चैतन्यमूर्ति आत्मा तेनाथी भिन्न छे-एनुं भान करवुं जोईए. जेम सोनानी अनेक लगडी होय, तेमां कोई उपर
हाथीना चित्रवाळुं कपडुं वींटयुं होय, कोई उपर मनुष्यना चित्रवाळुं कपडुं वींटयुं होय,-पण तेथी कांई अंदरनी
लगडी जुदी जुदी थई जती नथी, लगडी तो बधी एक सरखी ज छे. तेम दरेक आत्मा चैतन्यमूर्ति सोनानी
लगडी जेवो छे; तेना उपर कोईने स्त्रीनुं शरीर छे, कोईने पुरुषनुं शरीर छे, कोईने हाथी वगेरेनुं शरीर छे; एम
भिन्न भिन्न शरीरो होवा छतां, आत्मा तो तेनाथी जुदो चैतन्यमूर्ति छे, माटे “हुं स्त्री हुं पुरुष” एवी बुद्धि
छोडीने, “हुं तो ज्ञानमूर्ति आत्मा छुं” एवी समजण करवी जोईए.
तो जगतनी माता छो...जगत्पूज्य छो...त्रिलोकपूज्य तीर्थंकरने जन्म देनारां आप छो...आपनी कुंख धन्य
छे...तीर्थंकर भगवानने जन्म देनारी माता पण अल्पकाळमां ज (त्रीजे भवे) मोक्ष पामनार होय छे.
छे, ने तेमां ज आत्मानो उद्धार छे...व्यक्ति पोतानो सुधार करे तेमां समाजनो उद्धार थई जाय छे. ‘समाज’ ए
पण व्यक्तिओना समूहथी बनेलो छे एटले व्यक्ति सुधरतां समाज सुधरे छे. समाजनी दरेक व्यक्तिए
पोतपोतानो सुधार करवानो छे; बीजी व्यक्तिनुं सुधरवुं-बगडवुं तो ते व्यक्तिना आधारे छे, पोतानुं सुधारी लेवुं
ते पोताना हाथमां छे. माटे सत्समागमे साचुं ज्ञान करीने, आत्माना स्वसंवेदनवडे पोते पोताना आत्मानुं सुधारी
लेवुं-ए ज अमारो उपदेश छे ने ए ज अमारा आशीर्वाद छे.
पण जाय छे, अने कोईने स्त्रीदेह होवा छतां अंतरमां आत्मानुं भान प्रगट करीने एकाद बे भवमां मोक्ष पामी
जाय छे, माटे देह उपर न जोतां देहथी भिन्न आत्मानो बोध करवो. लोको तो मोटा मोटा भाषणो करीने
बहारनी धमाधम करवानुं कहेशे, परंतु अमारो ए विषय नथी, आत्मानो बोध केम थाय-ते ज अमारो विषय छे;
माटे आत्मानुं भान करवुं अने सत्समागमे तेनी ओळखाणनो प्रयत्न करवो के जेथी फरीने स्त्री अवतार न मळे
ने अल्पकाळमां मुक्ति थई जाय;-ए ज अमारा आशीर्वाद छे.