चैतन्यस्वरूपनो निर्णय कर्यो त्यारे, विकार होवा छतां विवेकज्योतिवडे तेनाथी भिन्न विशुद्ध चैतन्यने जाणतो थको,
तेमां ज वर्ते छे ते स्वसमयरूप काळ छे, ते ज दिवाळी छे, ते काळे रागादिथी पराड्मुख वर्ततो थको ने स्वरूपमां ठरतो
थको ते जीव दुःखथी परिमुक्त थाय छे.
स्वभाववाळा पोताना आत्माने जाणे छे. जुओ, आ शुद्ध चैतन्य स्वभाववाळो आत्मा ते ज शास्त्रना अर्थभूत एटले
के प्रयोजनभूत छे. प्रथम एवा प्रयोजनभूत आत्माने जाणीने, पछी मोक्षार्थी जीव तेने ज अनुसरवानो उद्यम करे छे.
–आवा उद्यम वडे तेने दर्शनमोहनो क्षय थाय छे. जुओ, उद्यमवडे कर्मनो नाश थवानुं कह्युं, एटले के उपादाननी
स्वतंत्रताथी कह्युं; पण “कर्म खसे तो उद्यम थाय” एम निमित्त तरफथी न लीधुं. उद्यम करवामां आत्मानी स्वतंत्रता
छे, उद्यम करे त्यां प्रतिबंधकरूप कर्मनो अभाव थया विना रहे ज नहि,–एवो ज निमित्त–नैमित्तिकनो मेळ छे. अहीं तो
आचार्य भगवान स्पष्ट कहे छे के छए द्रव्योना वर्णनमां अर्थभूत–सारभूत–प्रयोजनभूत तो विशुद्ध चैतन्यस्वभावी
आत्मा ज छे, माटे मोक्षार्थीए प्रथम पोताना विशुद्ध चैतन्यस्वभावने जाणवो; तेने जाणीने पछी तेनुं ज अनुसरण
करवानो उद्यम करवो.
थशे. शुद्ध चैतन्यस्वरूपना परिचयवडे तारी ज्ञानज्योति प्रगटी जशे, अने रागद्वेष छूटी जशे. एम थतां कर्मबंधनी
परंपरानो विनाश थई जशे; ने बंधना अभावथी मुक्तपणे तारो आत्मा सदा स्वरूपस्थपणे प्रतापवंत रहेशे. आ ज
दुःखथी छूटीने परमआनंदनी प्राप्तिनो उपाय छे. स्वद्रव्यना परिचयथी ज मोहनो क्षय थाय छे, तेमां परद्रव्यना
परिचयनी जरूर नथी. स्वरूपथी खसीने जेटलो जेटलो परद्रव्यनो परिचय ते बंधनुं कारण छे, ने शुद्ध चैतन्यस्वरूप
स्वद्रव्यनो परिचय ते ज मोक्षनुं कारण छे. आवो द्रढ निर्णय कर्या वगर वीर्यनो वेग स्व तरफ वळे नहि, माटे शास्त्रना
अर्थभूत एवा शुद्ध आत्माने जाणीने मोक्षार्थीए उद्यमपूर्वक तेने ज अनुसरवुं. निमित्तने के रागादिने न अनुसरवुं पण
शुद्ध आत्माने ज अनुसरवुं. एम करवाथी द्रष्टिमोहनो क्षय थाय छे. शुद्ध चैतन्यस्वरूपना परिचयवडे ज्ञानज्योति प्रगटे
छे ने अज्ञान अंधकार नाश पामे छे; तथा ते शुद्ध चैतन्यस्वरूपना परिचयथी–तेमां लीनताथी राग–द्वेष प्रशमी जाय
छे; तेथी बंधनो अभाव थईने पोताना स्वरूपमां स्थिरपणे मुक्तिमां आत्मा सदा प्रतापवंत वर्ते छे, ने परमआनंदथी
शोभे छे.