भादरवोः २४८४ः ७ः
ज्ञानलक्षणथी प्रसिद्ध थयेलो
अनेकान्तमूर्ति
भगवान आत्मा
“अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मा” संबंधी
लेखमाळानो आ छेल्लो लेख छे. लगभग सात वर्ष पहेलां
आत्मधर्ममां आ महत्त्वनी लेखमाळा शरू थई हती.
समयसारमां आत्माने ‘ज्ञानमात्र’ कहीने ओळखाव्यो
होवा छतां तेने अनेकान्तपणुं कई रीते छे, अने
ज्ञानलक्षणवडे अनेकान्तस्वरूप आत्मानो प्रसिद्ध अनुभव
कई रीते थाय छे ते प्रथम समजाव्युं, अने पछी
ज्ञानलक्षणवडे लक्षित अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्माना
अनंत धर्मोमांथी ४७ शक्तिरूपे केटलाक धर्मोनुं वर्णन कर्युं.
छेवटे हवे अनेकान्तस्वरूप आत्माना अनुभवनुं फळ
बतावीने आचार्यदेव आ विषय पूरो करे छे.
‘अनेकान्त’ सर्वज्ञभगवाननुं कोईथी न तोडी शकाय
एवुं अलंघ्य शासन छे, ते भगवान आत्माने अनंत
शक्तिस्वरूपे प्रसिद्ध करे छे. अरे जीव! अनंतशक्तिथी तारो
आत्मा परिपूर्ण छे, तेनी सन्मुख जो..तारामां एवी कई
कमीना छे के तारे बहार शोधवा जवुं पडे? तारी
आत्मशक्तिनो प्रगट महिमा संतो बतावे छे, तेने लक्षमां
लईने, एक वार पण अंतरथी ऊछळीने तेनुं बहुमान कर
तो संसारथी तारो बेडो पार थई जाय.
अनंतधर्मस्वरूप भगवान आत्माने प्रसिद्ध करनारी
जिननीति अनेकान्तस्वरूप छे; ते अनेकान्तस्वरूप
जिननीतिने कदी नहि उल्लंघता थका संतो परम अमृतमय
मोक्षपदने पामे छे. ए अनेकान्तनुं फळ छे.