ः २०ः आत्मधर्मः १७८
पूर्व भवमां शिवकुमार हतां, अने सुधर्मस्वामी पूर्वभवमां तेना भाई हता; पोताना भाईने मुनिदशामां देखता ज
शिवकुमार पण वैराग्यथी दीक्षा लेवा तत्पर थाय छे; परंतु मातापिता रजा नथी आपता; मातापिताना अति
आग्रहने वश घरमां ज विरक्तजीवन गाळे छे, तेनुं द्रश्य.
(८) श्रीकृष्णनी माता देवकीना छ पुत्रो दीक्षा लईने मुनि थया छे...ने बब्बेना जोडकांरूपे त्रण वार
देवकीने त्यां आहार माटे पधारे छे; देवकी तेमने ओळखती नथी...तेने शंका थाय छे के ए ज बे मुनिओ फरी
फरीने त्रण वखत केम पधार्या? नेमिनाथ भगवाननी सभामां तेनी ए शंकानुं समाधान थाय छे; तेनुं द्रश्य.
(९) पू. श्री कानजीस्वामीना प्रभावे सौराष्ट्र वगेरेमां थयेला अने हजी पण थई रहेला अनेक दि.
जिनमंदिरोनुं द्रश्यः (सोनगढ-जिनमंदिर तेमज मानस्तंभ, उमराळा, बोटाद, वींछीया, लींबडी, वढवाण
शहेर, सुरेन्द्रनगर, जोरावरनगर, राणपुर, लाठी, सावरकुंडला, राजकोट, वांकानेर, मोरबी, पोरबंदर,
गोंडल, जेतपुर, जामनगर, वडीआ, पालेज अने मुंबई आटला गामोना जिनमंदिरो आ चित्रमां
देखाडवामां आव्या छे.)
(१०) एक वखत रामचंद्रजीए वनमां जेमने आहारदान आपेल ते गुप्ति-सुगुप्ति मुनिवरो पर्वत उपर
ध्यानमां ऊभा छे, यक्षो तेमने घोर उपद्रव करे छे; राम-लक्ष्मण ते यक्षोने भगाडीने उपद्रव दूर करे छे, ने पछी
सीता सहित महान भक्ति करे छे. मुनिवरोने केवळज्ञान थाय छे...राम-लक्ष्मण-सीता थोडा दिवसो ते ज पर्वत
उपर रहे छे, ने त्यां अनेक जिनमंदिरो बंधावे छे. (आ उपरथी ते पर्वतनुं “रामगिरि” नाम पडे छे.)
(११) विदेहक्षेत्रमां श्री सीमंधर भगवाननो दीक्षाकल्याणक नजरे नीहाळीने नारदजी भरतमां आवे छे, ने
राजा दशरथने तेनुं वर्णन घणा भावपूर्वक कही संभळावे छे, तेनुं द्रश्य.
(१२) दिगंबर जैन धर्मना धुरंधर संतो-श्रीधरसेनाचार्यदेव, श्री कुंदकुंदाचार्यदेव, श्री उमास्वामी आचार्यदेव,
श्री समन्तभद्र आचार्यदेव, श्री नेमिचन्द्र, सिद्धांतचक्रवर्ती, श्री अमृतचंद्राचार्यदेव, श्री पद्मनंदी आचार्यदेव अने
मुनि श्री पद्मप्रभमलधारिदेव-वगेरे आचार्य भगवंतोने श्री कानजीस्वामी अति भक्तिपूर्वक वंदना करी रह्या छे,
अने ते आचार्योना शास्त्रोनी स्वाध्याय करी रह्या छे-तेनुं भक्तिपूर्ण द्रश्य.
(१३) पू. श्री कानजीस्वामीए सिद्धवरकूटनी संघसहित यात्रा करी ते वखतना नौकाविहारनुं उमंगभर्युं
द्रश्य. दूर सिद्धवरकूट देखाय छे, ने भक्तजनो गुरुदेव साथे नौकामां बेठा छे.