Atmadharma magazine - Ank 179
(Year 15 - Vir Nirvana Samvat 2484, A.D. 1958)
(Devanagari transliteration).

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ः १०ः आत्मधर्मः १७९
पार थई जाय. चैतन्यस्वभावनुं बहुमान करतां अल्प काळमां ज तेनुं स्वसंवेदन थईने मुक्ति थया विना रहे
नहि. वस्तुमां परिपूर्ण ज्ञान–आनंदनी शक्ति पडी ज छे, तेने ओळखीने, तेनी सन्मुख थईने, पर्यायमां ते
प्रगट करवानी छे. अरे जीव! एक वार बीजुं बधुं भूली जा, ने तारी निजशक्तिने संभाळ! पर्यायमां संसार छे
ए भूली जा. ने निजशक्तिनी सन्मुख जो, तो तेमां संसार छे ज नहि. चैतन्य शक्तिमां संसार हतो ज नहि, छे
ज नहि, ने थशे पण नहि.–ल्यो आ मोक्ष! आहा स्वभावनी द्रष्टिथी आत्मा मुक्त ज छे. माटे एकवार बीजुं
बधुंय लक्षमांथी छोडी दे, ने आवा चिदानंदस्वभावमां लक्षने एकाग्र कर तो तने मोक्षनी शंका रहेशे नहि,
अल्पकाळमां अवश्य मुक्ति थई जशे.
आत्मामां एटली बधी अनंत शक्तिओ छे के रागथी गणतां (चिंतवतां) तेनो पार न पमाय...पण ज्ञानने
अंतरमां वाळतां अनंत शक्ति सहित आत्मा अनुभवमां आवी जाय...ते शक्तिओ निर्मळपणे परिणमी जाय. ए रीते
निर्मळपणे परिणमतां केवळज्ञान थाय त्यारे अनंत शक्तिओने तेमज असंख्य प्रदेशोने सर्व प्रकारे प्रत्यक्ष जाणे, माटे हे
भाई! तारे तारा आत्मानो पत्तो मेळववो होय...तारी अनंत शक्तिनी रिद्धिने साक्षात् देखवी होय तो तारा ज्ञानने
रागथी छूटुं करीने अंर्त स्वभाव तरफ वाळ.
‘सर्वार्थसिद्धि’ ते उत्कृष्ट देवलोक छे, त्यां असंख्य देवो छे, ते बधा सम्यग्द्रष्टि छे, ने तेमनुं आयुष्य ३३
सागरोपमनुं (असंख्य अबजो वर्षनुं) छे. ते बधाय देवो भेगा थईने असंख्य वर्षो सुधी अतूटपणे गण्या करे तोय
आत्मानी शक्तिनो पार न आवे एवी अनंत शक्तिनो धणी आ दरेक आत्मा छे. ते सम्यग्द्रष्टि देवोए अनंत
शक्तिसंपन्न आत्मानो स्वाद स्वसंवेदनथी चाखी लीधो छे. ज्ञानने अंतरमां लीन करतां क्षणमात्रमां आत्मानी सर्व
शक्तिनो पार पामी जवाय छे. शक्तिओने क्रमे क्रमे जाणवा जाय तो कदी पूरुं पडे तेम नथी, पण अक्रम–अभेद
स्वभावमां लीन थईने जाणतां बधी शक्तिओ एक साथे अक्रमे जणाई जाय छे. आत्मा एक साथे अनंतशक्तिओथी
प्रतिष्ठित छे, तेमां राग प्रतिष्ठा पामतो नथी.
प्रश्नः– अमारे अनंत शक्तिने जाणवी के एक आत्माने जाणवो?
उत्तरः– अनंतशक्तिथी अभेदरूप एवा एक आत्माने जाणवो. अनंतशक्तिथी कंई आत्मा जुदो नथी, एटले
शक्तिने बराबर जाणवा जतां पण शक्तिमान एवो आत्मा ज लक्षमां आवे छे; अने एक आत्माने लक्षमां लेतां पण
ते पोतानी अनंतशक्ति सहित ज अनुभवमां आवे छे. जो आत्माने जुदो राखीने तेनी शक्तिओने जाणवा जाय, के
शक्तिओने लक्षमां लीधा वगर आत्माने जाणवा जाय, तो ते जाणी शकाय नहि, केमके तेणे गुणगुणीने जुदा ज मान्या,
एटले अनेकान्त–स्वरूपने न जाण्युं, ने अनेकान्त वगर भगवान आत्मानी प्रसिद्धि थाय नहि. अनेकान्त ज भगवान
आत्माने यथार्थ–स्वरूपे प्रसिद्ध करे छे...ते ‘अनेकान्त’ सर्वज्ञ भगवाननुं अलंघ्य–कोईथी तोडी न शकाय एवुं शासन
छे. एकान्त मान्यताओने तोडी पाडतुं ने अनेकान्त–स्वरूपे भगवान आत्माने प्रसिद्ध करतुं ते अनेकान्त शासन
जयवंत वर्ते छे.
आ अनेकान्तस्वरूप आत्मवस्तुने जेओ जाणे छे, श्रद्धे छे अने अनुभवे छे तेओ ज्ञानस्वरूप थाय छे–एम
कहीने (२६प मा कळशमां) आचार्यदेव अनेकान्तनुं फळ बतावे छे. ने ए रीते फळ बतावीने आ अनेकान्त अधिकार
पूरो करे छे.
जे रीते अनेकान्तमय वस्तुस्वरूप कह्युं ते प्रमाणे वस्तुतत्त्वनी व्यवस्थाने अनेकांत–संगतद्रष्टिवडे ज्ञानी
सत्पुरुषो स्वयमेव देखे छे...अने ए रीते स्याद्वादनी अत्यंत शुद्धिने जाणीने, जिननीतिने नहि उल्लंघता थका ते संतो
ज्ञानस्वरूप थाय छे.
जुओ, आ ज्ञानस्वरूप थवुं ते अनेकान्तनुं फळ छे, ने ते ज जिननीति छे–ते ज जिनेश्वर देवनो मार्ग छे.
आथी विरूद्ध वस्तुस्वरूप मानवुं ते जिननीति नथी पण अनीति छे; जिननीतिने जे उल्लंघे छे ते मिथ्याद्रष्टि थाय छे ने
घोर संसारमां रखडे छे. अनेकान्त–स्वरूप पावन जिननीतिने संतो कदी उल्लंघता नथी, एटले तेओ परम अमृतमय
मोक्षपदने पामे छे.
आ अनेकान्तनुं फळ छे.
आ रीते ज्ञानलक्षणथी प्रसिद्ध थता अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानुं वर्णन पूरुं थयुं.
अनेकान्तस्वरूप भगवान आत्मानी प्रसिद्धि करनारा
साधक संतोने नमस्कार हो.