छे.” जुओ, धर्मी पोताना आत्मामांथी परद्रव्यनो संबंध खंखेरी नांखे छे, ने एक शुद्ध ज्ञानस्वरूपे ज पोताना
आत्माने ध्यावे छे. “प्रथम तो हुं स्वभावथी ज्ञायक ज छुं; केवळ ज्ञायक होवाथी मारे विश्वनी साथे पण सहज
ज्ञेयज्ञायकलक्षण संबंध ज छे, परंतु बीजा स्वस्वामीलक्षणादि संबंधी नथी; तेथी मारे कोई प्रत्ये ममत्व नथी, सर्वत्र
निर्ममत्व ज छे.”–मोक्ष–अधिकारी जीव आवा ज्ञायकस्वभावी आत्मानो निर्णय करीने सर्व उद्यमथी पोताना
शुद्धात्मामां ज प्रवर्ते छे. (जुओ, प्रवचनसार गा. २०० टीका) जे जीव पर साथे कर्ताकर्मपणुं, स्व–स्वामीपणुं वगेरे
संबंध जरा पण माने ते जीव परनुं ममत्व छोडीने पोताना ज्ञायकस्वभावमां प्रवर्ती शकतो नथी, ते तो राग–द्वेष–
मोहमां ज प्रवर्ते छे, ते खरेखर मोक्षनो अधिकारी नथी.
शुं स्वरूप छे मारुं खरुं?
कोना संबंधे वळगणा छे!
राखुं
शांतभावे
सिद्धांत तत्त्वो अनुभव्यां.”
मारुं स्व नथी ने हुं तेनो स्वामी नथी. नियमसारमां कहे छे के आ स्त्रीपुत्रादिक कोई तारा सुख–दुःखना भागीदार थता
नथी, ते तो पोतानी आजीविका माटे धूताराओनी टोळी तने मळी छे. जो तुं एने पोताना मानीश तो तुं धुताई
जईश. (जुओ गा. १०१नी टीका.) ए स्त्री पुत्रादिक कोई आ आत्माना संबंधी खरेखर नथी. तीर्थंकर भगवान वगेरे
आराधक जीवो माताना पेटमां होय त्यारे पण पोताना आत्माने आवो ज जाणे छे, पर साथे जराय संबंध मानता
नथी. केम के–
हुं तो खरे ज्ञाता ज, तेथी नहि परिग्रह मुज बने. २०८
नथी, हुं आनो स्वामी नथी’ एम जाणतो थको पर द्रव्यने परिग्रहतो नथी.” (–समयसार गा. २०७ टीका)
(लाचारीथी) पण मने अजीवपणुं आवी पडे. मारुं तो एक ज्ञायकभाव ज स्व छे, ने तेनो ज हुं स्वामी छुं; माटे मने
अजीवपणुं न हो, हुं तो ज्ञाता ज रहीश, पर द्रव्यने नहि परिग्रहुं.” (–समयसार गा. २०८ टीका)
पोतानो स्वामी मानती नथी. अने पति जो धर्मात्मा होय तो ते पण एम नथी मानता के ‘हुं आ स्त्रीनो स्वामी छुं,’ हुं
तो मारा ज्ञाननो ज स्वामी छुं–एम धर्मी जाणे छे. पति–पत्नी तरीके एकबीजा प्रत्ये जे राग छे तेने ते पोताना दोष
तरीके जाणे छे, अने ज्ञायकस्वभावमां ते रागनुं स्वामीपणुं पण स्वीकारता नथी. अमारा ज्ञायकस्वभावना आश्रये