एकला मोजांने ज देखे छे, मोजां ऊछळे छे एम तेने लागे छे; पण खरेखर मोजां नथी ऊछळतां, अंदर आखो
दरियो अगाध जळथी भरेलो छे ते दरियानी ताकात ऊछळे छे. तेम अगाध–गंभीर स्वभावोथी भरेला आ
चैतन्यदरियाने जे नथी जाणतो तेने एकली विकारी पर्याय ज भासे छे; अनंत शक्तिथी भरेलो चैतन्य दरियो
अज्ञानीने नथी देखातो एटले तेनी पर्यायमां ते शक्तिओ उल्लसती नथी, विकार ज उल्लसे छे. ज्ञानी तो
अनंतशक्तिथी भरेला अखंड चैतन्यसमुद्रमां डूबकी मारीने, तेने विश्वासमां लईने, तेना आधारे पोतानी
पर्यायमां निजशक्तिओने ऊछाळे छे, एटले के निर्मळपणे परिणमावे छे. आ रीते ज्ञानी अनंतशक्तिथी
उल्लसता पोताना अनेकान्तमय चैतन्यतत्त्वने अनुभवे छे, अने आवा अनेकान्तमूर्ति भगवान चैतन्यनो
अनुभव करवो ते ज आ शक्तिओना वर्णननुं तात्पर्य छे.
मारुं माथुं ऊंचुं थशे!’–एम डर नहि. मुंझा नहि...हताश न था...एक वार स्वभावनो हरख लाव...स्वभावनो उत्साह
कर...तेनो महिमा लावीने तारी ताकातने ऊछाळ!
मारो!!
आनंदस्वभावने देखतो नथी. ज्ञानी तो जाणे छे के हुं पोते ज आनंदस्वभावथी भरेलो छुं, क्यांय बहारमां
मारो आनंद नथी, के मारा आनंदने माटे कोई बाह्य पदार्थनी मारे जरूर नथी. आवुं भान होवाथी ज्ञानी
बहारमां पुण्य–पापना ठाठमां मूर्छाता नथी के मूंझाता नथी. पुण्यना ठाठ आवीने पडे त्यां ज्ञान कहे छे के अरे
पुण्य! रहेवा दे...हवे तारा देखाव अमारे नथी जोवा, अमारे तो सादि अनंत अमारा आनंदने ज जोवो छे;
अमारा आत्माना अतीन्द्रिय आनंद सिवाय आ जगतमां बीजुं कांई अमने प्रिय नथी. अमारो आनंद अमारा
आत्मामां ज छे. आ पुण्यना ठाठमां क्यांय अमारो आनंद नथी. पुण्यनो ठाठ अमने आनंद आपवा समर्थ
नथी, तेमज प्रतिकूळताना गंज अमारा आनंदने लूंटवा समर्थ नथी.–आवी अंर्तदशा होय छे. तेने स्वसंवेदन–
प्रत्यक्षथी पोताना आनंदनुं वेदन थयुं छे. आत्मानो एवो अचिंत्य स्वभाव छे के स्वसंवेदन प्रत्यक्षथी ज ते
जणाय; ‘स्वयं प्रत्यक्ष थाय एवो आत्मानो स्वभाव छे. स्वयं प्रत्यक्ष स्वभावनी पूर्णतामां परोक्षपणुं के क्रम रहे
एवो स्वभाव नथी. तेमज स्वयं प्रत्यक्ष आत्मामां वच्चे विकल्प–राग–विकार के निमित्तनी उपाधि गरी जाय–
एम पण नथी, एटले के व्यवहारना अवलंबने आत्मानुं संवेदन थाय–एम बनतुं नथी. परनी अने रागनी
आड वच्चेथी काढी नांखीने, पोताना एकाकार स्वभावने ज सीधेसीधो स्पर्शीने आत्मानुं स्वसंवेदन थाय छे,
आ सिवाय बीजा कोई उपायथी आनंदस्वरूप भगवान आत्मानुं वेदन थतुं नथी.
तो आनंदनुं वेदन थाय ने विकारनुं वेदन टळे.