शुं रागादि भावो साथे आ आत्माना धर्मनो संबंध छे?-ना.
कोईपण परद्रव्य-परक्षेत्र-परकाळ के परभावनी साथे आ आत्माना धर्मनो संबंध नथी, ते कोई आ
पोताना धर्मनो संबंध छे. अनंतशक्तिना पिंडरूप शुद्धचैतन्यद्रव्य साथे ज धर्मनी एक्ता छे, असंख्य प्रदेशी
चैतन्यक्षेत्र ते ज धर्मनुं क्षेत्र छे; स्वभावमां अभेद थयेली स्व-परिणति ते ज धर्मनो काळ छे; ने ज्ञान-दर्शन-
आनंद वगेरे अनंत गुणो ते ज आत्माना धर्मना भाव छे. आवा स्वद्रव्य-क्षेत्र-काळ-भाव साथे ज आत्माना
धर्मनो संबंध छे, ने तेनी साथे ज आत्माने स्व-स्वामीपणुं छे.
साथेना निमित्त-नैमित्तिक संबंधनी द्रष्टि छोडतो नथी ते मिथ्याद्रष्टि छे. आत्माने एकांते कर्मनी साथेना
संबंधवाळो ज आत्माने ओळखे-तो ते जीव आत्माना शुद्ध स्वरूपने ओळखतो नथी. ज्यां मात्र पोताना स्वभाव
साथे ज एक्ता करीने, मात्र पोताना स्व-भाव साथे ज स्व-स्वामीत्वसंबंधपणे परिणमे छे त्यां कर्म साथे
निमित्त-नैमित्तिक संबंध पण क्यां रह्यो? आ रीते कर्म साथे आत्मानो संबंध नथी. साधकने पोताना स्वभावमां
जेम जेम एक्ता थती जाय तेम तेम कर्मनो संबंध तूटतो जाय छे. आ रीते संबंधशक्ति स्वभाव साथे संबंध
करावीने कर्म साथेनो संबंध तोडावनारी छे.
विभक्त, अने पोतानी ज्ञानादि अनंतशक्तिओ साथे एकमेक जाणीने तुं प्रसन्न था..स्वभावनो ज
स्वामी थईने पर साथे संबंधना मोहने छोड!
* स्वभावना ज कर्मरूप थईने बीजा कर्मनी बुद्धि छोड.
* स्वभावने ज साधन बनावीने अन्य साधननी आशा छोड.
* स्वभावने ज संप्रदान बनावीने निर्मळभावने दे.
* स्वभावने ज अपादान बनावीने तेमांथी निर्मळता ले.
* स्वभावने ज अधिकरण बनावीने परनो आश्रय छोड.
* स्वभावनो ज स्वामी थईने तेनी साथे एक्तानो संबंध कर ने परनी साथेनो संबंध छोड.
कहानगुरुदेवना प्रवचनो द्वारा थयेलुं अद्भुत विवेचन अहीं पूरुं थयुं.. ते भव्यजीवोने
भगवान आत्मानी प्रसिद्धि करावो.
समाप्त थशे.