमां नथी. ज्यां स्वभावनी द्रष्टि करी त्यां धर्मी जीवने एवी
पात्रता प्रगटी के पोताना स्वभावमांथी देवामां आवता निर्मळभावने ज ते उपेय तरीके स्वीकारे छे. रागादिने ते उपेय
तरीके पोतामां ग्रहतो नथी. हुं ज देनार ने बीजो लेनार, अथवा हुं लेनार ने बीजो देनार, एम धर्मी मानता नथी; हुं
ज देनार ने हुं ज लेनार–शेनो? के सम्यग्दर्शनादि निर्मळ भावोनो.–ए रीते धर्मी पोताना आत्माने ज पोताना
संप्रदान तरीके जाणे छे.
रीते एमनी सेवा करुं!! कई रीते एमने अर्पणता करी दउं!!–एम धर्मीनुं हृदय भक्तिथी ऊछळी जाय छे. अने ज्यां
एवा साधकमुनि पोताना आंगणे आहार माटे पधारे ने आहारदाननो प्रसंग बने त्यां तो जाणे साक्षात् भगवान ज
आंगणे पधार्या...साक्षात् मोक्षमार्ग ज आंगणे आव्यो!–आम अपार भक्तिथी मुनिने आहारदान आपे.–पण ते
वखतेय, आहार लेनार साधक मुनिने तथा आहार देनार समकिती धर्मात्माने अंतरमां द्रष्टि (–श्रद्धा) केवी होय छे
तेनुं आ वर्णन छे. ते वखते ते बंनेना अंतरमां एवुं सम्यक्भान वर्ते छे के अमारो ज्ञायक आत्मा आ आहारनो
देनार के लेनार नथी, तेमज आ निर्दोष आहार देवानो के लेवानो जे शुभ राग छे तेनो पण दातार के पात्र (लेनार)
अमारो ज्ञायक आत्मा नथी; अमारो ज्ञायक आत्मा तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्ररूप निर्मळभावनो ज देनार छे, तेना
ज अमे पात्र छीए. आ रीते अमारो आत्मा ज अमारो दातार छे ने अमारो आत्मा ज अमारुं संप्रदान छे. आवी
अंर्तद्रष्टि बंनेने वर्ते छे तेनो ज खरो महिमा छे. आवी अंर्तद्रष्टि वगर एकला शुभरागथी आहारदान द्ये के ल्ये
तेनी मोक्षमार्गमां कांई गणतरी नथी. महात्मा मुनि अने धर्मात्मा समकिती बंने अंर्तद्रष्टि वडे क्षणे क्षणे पोताना
स्वभावमांथी निर्मळपर्यायनुं दान द्ये छे ने पोते ज पात्र थईने ते ल्ये छे,–आवुं दान ते मोक्षनुं कारण छे, ने ते धर्म छे.
परनो के विकारनो देनार–लेनार आत्मा छे एम जे माने ते जीव मिथ्याद्रष्टि छे; ने एवो मिथ्याद्रष्टि जीव तो
व्यवहारमां पण ‘कुपात्र’ गणवामां आवे छे.
आहारादि वस्तु देवी ते दान छे ने नवधा भक्ति वगेरे विधि छे. अने अहीं आत्मा पोते दाननो दातार थईने पोताने
ज सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारि–