कोना संबंधे वळगणा छे? राखुं के ए परिहरुं?
एना विचार विवेकपूर्वक शांत भावे जो कर्यां,
तो सर्व आत्मिक ज्ञाननां सिद्धांत तत्त्वो अनुभव्यां.
कोई माणसे एक खून कर्युं होय ने तेनो ते गुन्हो साबित थाय तो तेने एक वार फांसी अपाय छे; हवे ते ज माणस
कदाचित एम कबूल करे के में एक नहि पण हजारो–लाखो खून कर्यां छे, तो अहीं तेने शुं शिक्षा थशे? तेने पण एक ज
वार फांसी मळशे. तो विचारो के एक खून करनारने एक वार फांसी ने लाखो खून करनारने पण एक वार फांसी! ए
शुं न्याय छे? नहि. “मने प्रतिकूळता करनारा हजारो लाखो जीवो होय तो ते बधाने पण हुं उडाडी दऊं, अने ते पण
थोडो काळ नहि परंतु हजारो वर्षनुं जीवन होय तो तेटलो काळ सुधी पण प्रतिकूळता करनारा बधा जीवोने ऊडाडी
दऊं.” एवा क्रूर परिणाम जेणे कर्या, ते भले कदाचित कोई जीवने मारी न शके पण तेना क्रूर परिणामनुं फळ तो ते
अवश्य भोगवे छे, अने ते फळ भोगववानुं स्थान नीचे नरकयोनिमां छे,–के ज्यां हजारो लाखो वार तेना शरीरनां
कटकेकटका थई जाय छे. आवा नरकना अवतार दरेक जीवे अज्ञानभावने लीधे अनंत वार कर्यां छे. अरे, चैतन्यतत्त्व
पोते कोण छे तेना भान वगर जीवनो अनादिनो काळ संसारपरिभ्रमणमां ज गयो छे. एक वार पण जो मोक्ष थयो
होय तो पछी संसारपरिभ्रमण रहे नहि.
चैतन्यपदना भान वगर परिभ्रमण टळे नहि. चैतन्यना भान वगर तीव्र हिंसादिथी नरकमां रखडे छे ने
हिंसादिने बदले दयादि कोमळ परिणामथी जीव स्वर्गमां–देवगतिमां–जन्मे छे. ते देवगति पण आत्मानुं खरुं पद
नथी. अरे जीव! तुं जागीने विवेक कर के आ देह अने विकार हुं नहि, हुं तो चैतन्य छुं; मारुं निजपद तो शुद्ध
चैतन्यस्वरूप छे. मारी शुद्ध चैतन्य सत्तामां रागनो प्रवेश नथी. परपदना भरोसे अत्यार सुधी हुं निजपदने
भूल्यो, पण हवे संतोए परम करुणा करीने मने मारुं निजपद ओळखाव्युं. जेम कोई राजा, पोतानुं राजापणुं
भूलीने ऊकरडा उपर रखडतो होय, ने कोई सज्जन पुरुष तेने तेनुं राजापणुं ओळखावीने, तथा तेनो
राजवैभव देखाडीने तेने तेना राजसिंहासने बेसाडे तो ते राजा केवो खुशी थाय! तेम आ चैतन्यराजा, पोतानुं
चैतन्यपद भूलीने रागद्वेषादि विकारीभावना ऊकरडामां निजपद मानीने रखडे छे, त्यां ज्ञानी सत्पुरुषो तेने तेनुं
चैतन्यपद ओळखावीने, तथा तेनो चैतन्यवैभव देखाडीने, तेने तेना शुद्ध चैतन्यपदमां स्थापे छे; त्यां आत्मार्थी
जीव पोताना शुद्ध चैतन्यपदने देखीने परम आनंदित थाय छे.
वर्तमानमां दोष छे पण ते कायमी नथी,
एटले के टळी शके छे.
नथी, कायमी स्वभाव तो निर्दोष छे–