नहि. वस्तुमां परिपूर्ण ज्ञान–आनंदनी शक्ति पडी ज छे, तेने ओळखीने, तेनी सन्मुख थईने, पर्यायमां ते
प्रगट करवानी छे. अरे जीव! एक वार बीजुं बधुं भूली जा, ने तारी निजशक्तिने संभाळ! पर्यायमां संसार छे
ए भूली जा. ने निजशक्तिनी सन्मुख जो, तो तेमां संसार छे ज नहि. चैतन्य शक्तिमां संसार हतो ज नहि, छे
ज नहि, ने थशे पण नहि.–ल्यो आ मोक्ष! आहा स्वभावनी द्रष्टिथी आत्मा मुक्त ज छे. माटे एकवार बीजुं
बधुंय लक्षमांथी छोडी दे, ने आवा चिदानंदस्वभावमां लक्षने एकाग्र कर तो तने मोक्षनी शंका रहेशे नहि,
अल्पकाळमां अवश्य मुक्ति थई जशे.
निर्मळपणे परिणमतां केवळज्ञान थाय त्यारे अनंत शक्तिओने तेमज असंख्य प्रदेशोने सर्व प्रकारे प्रत्यक्ष जाणे, माटे हे
भाई! तारे तारा आत्मानो पत्तो मेळववो होय...तारी अनंत शक्तिनी रिद्धिने साक्षात् देखवी होय तो तारा ज्ञानने
रागथी छूटुं करीने अंर्त स्वभाव तरफ वाळ.
आत्मानी शक्तिनो पार न आवे एवी अनंत शक्तिनो धणी आ दरेक आत्मा छे. ते सम्यग्द्रष्टि देवोए अनंत
शक्तिसंपन्न आत्मानो स्वाद स्वसंवेदनथी चाखी लीधो छे. ज्ञानने अंतरमां लीन करतां क्षणमात्रमां आत्मानी सर्व
शक्तिनो पार पामी जवाय छे. शक्तिओने क्रमे क्रमे जाणवा जाय तो कदी पूरुं पडे तेम नथी, पण अक्रम–अभेद
स्वभावमां लीन थईने जाणतां बधी शक्तिओ एक साथे अक्रमे जणाई जाय छे. आत्मा एक साथे अनंतशक्तिओथी
प्रतिष्ठित छे, तेमां राग प्रतिष्ठा पामतो नथी.
उत्तरः– अनंतशक्तिथी अभेदरूप एवा एक आत्माने जाणवो. अनंतशक्तिथी कंई आत्मा जुदो नथी, एटले
ते पोतानी अनंतशक्ति सहित ज अनुभवमां आवे छे. जो आत्माने जुदो राखीने तेनी शक्तिओने जाणवा जाय, के
शक्तिओने लक्षमां लीधा वगर आत्माने जाणवा जाय, तो ते जाणी शकाय नहि, केमके तेणे गुणगुणीने जुदा ज मान्या,
एटले अनेकान्त–स्वरूपने न जाण्युं, ने अनेकान्त वगर भगवान आत्मानी प्रसिद्धि थाय नहि. अनेकान्त ज भगवान
आत्माने यथार्थ–स्वरूपे प्रसिद्ध करे छे...ते ‘अनेकान्त’ सर्वज्ञ भगवाननुं अलंघ्य–कोईथी तोडी न शकाय एवुं शासन
छे. एकान्त मान्यताओने तोडी पाडतुं ने अनेकान्त–स्वरूपे भगवान आत्माने प्रसिद्ध करतुं ते अनेकान्त शासन
जयवंत वर्ते छे.
पूरो करे छे.
ज्ञानस्वरूप थाय छे.
घोर संसारमां रखडे छे. अनेकान्त–स्वरूप पावन जिननीतिने संतो कदी उल्लंघता नथी, एटले तेओ परम अमृतमय
मोक्षपदने पामे छे.