पोताना शुद्धभावनो ज स्वामी छे, ए सिवाय बीजानो स्वामी पोते नथी, के पोतानो स्वामी बीजो नथी. पोताना
स्वभाव साथे एक्तारूप संबंध करीने तेनुं स्वामीपणुं जीवे कर्युं नथी ने परनुं स्वामीपणुं मान्युं छे. जो आ
‘स्वभावमात्र स्व-स्वामित्वरूप संबंधशक्ति’ ने ओळखे तो पर साथेनो संबंध तोडे ने स्वभावमां एक्तारूप
स्व-स्वामित्वसंबंध करे एटले साधकदशा थाय.
पडीने पोताना स्वरूपमां समाई जई शके नहि. परंतु परथी विभक्त ने स्वरूपमां एकत्व थईने आत्मा पोतामां
ज पोतानी शांतिनुं वेदन करी शके छे, केमके तेने पोतानी साथे ज स्व-स्वामीपणानो संबंध छे. पोताना शांतिना
वेदन माटे आत्माने परनो संबंध करवो पडतो नथी. स्वशक्तिना बळे, परना संबंध वगर एकला स्वमां ज
एक्ताथी आत्मा पोतानी शांतिनो अनुभव करे छे.
बतावती पण पोतामां ज स्व-स्वामी-संबंध बतावीने पर साथेनो संबंध तोडावे छे, ए रीते परथी भिन्न
आत्माने बतावे छे. जेणे बधाथी विभक्त आत्माने जाण्यो तेणे बधी विभक्ति जाणी लीधी.
स्वामी नथी, आ शरीरनो-स्वामी पण आत्मा नथी, आत्मा तो ज्ञानदर्शन-आनंदरूप स्व-भावोनो ज
स्वामी छे, ने ते ज आत्मानुं ‘स्व’ छे. स्व तो तेने कहेवाय के जे सदाय साथे रहे, कदी पोताथी जुदुं न
पडे. शरीर जुदुं पडे छे, राग जुदो पडे छे पण ज्ञान-दर्शन-आनंद आत्माथी जुदा नथी पडता, माटे तेनी
साथे ज आत्माने स्व-स्वामीसंबंध छे.
प्रमाणे बधाय आत्मामां जीवनशक्ति छे. तेम आत्मानी संबंधशक्तिथी जो मात्र पोतानी ज साथे स्व-
स्वामीत्वसंबंध न होय ने पर साथे पण स्व-स्वामीत्वसंबंध होय तो आत्मा परना संबंध वगर रही शके
नहि; परंतु देह-रागादि परना संबंध वगर ज एकला स्वभावमां ज स्व-स्वामित्व संबंधथी अनंता सिद्ध
भगवंतो शोभी रह्या छे; बधाय आत्मानो एवो ज स्वभाव छे. पर साथे संबंधथी ओळखाववो तेमां
आत्मानी शोभा नथी. पंचेन्द्रिय जीव, रागी जीव, कर्मथी बंधायेलो जीव-एम पर साथेना संबंधथी
भगवान आत्माने ओळखाववो ते तेनी महत्ताने लांछन लगाडवा जेवुं छे, एटले के ए रीते परना
संबंधथी भगवान आत्मा खरा स्वरूपे ओळखातो नथी. आत्मा तो पोताना ज्ञायक स्वभावनो ज स्वामी
छे, ने ते ज तेनुं स्व छे; ते ज्ञायकस्वभावथी आत्माने ओळखवो तेमां ज तेनी शोभा छे.
आत्मस्वभावनी साथे ज छे. ज्यांसुधी सर्वज्ञ उपर ज लक्ष रहे ने पोताना आत्मस्वभावमां लक्ष न करे
त्यांसुधी सर्वज्ञभगवाननी निश्चयस्तुति थती नथी. पोतानो आत्मा ज सर्वज्ञशक्तिथी परिपूर्ण छे-एम
प्रतीतमां लईने स्वभाव साथे जेटली एक्ता करे तेटली सर्वज्ञ-भगवाननी निश्चय स्तुति छे; अने सर्वज्ञ
तरफना बहुमाननो भाव रहे ते व्यवहारस्तुति छे.
शुं महाविदेह वगेरे क्षेत्रनी साथे आ आत्माना धर्मनो संबंध छे?-ना.